नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली नगर निगम में टेंडर के खेल में मेयर उमेश गौतम और पार्षद सर्वेश रस्तोगी की गर्दन फंसती नजर आ रही है। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर टेंडर हासिल करने का आरोप लगाकर विगत 25 अगस्त को हुई नगर निगम बोर्ड की बैठक में जिन फर्मों को ब्लैक लिस्ट करने का प्रस्ताव लाया गया था अब वह प्रस्ताव ही उक्त नेताओं के गले की फांस बनता जा रहा है। ब्लैक लिस्ट के लिए प्रस्तावित कंपनियों के मालिकों ने फर्जी दस्तावेज जमा करने की बात को सिरे से खारिज कर दिया है। एक कंपनी मालिक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दरबार में गुहार लगाने और नगर निगम में चल रहे टेंडर के काले खेल को पूरी तरह बेनकाब करने की चेतावनी दी है। आइये जानते हैं कि टेंडर के इस खेल में उमेश गौतम और सर्वेश रस्तोगी कैसे घिरते नजर आ रहे हैं?
दरअसल, ये टेंडर 7 मार्च 2023 का है। उस वक्त चार कंपनियों ने टेंडर डाले थे। इनमें परिवर्तन, हिमगिरि, सत साईं और आदर्श श्री एंटरप्राइजेज कंपनियां शामिल थीं। इनमें हिमगिरि और सत साईं कंपनियां गौरव चौहान नाम के ठेकेदार की बताई जा रही हैं। टेंडर की समयसीमा 90 दिन की थी लेकिन लगभग आठ-नौ माह बाद टेंडर ओपन किए गए। दिलचस्प बात यह है कि टेंडर ओपन होने से पहले ही नगर निगम को यह कैसे पता चल गया कि दस्तावेज फर्जी हैं?
आदर्श श्री एंटरप्राइजेज के मालिक सुधांशु सक्सेना ने इस प्रस्ताव को पूर्वाग्रह से प्रेरित बताते हुए कहा, ‘मैंने टेंडर डाला था लेकिन माधवी कंस्ट्रक्शन की ओर से कोई टेंडर नहीं डाला गया था। मैंने जिस साइबर कैफे से टेंडर डाला था वहां से दस्तावेज अपलोड करने में गड़बड़ी हुई और माधवी कंस्ट्रक्शन कंपनी के दस्तावेज गलती से अपलोड हो गए जिसका एफिडेविट भी संबंधित साइबर कैफे ऑपरेटर की ओर से दिया जा चुका है। अगर प्रस्ताव डालने वाले ने यह आरोप लगाया है कि हमने गलत तरीके से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर टेंडर हासिल करने का प्रयास किया है तो सिर्फ हम दो ही कंपनियों को टार्गेट क्यों किया गया, बाकी की तीन कंपनियों को क्यों छोड़ दिया गया?’ उन्होंने कहा कि मामला फर्जी दस्तावेज जमा करने का नहीं है बल्कि गलत दस्तावेज अपलोड करने का है। इन परिस्थितियों में शॉर्ट फॉल के तहत नगर निगम की ओर से दस्तावेज मांगे जाते रहे हैं लेकिन इस मामले में ऐसा क्यों नहीं किया गया? जब टेंडर हमें दिया ही नहीं गया तो फिर हमें ब्लैक लिस्ट करने की प्रक्रिया किस आधार पर की जा रही है? चूंकि हमने कमीशन नहीं दिया इसलिए हमारे खिलाफ इस तरह की साजिश रची जा रही है लेकिन हम चुप नहीं बैठेंगे। हम इस मामले को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दरबार तक ले जाएंगे और उन्हें नगर निगम के इस पूरे खेल के बारे में बताएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि नगर निगम ने उसी दिन उन्हीं दस्तावेजों पर उन्हें एक अन्य टेंडर अलॉट किया तो फिर वो फर्जी दस्तावेज क्यों लगाएंगे? अगर टेंडर पूल करने का प्रयास किया गया तो टेंडर डालने वाली सभी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए थी लेकिन चहेते ठेकेदारों को टेंडर भी दे दिए गए।
बता दें कि नगर निगम की ओर से 16 सितम्बर को जारी किए गए 25 अगस्त की बोर्ड बैठक के कार्यवृत्त में कहा गया है, ‘माधवी कंस्ट्रक्शन और आदर्श कंस्ट्रक्शन (आदर्श श्री एंटरप्राइजेज) को ब्लैक लिस्ट किए जाने के संबंध में अधोहस्ताक्षरी द्वारा तत्काल प्रभाव से निर्देशित किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ अधिक कठोर कार्यवाही करते हुए इन दोनों फर्मों जिन्होंने फर्जी कागजात लगाकर नगर निगम में कार्य लेने का प्रयास किया, ब्लैक लिस्ट करने व इनके विरुद्ध एफआईआर करने के लिए अपर नगर आयुक्त, मुख्य अभियंता एवं नगर आयुक्त लेखाधिकारी की कमेटी गठित करने का निर्देश दिया गया है। कमेटी से 30 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।’
यह कार्यवृत्त मेयर उमेश गौतम के हस्ताक्षर से जारी किया गया है जबकि नगर निगम के अधिनियम के अनुसार इसे नगर आयुक्त के हस्ताक्षर से जारी किया जाना चाहिए था। स्पष्ट है कि नगर आयुक्त से लेकर नगर निगम के अधिकारी राजनैतिक दबाव में काम कर रहे हैं। बहरहाल, नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार का यह खेल अब उग्र रूप लेने जा रहा है। कमीशन के खेल से दूरी बनाने वाले ठेकेदारों का आक्रोश अब चरम पर है। हैरानी की बात तो यह है कि एक ठेकेदार कायस्थ बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। बरेली में कायस्थ समाज भाजपा का कोर वोटर है। शहर विधानसभा सीट पर यह वोट निर्णायक भूमिका अदा करता है। सुधांशु सक्सेना के साथ नगर निगम के इस रवैये से स्पष्ट है कि कायस्थ समाज को भाजपा से दूर करने की भी साजिश रची जा रही है। इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को उठाना पड़ सकता है।
पीडब्यूडी सहित विभिन्न विभागों में 25 से 30 प्रतिशत कम दर पर आवंटित हो रहे टेंडर तो नगर निगम में क्यों नहीं?
नगर निगम में चल रहे टेंडर के खेल का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पीडब्ल्यूडी सहित अन्य विभागों में जब टेंडर आवंटित किए जा रहे हैं तो नगर निगम में टेंडर उसी रेट पर या सिर्फ दो-तीन प्रतिशत ही कम रेट पर क्यों आवंटित किए जा रहे हैं? इससे सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
इस संबंध में जब मेयर उमेश गौतम से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका। वहीं, जब सर्वेश रस्तोगी को फोन किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। अगर वो चाहें तो मोबाइल नंबर 6284370451 पर फोन करके या वॉट्सएप के माध्यम से अपना पक्ष दे सकते हैं, हम उसे भी प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे।