नीरज सिसौदिया, बरेली
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की ग्लोबल इनवेस्टमेंट की योजना पर वन विभाग के आला अधिकारी ही ग्रहण लगा रहे हैं। राज्य के 13 जिलों के वन विभाग के अधिकारी इस काले खेल में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये सारा खेल प्लाईवुड फैक्ट्रियों के लाइसेंस से जुड़ा हुआ है। जिसमें बाकायदा जिला वन पदाधिकारी (डीएफओ), रेंजर सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारी लाखों रुपये की रिश्वत लेकर लाइसेंस बेचने का काम कर रहे हैं। इससे एक तरफ प्रदेश का प्लाईवुड उद्योग रसातल में जा रहा है, वहीं करोड़ों की मशीनें लगाकर यूनिट खड़ी करने वाले उद्यमियों के समक्ष भी कर्ज चुकाने का संकट पैदा हो गया है।
ऐसे समझें पूरा मामला
वर्ष 2017 में जब पहली बार योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी में भाजपा सरकार बनी तो प्लाई वुड उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अहम कदम उठाए गए। इसी कड़ी में वर्ष 2018 मेें पूरी पारदर्शिता के साथ प्लाईवुड फैक्ट्रियाें के लिए लाइसेंस जारी किए गए। चूंकि सारी प्रक्रिया ऑनलाइन थी और सरकार नई-नई थी तो उस वक्त वन विभाग के अधिकारियों की मनमर्जी नहीं चल पाई। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने पेंच फंसा दिया और शाहजहांपुर, बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर सहित 13 जिलों में एनजीटी ने प्लाईवुड फैक्ट्रियों के लाइसेंस पर रोक लगा दी। योगी सरकार की इस योजना पर उसी वक्त ग्रहण लग गया। इससे प्लाईवुड फैक्ट्रियों में निवेश करने वाले उद्यमियों की फैक्ट्रियां महज शो पीस बनकर रह गईं। वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने प्लाईवुड फैक्ट्रियों के लाइसेंस पर लगी रोक हटा दी। इसके बाद ऑनलाइन आवेदन शुरू किए गए। लेकिन इस बार योजना पर रिश्वतखोरी का ग्रहण लग गया।
हर अधिकारी के रेट फिक्स हैं
रिश्वतखोरी के इस खेल को समझने के लिए सबसे पहले इसकी प्रक्रिया को समझना होगा। योगी सरकार ने जो ऑनलाइन लाइसेंस जारी करने की व्यवस्था दी है उसमें रेंजर, डीएफओ सहित अन्य अधिकारियों की जांच रिपोर्ट लगनी है। इसके बाद लखनऊ की एजेंसी के पास जांच रिपोर्ट जानी है। फिर लाइसेंस जारी किये जाने हैं। इसी जांच रिपोर्ट के लिए अधिकारियों ने रेट फिक्स कर लिए हैं। शाहजहांपुर में जहां पांच लाख से 15 लाख रुपये तक रेट फिक्स किए गए हैं, वहीं बरेली में दो लाख से दस लाख रुपये तक वसूले जा रहे हैं। इसी तरह अन्य जिलों का भी हाल है। जितनी बड़ी फैक्ट्री उतनी अधिक रिश्वत वसूली जा रही है।
इन बिंदुओं पर हो जांच तो सामने आ जाएगी हकीकत
रिश्वतखोरी की पोल खोलने के लिए कुछ बिंदुओं पर जांच बेहद जरूरी है। जैसे – सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कितने लाइसेंस जारी किए गए, किससे कितनी राशि रिश्वत के तौर पर ली गई, अब तक कितने लाइसेंस पेंडिंग हैं, कितने लाइसेंस जांच रिपोर्ट न आने की वजह से पेंडिंग पड़े हैं। अगर इन बिंदुओं पर जांच तो भ्रष्टाचार का खुलासा आसानी से हो सकता है।
जांच रिपोर्ट देने वाले अधिकारियों की संपत्ति की जांच करे ईडी
वन विभाग के अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए उनकी संपत्ति की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कराई जानी चाहिए। साथ ही उनके परिजनों को भी जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए। इस पूरे भ्रष्टाचार के खेल की जांच सीबीआई से कराकर भ्रष्ट अधिकारियों को सलाखों के पीछे भेजा जाना चाहिए।
हजारों करोड़ का निर्यात ठप पड़ा है
लाइसेंस जारी करने में हो रहे भ्रष्टाचार के कारण हजारों करोड़ रुपये का प्लाईवुड एक्सपोर्ट का काम ठप पड़ा हुआ है। साथ ही प्लाईवुड कारोबारियों को भी अरबों रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह हाल तब है जब यूपी सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने की दिशा में नया मील का पत्थर लगाने के लिए प्रयासरत है।