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मोहब्बत के दीये से निकली अमन की रोशनी, बरेली की फिजाओं में इंसानियत के रंग भर रहे डॉ. अनीस बेग, गंगा-जमुनी तहजीब की ओर फिर लौटने लगी सुरमा नगरी, जानिये कैसे?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
आला हजरत का शहर और नाथ नगरी की रूह में सदियों से गंगा-जमुनी तहज़ीब समाई हुई है। ये वही धरती है जहां मस्जिद की अज़ान और मंदिर की घंटियां एक साथ गूंजती हैं, जहां मेलों के रंग-बिरंगे झंडों के बीच इंसानियत की डोर कभी टूटी नहीं। बरेली की हवा में एक शख्स वर्षों से मोहब्बत, भाईचारे और इंसानियत की खुशबू घोल रहा है। वह नाम है समाजवादी पार्टी चिकित्सा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष, डॉ. अनीस बेग। उनकी सोच, शब्द और कर्म आज बरेली को फिर से उसकी असल पहचान “गंगा-जमुनी तहजीब” की ओर लौटा रहे हैं।


बरेली हमेशा से आला हज़रत, प्रेम और साझा संस्कृति का शहर रहा है। आज डॉ. अनीस बेग एक ऐसी आवाज़ बनकर उभरे हैं जो इस शहर की फिजाओं में प्रेम और सौहार्द्र की मिठास घोल रहे हैं। वह न केवल डॉक्टर हैं बल्कि दिलों को जोड़ने वाले एक समाजसेवी भी हैं, जो कहते हैं- “बरेली की पहचान अमन से है, नफरत से नहीं।”


डॉ. अनीस बेग कहते हैं, “दीवारें नहीं, पुल बनाओ… ताकि दिल से दिल जुड़ सके।” वह राजनीति में हैं, लेकिन उनकी राजनीति इंसानियत की है, उनका मिशन अमन है, उनका मकसद मोहब्बत है। कांवड़ यात्रा में उन्होंने पुष्प वर्षा करके दिखाया कि मुसलमान का दिल भी उतना ही विशाल है जितना गंगाजल से भरा हुआ कलश। उन्होंने रामलीला के मंच पर जाकर प्रभु राम के आदर्शों को अपनाने का संदेश दिया और हर धर्म के त्योहार- होली, दीपावली, बैसाखी को पूरे उल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं। यही नहीं, उन्होंने बार-बार साबित किया कि धर्म कोई दीवार नहीं, बल्कि इंसानियत की एक साझा छत है।


हाल ही में डॉ. अनीस बेग ने एक ऐसा आयोजन किया जिसने शहर की बगिया में मोहब्बत के फूल खिला दिए हैं। उन्होंने “एक शाम एकता के नाम” कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन किया जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबने एक ही मंच से इंसानियत का गीत गाया। कोई मंदिर से आया था, कोई मस्जिद से, पर सबकी आवाज़ में एक ही सुर था- अमन का, प्यार का, भाईचारे का और साथ रहने का।


समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी, प्रदेश सचिव शुभलेश यादव सहित शहर के वो नेता भी इस आयोजन में पहुंचे जिन्हें दिनभर पुलिस ने घरों में रोके रखा था, पर जब उन्हें पता चला कि मंच पर मोहब्बत की बात हो रही है- तो वो रुक न सके।

उन्होंने कहा, “आज बरेली को ऐसे सिपाही की ज़रूरत है जो जहर नहीं, प्यार बोए और डॉ. अनीस बेग वही सिपाही हैं।” इस कवि सम्मेलन और मुशायरे ने पूरे शहर को एक धागे में पिरो दिया। इस कार्यक्रम में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई, हर मज़हब, हर समुदाय के लोग उमड़ पड़े।


अनीस बेग का मानना है कि “कला और संस्कृति वह धागा है जो समाज के टूटे हुए टुकड़ों को जोड़ देता है।” उन्होंने शायरों, कवियों, कलाकारों को मंच दिया ताकि उनके शब्द समाज में नई जान फूंक सकें। इस मुशायरे में मणिका दुबे, मध्यम सक्सेना, शरीक कैफ़ी, वसीम नाजिर, सलमान सईद जैसे शायरों ने जब मोहब्बत के शेर पढ़े, तो मानो हर शेर शहर की आत्मा पर मरहम बनकर गिरा।
“कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कभी गुरुद्वारा देखो,
सब जगह एक ही रौशनी है, ज़रा दिल से देखा करो।”
डॉ. अनीस बेग के लिए धर्म कोई पहचान नहीं, बल्कि इंसानियत की एक साझा भाषा है।

 

उन्होंने बार-बार कहा है, “हमारा मज़हब हमें बांटता नहीं, हमें इंसान बनना सिखाता है।” डॉ. अनीस बेग राजनीति में हैं, लेकिन उनके भीतर एक फकीर बसता है, जो मानता है कि नफरत से कोई जीत नहीं सकता, मोहब्बत ही असली ताकत है। उनका हर काम, हर पहल यह बताती है कि बरेली की असली पहचान तलवार नहीं, तरन्नुम है; दीवार नहीं, दरगाह है।

आज जब वैचारिक खाई बढ़ रही है, बरेली में एक डॉक्टर मोहब्बत का मरहम लगा रहा है।
वह मुस्कुराकर कहते हैं, “मुझे सियासत नहीं करनी, मुझे दिलों का इलाज करना है।” और सच में, जब उनके जैसे लोग अमन का पैगाम लेकर आगे बढ़ते हैं, तो शहर की हवा बदल जाती है और बरेली फिर वही नगरी बन जाती है, जहां हर गली में इंसानियत की खुशबू बसी होती है।


डॉ. अनीस बेग की सियासत किसी पार्टी या वोट तक सीमित नहीं है। वह दिलों की सियासत करते हैं- जहां न कोई विरोधी है, न कोई दूसरे धर्म या जाति का। उनकी बातें लोगों के दिलों में उतरती हैं क्योंकि वे सिर्फ भाषण नहीं देते, उदाहरण भी पेश करते हैं। कांवड़ियों पर फूल बरसाना, रामलीला के मंच पर जाना, या दीपावली, होली एवं ईद पर मिठाई बांटना, उनके हर कदम में एक ही संदेश छिपा है, “धर्म अलग हो सकते हैं, पर इंसान एक ही है।”


डॉ. अनीस बेग ने जो काम किया, वह राजनीति से कहीं ऊपर है। वह दिलों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, नफरत के जख्मों पर मरहम लगा रहे हैं। बरेली की मिट्टी में जो गंगा-जमुनी तहजीब सदियों से बसी है, उसे उन्होंने अपने कर्म से फिर जगा दिया है। बरेली में अनीस बेग जैसे लोग उम्मीद की वो किरण हैं जो याद दिलाते हैं-
“फिजा चाहे कितनी भी बदल जाए,
मोहब्बत की खुशबू मिट नहीं सकती।”
डॉ. अनीस बेग कहते हैं, “सियासत अगर इंसानियत के लिए नहीं है, तो वो सिर्फ कुर्सी की लड़ाई है। मैं राजनीति में हूं, पर मेरा मकसद इंसानियत की सेवा है। बरेली की पहचान अमन से है, मैं उसी पहचान को बचाए रखने की कोशिश कर रहा हूं।” इस मुशायरे में ज्ञानी काले सिंह, अश्विनी ओबरॉय जैसे समाजसेवी भी मौजूद रहे जो गैर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस आयोजन में प्रजापति, वाल्मीकि समाज के लोगों को भी सम्मानित किया गया। पीडीए समाज को मंच पर सम्मान दिया गया।
बहरहाल, बरेली आज फिर वही कर रही है जिसके लिए वह जानी जाती है- अमन, एकता और मोहब्बत की सरज़मीं बनने के लिए। और इस फिजां में अनीस बेग की भूमिका किसी ठंडी हवा के झोंके जैसी है, जो दिलों को सुकून देती है और याद दिलाती है कि नफरत हारती है, मोहब्बत जीतती है।

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