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कैंट विधानसभा सीट : मौलाना तौकीर रजा और हाजी इस्लाम बब्बू का मेल बिगाड़ने लगा सुप्रिया का खेल, भाजपा को सीधी टक्कर देते दिख रहे बब्बू, जानिये कैसे?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली में मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस में हाजी इस्लाम बब्बू की उम्मीदवारी ने नई जान फूंक दी है। वहीं, मौलाना तौकीर रजा का समर्थन मिलने के बाद कैंट विधानसभा सीट पर विधानसभा का सियासी घमासान त्रिकोणीय हो गया है।
दरअसल, कैंट विधानसभा सीट पर इस बार सबकी निगाहें लगभग डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी हैं। भारतीय जनता पार्टी पहले से ही मानकर चल रही है कि मुस्लिम वोट उसे उम्मीद के मुताबिक नहीं मिलने वाला। समाजवादी पार्टी का जिस तरह से हिन्दू प्रेम जागा है उससे भी यही प्रतीत होता है कि सपा यह मान चुकी है कि हिन्दू वोटर भाजपा का ही वोट बैंक है। यही वजह है कि सपा उम्मीदवार से लेकर चुनाव प्रचार तक सबसे ज्यादा जोर हिन्दुओं पर ही दे रही है। शायद उन्हें यह लग रहा है कि हिन्दू मतदाता इतना बेवकूफ है कि उसे सपा का चुनावी हिन्दू प्रेम समझ में नहीं आने वाला। इसी बीच सबसे धमाकेदार एंट्री रही कांग्रेस प्रत्याशी हाजी इस्लाम बब्बू की। बब्बू दंपति वर्ष 1995 से लगातार पार्षद बनते आ रहे हैं। वह मुस्लिम समाज से हैं और उसी अंसारी समाज से ताल्लुक रखते हैं जिस समाज ने कैंट विधानसभा सीट को सात बार विधायक दिए हैं। इस बार उस समाज के समक्ष वजूद बचाने की चुनौती है। कांग्रेस यह अच्छी तरह जानती थी कि अकेले अंसारी समाज के दम पर कैंट को फतह करना मुमकिन नहीं है। यही वजह है कि उसने आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा का साथ लिया। अब जो समीकरण बनते नजर आ रहे हैं उसमें अंसारी वोटों के साथ ही मौलाना तौकीर रजा समर्थित वोट भी जुड़ गए। चूंकि बब्बू जमीनी नेता हैं इसलिए बड़ी तादाद में वाल्मीकि समाज भी उनसे जुड़ा हुआ है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चूंकि सुप्रिया ऐरन हिन्दू समाज से आती हैं इसलिए वह कुछ हिन्दू वोट जरूर ले सकती हैं लेकिन इतने हिन्दू वोट नहीं ले सकती हैं जिससे कि अकेले हिन्दू वोटों के दम पर ही जीत हासिल कर लें। वहीं, हाजी इस्लाम बब्बू को अगर मुस्लिम वोट एकतरफा मिल जाता है तो वह कुछ वाल्मीकि वोट हासिल करके विधानसभा की जंग जरूर जीत सकते हैं। चूंकि बब्बू मुस्लिम प्रत्याशी हैं इसलिए उन्हें एकतरफा मुस्लिम वोट पड़ने पर जीत की उम्मीद की जा सकती है लेकिन समाजवादी पार्टी को एकतरफा मुस्लिम वोट इसलिए पड़ना असंभव है क्योंकि बब्बू और मौलाना तौकीर रजा अपना अलग सियासी वजूद रखते हैं जिसके दम पर बीस से पच्चीस हजार तक मुस्लिम वोट काटने में जरूर सक्षम हैं। मुस्लिम मतदाता यह बात अच्छी तरह जानता है कि अगर उसने सपा उम्मीदवार सुप्रिया ऐरन को वोट किया तो न तो सुप्रिया जीतेंगी और न ही बब्बू। ऐसे में भाजपा को हराने का उसका मकसद पूरा नहीं हो पाएगा लेकिन अगर हाजी इस्लाम बब्बू के पक्ष में मुस्लिम समाज एकजुट होता है तो भाजपा उम्मीदवार संजीव अग्रवाल, सपा उम्मीदवार सुप्रिया ऐरन और बसपा उम्मीदवार अनिल वाल्मीकि सहित लगभग आधा दर्जन हिन्दू उम्मीदवारों के बीच हिन्दू वोटों का बंटवारा हाजी इस्लाम बब्बू की जीत सुनिश्चित कर सकता है।
सूत्र बताते हैं कि जिले का एक बहुत बड़ा मुस्लिम नेता भी अंदरखाने बब्बू की पूरी मदद कर रहा है जिसका कैंट विधानसभा सीट पर वर्चस्व है और सुप्रिया ऐरन के पति प्रवीण सिंह ऐरन से उस नेता का छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। यही वजह है कि अब सपा के मुस्लिम कार्यकर्ताओं को छोड़कर आम मुस्लिम मतदाता हाजी इस्लाम बब्बू को विधानसभा भेजने के लिए एकजुट होने लगा है।
फिलहाल, कैंट सीट का मुकाबला त्रिकोणीय हो चुका है। यहां अब असली लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच नजर आने लगी है। आगामी तीन दिनों में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा यह कहना फिलहाल मुश्किल है लेकिन इतना जरूर तय है कि बब्बू इस मुकाबले का केंद्र बन चुके हैं।

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