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डीडी पुरम से मूर्ति नर्सिंग होम तक सड़क पर पिट घोटाला: निगम–बिजली विभाग–ठेकेदार की मिलीभगत से 90 लाख की चपत लगाने की तैयारी, जानिये निगम के चीफ इंजीनियर मनीष अवस्थी, जेई पटेल के कारनामे और क्या बोले नगर आयुक्त संजीव मौर्य

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नीरज सिसौदिया, बरेली

डीडी पुरम से मूर्ति नर्सिंग होम तक जाने वाली सड़क पर भूमिगत केबल डालने के नाम पर नगर निगम और बिजली विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत का ऐसा मामला सामने आया है जिसने भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है। नियमों की अनदेखी कर दर्जनों गड्ढे खोद दिए गए और नगर निगम के राजस्व को करीब 90 लाख रुपये का नुकसान पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। शिकायत के बावजूद कार्रवाई के बजाय लीपापोती का खेल शुरू कर दिया गया।

मामला कैसे शुरू हुआ

23 मई 2025 को बिजली विभाग (11 केवी) के अधिशासी अभियंता ने बरेली नगर निगम के मुख्य अभियंता मनीष अवस्थी को पत्र लिखा। पत्र में कहा गया कि डीडी पुरम से मूर्ति नर्सिंग होम तक सड़क पर भूमिगत केबल डालने का काम कराया जाना है, अतः इस कार्य हेतु अनुमति प्रदान की जाए।

गौर करने वाली बात यह है कि इस पत्र में कहीं भी यह नहीं लिखा गया था कि कितने पिट खोदने होंगे।

निगम की संदिग्ध मंजूरी

23 मई 2025 को ही, यानी पत्र लिखे जाने के दिन ही, नगर निगम के मुख्य अभियंता मनीष अवस्थी और जेई पटेल ने अनुमति स्वीकृत भी कर दी। नियमों के अनुसार पहले रोड कटिंग या गड्ढा खोदने का एस्टीमेट बनता है, फिर ठेकेदार को तय राशि निगम में जमा करनी पड़ती है, तभी काम शुरू हो सकता है। लेकिन इस मामले में न तो एस्टीमेट बना और न ही पैसा जमा हुआ।

यानी बिना किसी वित्तीय प्रक्रिया के सीधे अनुमति दे दी गई और काम शुरू हो गया।

बिजली विभाग के पत्र में पिट की संख्या का कोई जिक्र नहीं था। इसके बावजूद निगम अधिकारियों ने अपने स्तर पर 42 पिट खोदने की अनुमति दे दी। यह भी साफ नहीं है कि उन्होंने 42 का आंकड़ा किस आधार पर लिखा।

ठेकेदार की चालबाज़ी

बिजली विभाग ने यह काम एक प्राइवेट एजेंसी को दिया। इस एजेंसी ने निगम से तो केवल 2 पिट खोदने की अनुमति ली, लेकिन असल में 42 पिट खोद डाले।

इसका फायदा यह हुआ कि ठेकेदार को बिजली विभाग से 42 पिट का भुगतान होता, जबकि निगम को सिर्फ 2 पिट का पैसा ही मिलता। इस तरह से निगम को लगभग 90 लाख रुपये का सीधा नुकसान हुआ। यही रकम अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच बंटने का अंदेशा जताया जा रहा है।

यह मामला तब खुला जब व्यापारी नेता राजकुमार मल्होत्रा ने नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य से लिखित शिकायत की। शिकायत में साफ कहा गया कि गड्ढे बिना अनुमति और नियमों के खोदे गए हैं।

राजकुमार मल्होत्रा

इस शिकायत पर 26 जून 2025 को नगर आयुक्त ने जांच के आदेश जारी कर दिए। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जांच का जिम्मा उसी मुख्य अभियंता को सौंप दिया गया, जो खुद इस मामले में आरोपी बताए जा रहे हैं।

शिकायतकर्ता ने इस पर टिप्पणी भी की—“जब मुजरिम ही मुंसिफ हो जाए तो देश कहां जाएगा।”

मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत

नगर निगम की जांच पर भरोसा न होने के कारण राजकुमार मल्होत्रा ने इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी कर दी।

इस पर 5 अगस्त 2025 को नगर निगम के जेई पटेल ने निस्तारण रिपोर्ट दाखिल की। रिपोर्ट में लिखा गया—

  • बिजली विभाग के अधिशासी अभियंता ने 2 पिट खोदने का अनुरोध किया था।

  • मुख्य अभियंता ने 2 पिट की अनुमति दी।

  • लेकिन किसी ने पत्र में छेड़छाड़ कर “2” की जगह “42” कर दिया।

  • बाद में बिजली विभाग से क्षतिपूर्ति की मांग के लिए आगणन तैयार कर उन्हें भेज दिया गया।

अब अगर नगर निगम के अधिकारी की यह बात सही भी मान ली जाए कि किसी ने पत्र में छेड़छाड़ कर 2 की जगह 42 कर दिया तो फिर बिजली विभाग के इस कथित फर्जीवाड़े के खिलाफ एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई गई।

विरोधाभासों का खेल

यहीं से मामला और उलझ गया।

  • 25 जून 2025 को मुख्य अभियंता ने बिजली विभाग को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने साफ कहा कि “आपके पत्र के आधार पर केवल 2 पिट खोदने की अनुमति दी गई थी। लेकिन क्षेत्रीय अभियंता की आख्या के अनुसार आपने 35 पिट खोद दिए हैं। इसकी शिकायत स्थानीय पार्षद कपिलकांत ने भी की है। अतः वित्तीय क्षतिपूर्ति करें।”

  • दूसरी तरफ, नगर निगम की ओर से बिजली विभाग को जो आगणन भेजा गया, उसमें सिर्फ 10 पिट की क्षतिपूर्ति 23 लाख रुपए दिखाई गई।

  • वहीं, मुख्यमंत्री पोर्टल पर भेजी गई जेई पटेल की रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि “42 पिट खोदे गए हैं।”

यानी तीन अलग-अलग तथ्य सामने आए—

  1. अनुमति: 2 पिट

  2. मुख्य अभियंता की रिपोर्ट: 35 पिट

  3. जेई पटेल की रिपोर्ट: 42 पिट

  4. आगणन: 10 पिट

इस विरोधाभास ने साफ कर दिया कि मामला सिर्फ गड़बड़ी का नहीं, बल्कि सोची-समझी मिलीभगत का है।

पार्षद की शिकायत

इलाके के पार्षद कपिलकांत ने भी निगम को शिकायत दी थी कि इलाके में जरूरत से ज्यादा गड्ढे खोदे गए हैं। उन्होंने बताया कि सड़क की हालत खराब हो गई है और लोगों को भारी दिक्कत हो रही है।

कपिलकांत सक्सेना

लेकिन निगम अधिकारियों ने पार्षद की शिकायत को भी गंभीरता से लेने के बजाय मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की।

जनता परेशान

डीडी पुरम से मूर्ति नर्सिंग होम तक सड़क शहर के महत्वपूर्ण मार्गों में से एक है। रोजाना हजारों लोग इस सड़क से गुजरते हैं। 42 गड्ढे खोदे जाने से सड़क की हालत बदतर हो गई है।

जहां-तहां गड्ढों के कारण वाहनों का निकलना मुश्किल हो गया है। दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है। स्थानीय लोगों ने कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

90 लाख की चपत

पूरा खेल पैसों का है।

  • ठेकेदार को बिजली विभाग से 42 पिट का भुगतान मिलने वाला है।

  • नगर निगम को 42 पिट का पैसा जमा करने की जगह केवल 2 पिट का पैसा जमा करने की तैयारी है।

  • यानी 40 पिट का पैसा सीधे गायब करने की तैयारी है।

 इस घोटाले से निगम को लगभग 90 लाख रुपये का राजस्व नुकसान हो सकता है। यही रकम अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच बंटने का अंदेशा है।

सवालों के घेरे में निगम और बिजली विभाग

यह मामला कई गंभीर सवाल खड़े करता है—

  • बिजली विभाग के पत्र में संख्या का जिक्र नहीं था, फिर निगम अधिकारियों ने 42 पिट की अनुमति किस आधार पर लिखी?

  • बिना एस्टीमेट बनाए और पैसा जमा कराए काम क्यों शुरू किया गया?

  • 2, 10, 35 और 42—इन अलग-अलग आंकड़ों का जिम्मेदार कौन है?

  • आरोपी मुख्य अभियंता को ही जांच का जिम्मा क्यों दिया गया?

भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण

यह पूरा मामला दिखाता है कि किस तरह विभागीय अधिकारी और ठेकेदार मिलकर राजस्व की चोरी कर रहे हैं। जनता की गाढ़ी कमाई से बनी सड़कें अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार का शिकार हो रही हैं।

डीडी पुरम से मूर्ति नर्सिंग होम तक सड़क का यह “पिट घोटाला” सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि यह बताता है कि सरकारी सिस्टम में कैसे नियमों को ताक पर रखकर निजी फायदे के लिए खेल खेले जाते हैं।

क्या कहते हैं नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य

इस संबंध में नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने बताया कि बिजली विभाग को नोटिस जारी कर दिया गया है लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया है। जो भी क्षति हुई है उसका एस्टीमेट कराकर आगे की कार्रवाई नियमानुसार की जाएगी।

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