इंटरव्यू

सिंबल हटा दें तो जमानत भी जब्त हो जाएगी राजेश अग्रवाल की, मंत्री बनने के बाद भी कैंट के लिए कुछ नहीं किया, कैंट विधायक पर जमकर बरसे गौरव सक्सेना, पढ़ें स्पेशल इंटरव्यू…

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सपा पार्षद गौरव सक्सेना की कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही. राजनीति में उन्होंने जो भी हासिल किया वह अपने दम पर हासिल किया. दो बार पार्षद का चुनाव जीत चुके गौरव सक्सेना इस बार कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी से टिकट मांग रहे हैं. वैश्य और मुस्लिम बाहुल्य इस सीट को कायस्थ समाज से ताल्लुक रखने वाले गौरव सक्सेना कैसे जीत पाएंगे? अगर पार्टी उन्हें टिकट देती है तो वह किन मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहेंगे? वर्तमान शहर विधायक अब तक कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे. गौरव सक्सेना उन्हें कितना सफल मानते हैं? गौरव सक्सेना गैर राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि हैं. ऐसे में राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने में उन्हें कितना संघर्ष करना पड़ा? ऐसे कई मुद्दों पर गौरव सक्सेना ने नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आप मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही आपकी?
जवाब : हम मूल रूप से बरेली जिले के मीरगंज विधानसभा क्षेत्र के गांव देवसास के रहने वाले हैं. मेरी कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही. मेरे परिवार में सभी नौकरीपेशा रहे. मेरे पिता बिजली विभाग में नौकरी करते थे. मेरे पिता को गांव से बेहद लगाव है और वहां भी हमारी जमीन जायदाद है. तीन भाई-बहनों में मैं सबसे छोटा हूं. मेरे बड़े भैया इंजीनियर हैं और बहन लखनऊ में रहती है.
सवाल : आपकी पढ़ाई-लिखाई कहां से और कहां तक हुई?
जवाब : मैंने 12वीं तक की पढ़ाई जय नारायण इंटर कॉलेज बरेली से की. उसके बाद बरेली कॉलेज से बीएससी की. फिर मैथमेटिक्स से एमएससी करने के बाद बरेली कॉलेज से ही एलएलबी की. इसके बाद चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से मैंने बीपीएड भी किया.


सवाल : सक्रिय राजनीति में आपका आना कब और कैसे हुआ, परिवार का कितना सपोर्ट मिला?
जवाब : इंटरमीडिएट करने के बाद जिस दिन मैंने बरेली कॉलेज में एडमिशन लिया तो पहला कदम बरेली कॉलेज में रखा और दूसरा समाजवादी पार्टी के कार्यालय में. सबसे पहले मैं छात्र राजनीति में आया. मैंने जब बीएससी फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया तो मैथ की कोचिंग भी शुरू की. कोचिंग में मेरी मुलाकात समाजवादी छात्र सभा के एक पदाधिकारी से हुई. उनके माध्यम से वर्ष 2002 में मैं समाजवादी छात्र सभा में सदस्य के तौर पर जुड़ गया. उस समय बसपा की सरकार थी और समाजवादी पार्टी सरकार के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रही थी. मैं पार्टी के हर आंदोलन का हिस्सा बनने लगा था मुझे राजनीति अच्छी लगने लगी. वर्ष 2003 में मुझे समाजवादी छात्र सभा का महासचिव बना दिया गया. तभी छात्र संघ के चुनाव शुरू हो गए. मैंने उसमें भी अहम भूमिका निभाई. मेरी सक्रियता को देखते हुए वर्ष 2007 में मुझे समाजवादी छात्र सभा का महानगर अध्यक्ष बनाया गया. मैं दो बार छात्र सभा का महानगर अध्यक्ष बना और फिर जिला अध्यक्ष बनाया गया. मेरे परिवार वाले नहीं चाहते थे कि मैं राजनीति में आऊं मगर मेरे बड़े भाई ने मुझे पूरा सपोर्ट किया और आज मैं जो कुछ भी हूं उन्हीं की बदौलत हूं.
सवाल : छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में कब और कैसे आना हुआ?
जवाब : वर्ष 2012 में जब नगर निगम के चुनाव होने वाले थे तो मैं उस वक्त समाजवादी छात्र सभा का जिला अध्यक्ष था. पार्टी ने मुझ पर भरोसा जताया और पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर मैं पहली बार नगर निगम के सदन पर पहुंचा. मेरी मेहनत को देखते हुए वर्ष 2014 में मुझे समाजवादी युवजन सभा का जिला अध्यक्ष बनाया गया. मैं कई बार मीरगंज विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी भी रहा. कायस्थ बिरादरी से होने के बावजूद जिले में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहा. एक बहुत चर्चित सम्मेलन बरेली में हुआ था ‘देश बचाओ देश बनाओ’ रैली जिसमें नेताजी मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित पार्टी के कई बड़े नेता भी शामिल हुए थे. मैं उस रैली का प्रचार प्रसार का प्रभारी भी रहा. उस वक्त भी बसपा की सरकार थी. इसके अतिरिक्त छात्र राजनीति से लेकर युवा राजनीति तक तमाम आंदोलन प्रदर्शन में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ साथ विपक्ष में जेल भरो आंदोलन में कई बार पार्टी के लोगों के साथ कई दिनों की जेल भी काटी.


सवाल : फिर मुख्य संगठन में महानगर महासचिव की जिम्मेदारी कैसे मिली?

जवाब : जब मैं वर्ष 2002 में समाजवादी छात्र सभा से जुड़ा था तो मैंने वीरपाल सिंह यादव जी को समाजवादी पार्टी के नेता और जिला अध्यक्ष के रूप में देखा था. मुझे उनकी किचन केबिनेट का हिस्सा बनने का गौरव भी हासिल हुआ. एक ऐसा समय आया जब उन्होंने समाजवादी पार्टी को छोड़ने के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. मुझे उस वक्त 1 मिनट भी नहीं लगा वीरपाल सिंह यादव का हाथ छोड़ने में. मैंने यह भी वीरपाल सिंह यादव से ही सीखा था. उन्होंने मुलायम सिंह यादव के अलावा कभी भी किसी को भी अपना नेता नहीं माना था और उन्हीं के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को बरेली जिले में स्थापित किया. उसी तरह मैंने भी अखिलेश यादव जी को ही अपना नेता माना और जब वीरपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ दिया तो मैंने सपा का साथ नहीं छोड़ा, मैंने अखिलेश यादव को नहीं छोड़ा. उस दौरान पार्टी में मुझे वीरपाल सिंह यादव के करीबी के तौर पर संदेह की नजरों से देखा जाता था लेकिन मैं परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ा. मैंने हार नहीं मानी. मुझे पार्टी कार्यालय भी नहीं बुलाया जाता था. इसी बीच वर्ष 2017 में मुझे पार्षद का टिकट भी नहीं दिया गया तो मैं निर्दलीय चुनाव लड़ा. समाजवादी पार्टी से मैं भले ही चुनाव नहीं लड़ रहा था लेकिन मेरे होर्डिंग और बैनर पर अखिलेश यादव की तस्वीर भी होती थी. समाजवादी पार्टी से उस समय सौरभ मिश्रा और भाजपा से विनोद राजपूत चुनाव लड़े थे. भाजपा की लहर होने के बावजूद मैं 15 वोटों से निर्दलीय चुनाव जीत गया. मैं भले ही निर्दलीय चुनाव जीता था मगर नगर निगम सदन से लेकर बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्यों के चुनाव तक मैंने पार्टी का ही साथ दिया. लंबे संघर्ष के बाद शमीम खान सुल्तानी को महानगर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई तो वह सभी लोगों की तरह मुझसे भी मिलने आए. उन्होंने जब महानगर कमेटी की घोषणा की तो मुझे महानगर महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी. मैं हैरान था लेकिन जब मुझे यह जिम्मेदारी दी गई तो मैंने पूरी तत्परता के साथ काम किया और पुराने लोगों के साथ ही नए लोगों को भी जोड़ने की मुहिम शुरू की. खास तौर पर ज्यादा से ज्यादा हिंदू समाज को मैंने पार्टी से जोड़ा.

कायस्थ चेतना मंच के युवाध्यक्ष के तौर पर बरेली कॉलेज सभागार में प्रथम चित्रांश युवा सम्मेलन आयोजित किया.

सवाल : अब आपने कैंट विधानसभा सीट से टिकट के लिए दावेदारी की है. अगर पार्टी आपको टिकट देती है तो क्या समीकरण होंगे आपके हिसाब से, चुनाव कैसे जीतेंगे आप?
जवाब : देखिए कैंट विधानसभा क्षेत्र शहरी इलाका है और इसमें पुरानी बस्तियां भी आती हैं. अगर हम वर्तमान विधायक की ही बात करें तो जनता ने पहले उन्हें विधायक बनाया और वह मंत्री भी बने. उत्तर प्रदेश में सबसे प्रमुख वित्त मंत्रालय मिलने के बाद भी कैंट विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने कोई कार्य नहीं करवाया. वह बताएं कि वित्त मंत्रालय के माध्यम से उन्होंने कैंट विधानसभा क्षेत्र के लिए कोई अतिरिक्त बजट दिया हो, कोई महाविद्यालय बनवाया हो, कोई अस्पताल बनवाया हो या सड़कों और नालियों का कोई विशेष काम कराया हो. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. यह दुर्भाग्य है कैंट विधानसभा क्षेत्र की जनता का कि आम आदमी उन्हें चुनाव जिताता है और जीतने के बाद वह इतने बड़े मंत्री बन जाते हैं कि उस जनता के लिए ही उनके दरवाजे बंद हो जाते हैं. मंत्री बनने के बावजूद जनता के लिए कुछ नहीं करते. मैं आम आदमी का चुनाव आम आदमी से जुड़कर और उनके मुद्दों को लेकर लडूंगा.

गौरव सक्सेना की ओर से महापुरुषों की मूर्तियां भी लगाई गईं.


सवाल : कैंट विधानसभा सीट पर सर्वाधिक मतदाता वैश्य और मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखते हैं. आप कायस्थ हैं. इस बिरादरी के समीकरण पर आप कहां फिट बैठते हैं?
जवाब : देखिए, हम तो छात्र राजनीति से निकले हैं. जब तक पढ़े-लिखे नौजवान राजनीति में आगे नहीं आएंगे तब तक यह जाति, बिरादरी और हिंदू-मुस्लिम की बात होती रहेगी. लोगों को अब एक ऐसा आदमी चाहिए जो उनके बीच का हो. मैं जाति, बिरादरी को नहीं मानता फिर भी अगर आपने बात छेड़ी है तो मैं बताना चाहूंगा कि कैंट विधानसभा सीट पर लगभग 40000 मतदाता कायस्थ बिरादरी के है. अब रही समीकरण की बात तो यहां वैश्य के साथ ही अन्य जातियां भी हैं मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमारे कायस्थ समाज का बहुतायत वोट भाजपा को ही जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है कि कायस्थ समाज भाजपा से ही बंधा हुआ है. चूंकि किसी ने इस समाज को अपने साथ जोड़ने का प्रयास नहीं किया इसलिए इस समाज का वोट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गया. अब मैं अपने समाज को भी जोड़ने का काम कर रहा हूं. अगर मैं 40 में से 10 हजार वोट भी कायस्थ समाज का ले लेता हूं तो भाजपा को 20000 वोटों का नुकसान होग. इसके अलावा मैं अन्य बिरादरी के लोगों से भी लगातार संपर्क में हूं. मेरा मानना है कि सिर्फ हिंदू या सिर्फ मुस्लिम वोट लेकर ही समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सकता. चुनाव वही जीत सकता है जो मुस्लिमों के साथ ही हिंदुओं के वोट भी हासिल कर सके.
सवाल : आपकी नजर में कैंट विधानसभा सीट के प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
जवाब : सबसे बड़ा एक मुद्दा है रोजगार का. हमारे कैंट में बहुत पहले एक शुगर फैक्ट्री हुआ करती थी वह बिक गई. उसके बाद उद्योग धंधों की बात कोई नहीं करता. कोई फैक्ट्रियां यहां नहीं लगाई गईं. कहां से रोजगार मिलेगा नौजवानों को? दूसरी बात बरेली को एजुकेशन हब माना गया है लेकिन गुणवत्तपरक शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. मेरा दूसरा मुद्दा गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध कराना होगा. तीसरा मुद्दा चिकित्सा का होगा. यहां कम से कम पीजीआई स्तर का अस्पताल खोलना मेरी प्राथमिकता होगी. जो वर्तमान कैंट विधायक अब तक नहीं कर सके हैं.

महिलाओं को सिलाई मशीनें भी गौरव सक्सेना के प्रयासों से बांटी गईं.

सवाल : वर्तमान कैंट विधायक को आप कितना सफल मानते हैं?
जवाब : यह क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है. मैं दावा करता हूं कि ये लोग सिर्फ पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने वाले लोग हैं अगर सिंबल हटा दिया जाए और सिर्फ पार्टी लेवल से हटकर जमीनी स्तर पर बात की जाए तो इन लोगों की जमानत तक जब्त हो जाएगी. वर्तमान कैंट विधायक राजेश अग्रवाल दो बार कैंट से विधायक बने हैं. उससे पहले शहर विधानसभा क्षेत्र से भी विधायक रहे. वित्त मंत्री भी रहे और विधानसभा उपाध्यक्ष भी बने. इतने लंबे टेन्योर में अगर उनसे पूछा जाए कि उनकी उपलब्धियां क्या हैं तो मैं समझता हूं कि जनता को बताने के लिए उनके पास कोई उपलब्धि नहीं है. उनकी उपलब्धि सिर्फ यही है कि जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो अखिलेश जी ने शहामतगंज पुल के निर्माण के लिए पैसा दिया. पुल का निर्माण सपा सरकार के कार्यकाल में ही हुआ. राजेश अग्रवाल ने सिर्फ उसका फीता काटकर उद्घाटन किया. बस यही फीता काटना ही उनकी उपलब्धि है. वह बताएं कि उन्होंने कौन से पुल बनवा दिए. सुभाष नगर पुलिया पर लंबे समय से एक ओवर ब्रिज बनाने की मांग चली आ रही है लेकिन कैंट विधायक ने वहां जाकर देखा तक नहीं. बरसात में वहां यह स्थिति हो जाती है कि बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं और महिलाओं को अपमानित होना पड़ता है. पूरा जलभराव हो जाता है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और मेयर साहब ने लगभग साल भर पहले वहां जाकर सर्वे कराया था मगर एक साल होने को है और उस पर अभी तक कोई काम आगे नहीं बढ़ा है. ये लोग केवल सपने दिखाकर सपने लूटते हैं और अपना उल्लू सीधा करके नेता बने हुए हैं. ये विधायक और मंत्री भले ही बन गए हों पर आज तक जनता के नेता नहीं बन पाए हैं.

समाजवादी युवजन सभा के विशाल मंडलीय सम्मेलन का आयोजन गौरव सक्सेना द्वारा जिला अध्यक्ष रहते हुए कराया गया.

सवाल : आप भी 10 साल से पार्षद हैं, आपकी उपलब्धियां क्या रहीं?
जवाब : मेरे वार्ड में सड़कों, नालियों और जलभराव की सारी समस्याएं मैंने हल करवा दी हैं. हमारे वार्ड में जेल की एक जमीन आती है जिस पर बस अड्डा बनवाने के लिए सबसे पहले मैंने मांग उठाई थी. आज अन्य जनप्रतिनिधियों का भी ध्यान उसकी ओर गया है. तब सपा की सरकार थी और उस समय मुझे याद है गौरव दयाल यहां के जिलाधिकारी हुआ करते थे. मैंने उस वक्त उनसे पुराना बस अड्डा यहां शिफ्ट करने की मांग की थी. उन्होंने इस बात को गंभीरता से लेते हुए सर्वे भी करवाया था. उसके बाद जेल प्रशासन को भी चिट्ठी लिखी थी. उसका नक्शा भी बनाया गया था लेकिन उस समय अखिलेश यादव जी जो तत्कालीन मुख्यमंत्री थे उनका कार्यक्रम नहीं लग पाया जिस कारण यह घोषणा नहीं हो सकी. उसके बाद भाजपा की सरकार आई और तब से यह प्रोजेक्ट कागजों में ही सिमट कर रह गया है. मुझे पूरी उम्मीद है कि जब दोबारा समाजवादी पार्टी की सरकार आएगी तो यहां बस अड्डा खड़ा होगा इसी तरह से सुभाष नगर में महिला डिग्री कॉलेज बनाने की मांग लंबे समय से चल रही है. मैंने पुरानी बेसिक शिक्षा विभाग की बिल्डिंग में महिला डिग्री कॉलेज बनाने की मांग रखी थी. इसके लिए लिखकर भी दिया था. उसका भी सर्वे किया गया था लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार जाने के बाद ये काम रुक गए. भाजपा सरकार में नहीं हो पाए. आने वाले दिनों में समाजवादी पार्टी की सरकार आने पर ये काम प्रमुखता से कराए जाएंगे.

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