नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा का सियासी संग्राम भले ही साढ़े सात माह बाद होना है लेकिन टिकट के लिए घमासान अभी से शुरू हो गया है. कैंट विधानसभा सीट पर जहां पहले समाजवादी पार्टी से मजबूत दावेदारों का टोटा नजर आ रहा था वहीं अब एक-एक कर छुपे रुस्तम बाहर आने लगे हैं. समाजवादी पार्टी के चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डा. अनीस बेग के बाद अब कैंट विधानसभा सीट से एक और मजबूत चेहरा सामने आया है जिसका नाम मो. फिरदौस खां उर्फ अंजुम भाई है. अंजुम वह शख्स हैं जो लगभग बीस साल पहले इलाके के नामी हिस्ट्रीशीटर और दो बार के पार्षद आसिफ गुल्ला खां को हराकर पार्षद बने थे. पहली बार में ही दिग्गज नेता को शिकस्त देने वाले अंजुम भाई अपने राजनीतिक करियर में कभी भी चुनाव नहीं हारे. पिछली बार अंजुम हजियापुर वार्ड से लड़े थे तो भी जीत कर निगम सदन पहुंचे थे. इस बार अंजुम का वार्ड महिला आरक्षित हो गया था तो अंजुम ने अपनी पत्नी दुर्रे शहवार को मैदान में उतारा और अंजुम की पत्नी पति की उम्मीदों पर पूरी तरह खरी उतरीं. नतीजतन एक बार फिर वार्ड 62 चक महमूद की सीट अंजुम परिवार की झोली में आ गिरी. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में अंजुम ने समाजवादी पार्टी से टिकट की मांग की थी लेकिन उस वक्त अनुभव की कमी और जूनियर होने के नाते अंजुम को टिकट नहीं मिल सका था.
अंजुम के पास उस वक्त दस साल का राजनीतिक अनुभव था. अपनी ताकत को परखने के लिए अंजुम आजाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे और अपने दम पर लगभग नौ हजार वोट हासिल किए. उस वक्त यह तो साबित हो गया कि अंजुम अपने दम पर जीत भले ही हासिल न कर सकें मगर दूसरों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं. वर्ष 2017 में अंजुम चुनाव नहीं लड़ सके क्योंकि कैंट विधानसभा सीट महागठबंधन के कारण कांग्रेस के खाते में चली गई थी. अंजुम ने पिछले दस वर्षों में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर इलाके में अपना प्रभाव बढ़ाया और दिन रात लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहे. यही वजह है कि आज सिर्फ उनके वार्ड के ही नहीं बल्कि पूरे कैंट विधानसभा क्षेत्र के लोग उनके पास फरियाद लेकर आते हैं और अंजुम फरियादियों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतरने का प्रयास भी करते हैं. अंजुम की तैयारी पूरी है और कैंट विधानसभा सीट पर डा. अनीस बेग के अलावा फिलहाल अंजुम का कोई भी मजबूत प्रतिद्वंदी नजर नहीं आ रहा. मुकाबला दिलचस्प है. ऐसे में टिकट किसके पाले में जाएगा यह कहना फिलहाल मुश्किल है. बहरहाल, कैंट से अगर समाजवादी पार्टी मुस्लिम प्रत्याशी उतारती है तो मो. फिरदौस की दावेदारी को नकारना आसान नहीं होगा. हालांकि अगर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन होता है तो यह सीट डा. मो. खालिद के पाले में जा सकती है. इसके संकेत पार्टी के आला नेता पहले ही दे चुके हैं.