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प्रत्याशियों से भी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं मेयर उमेश गौतम, सुबह आठ से रात दस बजे तक करते हैं जनसंपर्क, जानिये क्या है मेयर का शेड्यूल?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
मैदान चाहे खेल का हो या सियासत का, बिना मजबूत टीम के जीत हासिल करना नामुमकिन होता है। जिसके खिलाड़ी जितने माहिर होंगे जीत भी उसी की होगी। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी बरेली महानगर में लगातार जीत दर्ज कराती आ रही है। वैसे तो भाजपा में सियासत के कई धुरंधर मौजूद हैं लेकिन एक चेहरा ऐसा है जो हर फन मौला है। सियासत की बाजी कैसे जीतनी है उसे बाखूबी मालूम है। संगठन के प्रति सेवा और समर्पण का उसका जज्बा भी किसी से छुपा नहीं है। सिर्फ बरेली महानगर ही नहीं बल्कि जिलेभर में इस चेहरे को चाहने वालों की भरमार है। यही वजह है कि इन दिनों यह शख्स प्रत्याशियों से भी ज्यादा मेहनत करता नजर आ रहा है क्योंकि प्रत्याशियों को तो सिर्फ अपने विधानसभा की ही गलियां मापनी होती हैं मगर यह शख्स पूरे जिले में स्टार प्रचारक की तरह काम कर रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बरेली के मेयर डा. उमेश गौतम की।

वैसे तो उमेश गौतम खुद भी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया। उमेश गौतम ने इन परिस्थितियों को भी अवसर की तरह लिया और कोपभवन की जगह महानगर की गलियों और गांवों की पगडंडियों को चुना। वह जानते हैं कि संगठन के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण भाव को साबित करने का इससे बेहतर अवसर उन्हें नहीं मिल सकता। इसलिये उन्होंने बरेली जिले की हर सीट पर भाजपा को विजयी बनाने का संकल्प लिया और जुट गए प्रचार अभियान में। उमेश गौतम के निजी सचिव सुभाष पांडेय बताते हैं, “मेयर साहब इन दिनों पूरे तन, मन, धन से संगठन की जीत के लिए कार्य कर सेवा हैं। वह सुबह आठ बजे जनसंपर्क और सभाओं के लिए निकल पड़ते हैं और देर रात करीब दस बजे तक बैठकों और जनसंपर्क का सिलसिला चलता रहता है। कभी-कभी तो घर वापसी करते-करते रात के बारह-एक भी बज जाते हैं।”

मेयर उमेश गौतम की दिनचर्या इतनी व्यस्त क्यों है जबकि वह तो प्रत्याशी भी नहीं हैं, पूछने पर सुभाष पांडेय कहते हैं, “शहर का प्रथम नागरिक होने की वजह से मेयर साहब पर जिम्मेदारियों का बोझ ज्यादा है। महानगर की दोनों सीटों के साथ ही जिले की अन्य सीटों पर भी मेयर साहब का अच्छा रसूख है, इसलिए उन सीटों पर स्टार प्रचारक के तौर पर मेयर साहब की डिमांड ज्यादा है। फिर चाहे वह बिथरी सीट हो, आंवला हो, फरीदपुर हो या कोई अन्य सीट। इसके अलावा चुनाव के चलते पार्टी के आला नेताओं का भी आना-जाना लगा रहता है, उनमें भी मेयर साहब की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है। महानगर की दोनों सीटों पर तो स्थानीय पार्षद भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में मेयर साहब की जिम्मेदारी और महत्वपूर्ण हो जाती है। यही वजह है कि मेयर साहब सुबह से लेकर देर रात तक जन संपर्क और बैठकों में ही व्यस्त रहते हैं।”
मेयर उमेश गौतम लगातार पार्टी की जीत के लिए प्रयासरत हैं। उनका मकसद किसी भी हाल में भाजपा प्रत्याशी को जिताना और उत्तर प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनाना है।

टिकट की दावेदारी करते वक्त मेयर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि पार्टी चाहेगी तो वह विधानसभा का चुनाव जरूर लड़ेंगे लेकिन अगर पार्टी उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाएगी तो पार्टी जिसे प्रत्याशी बनाएगी वह उस प्रत्याशी को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे। मेयर उमेश गौतम ने जो कहा वह कर दिखाया है। उनकी व्यस्त दिनचर्या और जनसंपर्क से लेकर आला नेताओं के कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी इस बात का जीता जागता सुबूत है कि मेयर उमेश गौतम की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। बहरहाल, उमेश गौतम की यह मेहनत क्या रंग लाती है इसका पता तो आगामी दस मार्च को ही चलेगा।

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