नीरज सिसौदिया, बरेली
यूपी की सियासी पिच पर चाचा-भतीजे की सियासी जुगलबंदी नए समीकरण बनाती नजर आ रही है. खास तौर पर बरेली की दो विधानसभा सीटों पर टिकट की आस लगाए बैठे सपा नेताओं की फौज को झटका लग सकता है. इनमें बिथरी चैनपुर विधानसभा सीट से सपा के पूर्व जिला अध्यक्ष और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के वर्तमान जिला अध्यक्ष वीरपाल सिंह यादव और कैंट विधानसभा सीट से डा. मो. खालिद का नाम फाइनल बताया जा रहा है. हालांकि, डा. खालिद के मामले में कुछ पेंच हैं लेकिन वीरपाल के नाम पर अखिलेश यादव की भी मुहर लग चुकी है.
दरअसल, आगामी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव कोई रिस्क नहीं लेना चाहते. वह हर हाल में चुनाव जीतना चाहते हैं. चूंकि इस बार कांग्रेस प्रियंका गांधी के नेतृत्व में एकला चलो की रणनीति पर काम कर रही है और बुआ जी बबुआ का साथ नहीं देने वाली इसलिए अखिलेश यादव ने नई रणनीति पर काम तेज कर दिया है. इस बार अखिलेश यादव की नजर सिर्फ जीत पर है. कांग्रेस और बसपा से इतर अखिलेश की नजर उन छोटे-छोटे स्थानीय संगठनों पर है जो वोटकटवा साबित हो सकते हैं. इन दलों को सपा के पाले में लाने की जिम्मेदारी चाचा को सौंपी गई है. सपा मुख्यालय के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच कई दौर की बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि सपा लगभग तीन सौ सीटें अपने खाते में रखेगी और बाकी सीटें चाचा की पार्टी सहित विभिन्न स्थानीय दलों के प्रतिनिधियों को दी जाएंगी.
अखिलेश भी चाहते हैं कि चाचा की पार्टी से गठबंधन का उम्मीदवार विशेषकर उन नेताओं को बनाया जाए जिन्होंने नेता जी मुलायम सिंह के साथ 20-25 साल तक न सिर्फ वफादारी निभाई बल्कि पार्टी को एक मजबूत मुकाम तक भी पहुंचाया. सियासी सूत्र बताते हैं कि वीरपाल सिंह का नाम बिथरी चैनपुर सीट से अखिलेश यादव के समक्ष प्रस्तावित भी हो चुका है और अखिलेश ने यह सीट प्रसपा के लिए छोड़ने का निर्णय भी ले लिया है लेकिन फिलहाल चुनाव दूर होने की वजह से इसकी आधिकारिक तौर पर घोषणा नहीं की गई है. सियासी सूत्र पंचायत चुनाव के बाद तस्वीर और साफ होने की उम्मीद जताई जा रही है. वीरपाल का नाम फाइनल होने के पीछे अखिलेश की मंशा जिताऊ प्रत्याशी उतारने की है और बिथरी से सपा के पास कोई भी इतना दमदार नेता नहीं है जो भाजपा विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल से लोहा ले सके.
वहीं कुछ ऐसा ही हाल कैंट विधानसभा सीट पर भी नजर आ रहा है. यहां से वैसे तो सपा से कई दावेदार कतार में हैं लेकिन अनुभवी और एक ऊंचा कद रखने वाला कोई बड़ा नेता इस सीट पर सपा के पास नहीं है. दरअसल, जब तक मुलायम सिंह यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे तब तक वीरपाल सिंह यादव जिला अध्यक्ष और डा. खालिद महानगर अध्यक्ष रहे. इन दोनों ही नेताओं ने 25 वर्षों तक मुलायम सिंह से पूरी वफादारी निभाई लेकिन किसी और नेता को बरेली में सपा का चेहरा नहीं बनने दिया. नतीजा यह हुआ कि जब सपा से ये दोनों नेता अलग हुए तो सपा के पास कोई दिग्गज उक्त सीटों पर नहीं रह गया. उस पर सपा के नए जिला अध्यक्ष अगम मौर्य के कमजोर नेतृत्व की वजह से पार्टी बिखरती जा रही है. ऐसे में इन दोनों सीटों पर अखिलेश यादव ऐसे व्यक्ति पर दांव खेलना चाहते हैं जो भले ही उनकी पार्टी का न हो पर विधानसभा में उनकी सीटों का आंकड़ा बढ़ाने में सक्षम जरूर हो. पिछले विधानसभा चुनाव में ऐन वक्त पर डा. खालिद की जगह कैंट विधानसभा सीट से जफर बेग को उतारने का खामियाजा अखिलेश यादव आज तक भुगत रहे हैं, इसलिए अबकी बार वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. बताया जाता है कि इस सीट पर डा. खालिद की मजबूर पैरवी होने की वजह से अखिलेश इस सीट को छोड़ने पर भी विचार के लिए तैयार हो गए हैं. हालांकि चर्चा तो यहां तक है कि कैंट सीट से भाजपा के कुछ दिग्गज भी अखिलेश यादव के संपर्क हैं लेकिन भाजपा सरकार के डर से अभी अखिलेश भगवा ब्रिगेड को तोड़ना नहीं चाहते. सूत्र बताते हैं कि अखिलेश चुनाव से ठीक पहले यह झटका देने की तैयारी कर रहे हैं. सपा का कुनबा तो अब बढ़ने लगा है लेकिन अभी उसमें भगवा रंग नहीं मिला है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे वैसे-वैसे बदलाव भी देखने को मिलेगा. हालांकि पंचायत चुनाव के परिणाम भी काफी हद तक अगली रणनीति तय करेंगे.
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