नीरज सिसौदिया, बरेली
वरिष्ठ भाजपा नेता और पार्षद व बीडीए सदस्य सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा का राजनीतिक सफर सेवा कार्यों और उपलब्धियों से भरा है. पिछले 31 वर्षों से मम्मा लगातार भगवा ब्रिगेड के समर्पित सिपाही बने हुए हैं इसके बावजूद आज तक विधानसभा या विधान परिषद् का फासला तय नहीं कर पाए हैं. इस बार वह बरेली-रामपुर स्थानीय निकाय क्षेत्र एमएलसी के लिए भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. इस संबंध में वह भाजपा एवं संघ के कई पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को आवेदन भी दे चुके हैं. हालांकि प्रत्याशी चयन में अभी काफी वक्त लगना है.
अब जरा एक नजर डालते हैं मम्मा के सियासी सफर पर. मम्मा का यह सफर वर्ष 1989 से शुरू होता है जब मम्मा पार्षद भी नहीं बने थे. उसी साल चुनाव हुए और जनता ने मम्मा को अपना नेता चुना और वह पहली बार में ही सभासद का उलेक्शन जीत गए. वर्ष 1990 से वह लगातार (वर्ष 2012-17 को छोड़कर) पार्षद का चुनाव जीतते आ रहे हैं. वर्ष 1990 में वह बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य भी चुने गए. वर्तमान में वह दूसरी बार बीडीए सदस्य चुने गए हैं. इसी दौरान एक बार उनकी पत्नी भी बीडीए की सदस्य और पार्षद रही हैं जो वर्तमान में महानगर भाजपा मंत्री हैं. मम्मा भाजपा किसान मोर्चा के महानगर अध्यक्ष भी रहे. वर्ष 1994 में वह भाजपा साहूकारा मंडल के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए. इतना ही नहीं प्रदेश स्तर पर भी मम्मा अपनी काबिलियत का डंका बजा चुके हैं. वह दस्तावेज लेखक कल्याणकारी समिति के प्रदेश महामंत्री भी रहे. वहीं दस्तावेज लेखक कल्याणकारी समिति, सदर के दस बार लगातार निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हुए. अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के युवा संभाग के प्रदेश महामंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रहने के कारण प्रदेश भर में सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं. नगर निगम के पूर्व उपसभापति और महानगर भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य की भूमिका निभा चुके मम्मा व्यापारिक राजनीति में भी गहरी पैठ रखते हैं. वह उद्योग बंधु के पूर्व सदस्य, रोहिलखंड व्यापार मंच के जिला अध्यक्ष रहने के साथ है उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के भी जिला अध्यक्ष रह चुके हैं. जिला योजना समिति में सर्वाधिक 458 मतों से जीत हासिल करने वाले मम्मा अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने में भी मम्मा अहम भूमिका निभा रहे हैं. यही वजह है कि वह बरेली शहर के जाने-माने नीलकंठ मंदिर, राजेंद्र नगर, मां दुर्गा मंदिर, गुलमोहर पार्क कॉलोनी, दुर्गा माता मंदिर, राजेंद्र नगर आदि के ट्रस्टी/संरक्षक आदि के रूप में सेवाएं दे रहे हैं. बात सिर्फ धार्मिक या राजनीतिक पहलुओं की नहीं है. बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में भी सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा का उल्लेखनीय योगदान है. वह भारत इंटर कॉलेज के प्रबंध समिति सदस्य भी हैं. वह निर्धन और जरूरतमंद विद्यार्थियों की स्कूल की फीस से लेकर जरूरत का सामान भी मुहैया कराते हैं.
इसके अलावा अनगिनत गरीब कन्याओं का विवाह संस्कार मम्मा के माध्यम से संपन्न हुआ. पिछले 35 वर्षों से मम्मा इस कार्य में अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं.
मम्मा की शख्सियत ही ऐसी है कि जो उनसे एक बार मिल जाए तो हमेशा के लिए उनसे जुड़ जाता है. फिर चाहे वह राजनेता हो या आम आदमी. सेवा कार्यों ने मम्मा को सामाजिक क्षेत्र में अलग पहचान दिलाई है तो वहीं संघ और पार्टी के प्रति समर्पण भाव ने उन्हें राजनीति में अलग मुकाम दिलाया है.
मम्मा बरेली के उन भाजपा नेताओं में शामिल हैं जिन्हें नगर निगम की सीमाएं कभी नहीं रोक सकीं. वह पूरे बरेली मंडल सहित रामपुर के भाजपा नेताओं की चुनाव में मदद करते आए हैं. रैली चाहे किसी की भी रही हो मम्मा के साथ उनके सैकड़ों समर्थकों की मौजूदगी ने उसकी शान में इजाफा किया है.
आज मम्मा एक ऐसी स्थिति में आ चुके हैं जहां वह विधान परिषद् के हकदार बन चुके हैं. 31 साल के सियासी सफर में उन्होंने कई उतार चढ़ाव देखे, विपक्ष में रहने के बावजूद पार्टी की आवाज को हमेशा बुलंद किया. मम्मा एकमात्र ऐसे नेता हैं जो कोरोना काल में जान हथेली पर लेकर पूरे साल कैंप लगाकर लोगों की कोरोना जांच करवाते रहे. उसके बाद वैक्सीनेशन कैंप लगवाते रहे. जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा करने का यह काम निश्चित तौर पर मम्मा जैसे समर्पित सियासतदान ही कर सकते हैं.
अब मम्मा चाहते हैं कि पार्टी भी उन्हें उनके सब्र और सेवा का ईनाम प्रदान करे. इसलिए उन्होंने अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बरेली-रामपुर स्थानीय निकाय क्षेत्र एमएलसी चुनाव के लिए पार्टी से टिकट की दावेदारी की है. मम्मा का दावा इसलिए भी मजबूत नजर आता है क्योंकि पिछले 18 वर्षों से कोई भी भाजपा उम्मीदवार इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सका है. पिछली बार भाजपा ने पीपी सिंह को इस सीट से मैदान में उतारा था लेकिन उन्हें भी समाजवादी पार्टी के घनश्याम लोधी ने धूल चटा दी थी. चूंकि मम्मा समाज हर वर्ग में गहरी पैठ रखते हैं इसलिए मम्मा की जीत बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं लगती. हालांकि यह उतनी आसान भी नहीं होगी.
बहरहाल, पार्टी इस बार मम्मा पर दांव खेलती है या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.