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अब पूरे उत्तर प्रदेश में गूंजेगी धोबी समाज की आवाज, राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश भास्कर के नेतृत्व में 6 अक्टूबर को लखनऊ में होगी सर्वजन आम पार्टी की निर्णायक बैठक, तय होगा चुनावी एजेंडा, पढ़ें कैसे मुश्किल में आ सकती है सपा, बसपा की दलित राजनीति?

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नीरज सिसौदिया, लखनऊ

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। लंबे समय तक हाशिये पर खड़ा रहने वाला धोबी समाज अब पूरी ताकत के साथ अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। 6 अक्टूबर को लखनऊ के दारुल शफा में सर्वजन आम पार्टी की एक बड़ी बैठक होने जा रही है, जिसकी अगुवाई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश भास्कर करेंगे। इस बैठक को वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव का शंखनाद माना जा रहा है।
बैठक में प्रदेश के सभी जिलों से कार्यकर्ता और पदाधिकारी जुटेंगे। पार्टी का इरादा है कि यहां चुनावी एजेंडा तैयार कर उसे पूरे प्रदेश के गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाया जाए। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यदि इस बैठक के बाद सर्वजन आम पार्टी ने आक्रामक अभियान छेड़ा तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया समीकरण बन सकता है।

धोबी समाज का जनसांख्यिकीय वजन

उत्तर प्रदेश में धोबी समाज की आबादी कोई छोटी संख्या नहीं है। विभिन्न समाजशास्त्रीय अध्ययनों और जनगणना के अनुमानों के अनुसार, प्रदेश की कुल जनसंख्या में धोबी समाज की हिस्सेदारी लगभग 2 से 2.5 प्रतिशत मानी जाती है। यह संख्या करीब 40 से 50 लाख के बीच बैठती है।

यानी अकेले धोबी समाज इतना बड़ा वोट बैंक है कि यदि यह संगठित हो जाए तो दर्जनों विधानसभा सीटों पर सीधे चुनावी परिणाम प्रभावित कर सकता है।

सबसे ज्यादा संख्या में धोबी समाज के लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश, तराई क्षेत्र और पश्चिमी यूपी के जिलों में रहते हैं। बरेली, मुरादाबाद, लखीमपुर, गोंडा, बलिया, गाजीपुर, आज़मगढ़ और वाराणसी जैसे जिलों में इनकी अच्छी-खासी आबादी है।

बरेली से उठी नई सियासी लहर

पार्टी की सबसे मजबूत पकड़ इस समय बरेली में दिखाई देती है। स्थानीय निकाय चुनावों और संगठनात्मक बैठकों के दौरान यहां धोबी समाज ने सर्वजन आम पार्टी के झंडे तले एकजुटता दिखाई है।

बरेली और उसके आसपास के जिलों में धोबी समाज की आबादी 1.5 लाख से अधिक है। यही वजह है कि यहां की राजनीति अब इस नए सामाजिक समीकरण से प्रभावित हो रही है।

पिछली चुनावी तस्वीर

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों को देखें तो स्पष्ट है कि धोबी समाज ने किसी एक दल को अपना स्थायी ठिकाना नहीं बनाया। यह वोट बैंक बिखरा हुआ रहा और अलग-अलग सीटों पर अलग-अलग पार्टियों को गया।

राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि उस समय धोबी समाज एकजुट होता तो लगभग 20 से 25 विधानसभा सीटों पर परिणाम बदल सकते थे। इनमें से कई सीटें ऐसी थीं जहां जीत का अंतर 5,000 से भी कम वोटों का था।

2027 में बदलेगा खेल

सर्वजन आम पार्टी अब इसी बिखरे वोट बैंक को एकजुट करने में जुट गई है। पार्टी अध्यक्ष जयप्रकाश भास्कर का कहना है कि धोबी समाज को हमेशा इस्तेमाल किया गया, लेकिन उसकी हिस्सेदारी तय नहीं की गई। अब समय आ गया है कि यह समाज अपनी पहचान के साथ खड़ा हो।

यदि 2027 में सर्वजन आम पार्टी को धोबी समाज का पूरा समर्थन मिल गया, तो यह पार्टी कम से कम 20–30 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकती है। गठबंधन की राजनीति में यह संख्या किसी भी दल की सरकार बनाने या गिराने के लिए अहम होगी।

दलित राजनीति पर सीधी चुनौती

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अब तक दलित राजनीति की सबसे बड़ी प्रतिनिधि रही है। लेकिन 2017 और 2022 में उसके कमजोर होते प्रदर्शन ने दलित समाज में असंतोष पैदा किया है।

धोबी समाज का मानना है कि बसपा ने उसे कभी प्राथमिकता नहीं दी। यही वजह है कि अब सर्वजन आम पार्टी सीधे तौर पर बसपा के दलित एजेंडे को चुनौती देती नजर आ रही है। यदि यह पार्टी चुनावी मैदान में सक्रिय हो गई, तो बसपा का पारंपरिक वोट बैंक और बिखर सकता है।

सपा का पीडीए के समीकरण भी खतरे में

समाजवादी पार्टी (सपा) ने हमेशा पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक-किसान (पीडीएके) फार्मूला अपनाकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ीं। लेकिन सपा के इस गठजोड़ में धोबी समाज को कभी नेतृत्व का मौका नहीं मिला।

अब जब सर्वजन आम पार्टी धोबी समाज की राजनीति को केंद्र में ला रही है, तो सपा के लिए भी खतरे की घंटी बज गई है। अनुमान है कि करीब 10 से 12 सीटों पर सपा का समीकरण बिगड़ सकता है।

लखनऊ बैठक का महत्व

6 अक्टूबर की लखनऊ बैठक में हजारों कार्यकर्ताओं की मौजूदगी की संभावना है। बैठक के दौरान चुनावी एजेंडा तय करने के साथ-साथ संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करने की रणनीति बनेगी।

यह बैठक न केवल सर्वजन आम पार्टी बल्कि पूरे धोबी समाज की राजनीतिक दिशा तय करेगी। यदि बैठक सफल रही और समाज एकजुट होकर निकल पड़ा, तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई ताकत का उदय होगा।

बहरहाल, सर्वजन आम पार्टी की लखनऊ बैठक को लेकर पहले से ही प्रदेश की राजनीति में हलचल है। जयप्रकाश भास्कर के नेतृत्व में धोबी समाज अपनी राजनीतिक पहचान की लड़ाई लड़ने को तैयार है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह आवाज 2027 के विधानसभा चुनाव में सत्ता के गलियारों तक पहुंचेगी या फिर अन्य छोटी पार्टियों की तरह सीमित रह जाएगी। लेकिन इतना तो तय है कि अब पूरे उत्तर प्रदेश में धोबी समाज की आवाज गूंजने लगी है और यह आने वाले वर्षों में प्रदेश की सियासत का समीकरण बदल सकती है।

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