नीरज सिसौदिया, बरेली
किसी शायर ने कभी कहा था कि “दुश्मनी करो मगर याद रहे कि दोस्ती हो जाए तो शर्मिंदा न होना पड़े.” निश्चित तौर पर आज के सियासी परिवेश में यह सीख बेहद कारगर साबित हो सकती है. खासतौर पर तब जब दो दोस्त दुश्मन बने हों. ऐसे दुश्मनों के बीच दोस्ती की संभावनाएं कुछ ज्यादा रहती हैं क्योंकि उनके सिर्फ विचारों में दूरियां होती हैं दिलों में नहीं. इसका ताजा उदाहरण समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के रूप में देखा जा सकता है. अखिलेश यादव राजनीतिक कारणों के चलते अपने चाचा से दूर हुए और चाचा ने भी अपनी अलग पार्टी बना ली. पर दोनों ही दलों के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ही हैं. अखिलेश और शिवपाल के अलगाव के साथ ही बरेली के कुछ समाजवादी नेताओं ने शिवपाल यादव को पीठ पीछे अपशब्द कहना शुरू कर दिया. दिलचस्प बात यह है कि अखिलेश यादव आज भी चाचा का पूरा सम्मान करते हुए उनके पैर छूने से तनिक भी गुरेज नहीं करते पर उन्हीं की पार्टी के कुछ समाजवादी उनके चाचा शिवपाल यादव को गालियां देते नहीं थकते. कई बार सार्वजनिक मंच पर भी अखिलेश यादव चाचा के पैर छूते नजर आए हैं. फिर चाहे उन्हें अपना भाषण ही क्यों न रोकना पड़ा हो. अखिलेश यह बात बेहतर तरीके से समझते हैं कि राजनीति अपनी जगह है और पारिवारिक रिश्ते अपनी जगह. यही वजह है कि अखिलेश ने रिश्ते में इतनी गुंजाइश तो रखी ही है कि कल अगर चाचा के साथ हाथ मिलाना हो तो उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. चाचा ने भी रिश्तों की मर्यादा को तार तार बिल्कुल नहीं होने दिया. दोनों के बीच बातचीत का जो सिलसिला चल रहा है वह इसी की बानगी है. चाटुकारों और शुभचिंतकों के बीच का फर्क दोनों नेता बाखूबी जानते हैं इसलिए चाचा के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले समाजवादियों से अखिलेश भी नाखुश हैं. शिवपाल यादव तक यह मामला पहुंच भी चुका है कि बरेली के कौन-कौन से आला समाजवादी नेता हैं जो शिवपाल यादव के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं. शिवपाल यादव इन सभी नेताओं की लिस्ट तैयार कर रहे हैं. आगामा 10-11 जुलाई को शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच एक बैठक होनी है जिसमें समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के गठबंधन पर मुहर लगने की उम्मीद जताई जा रही है. वैसे तो अब चाचा-भतीजे के रिश्तों में नरमी आने लगी है. मामला सीटों के बंटवारे पर लटका हुआ था पर माना जा रहा है कि अब दोनों पक्ष सीटों को लेकर समझौतावादी नीति अपनाने को तैयार हैं. ऐसे में निश्चित तौर पर समाजवादी कुनबे में शिवपाल यादव की ससम्मान वापसी हो सकती है. ऐसे में उन समाजवादी नेताओं की शामत आनी भी तय है जो इन दिनों अखिलेश यादव की नजरों में नंबर बनाने के चक्कर में शिवपाल यादव के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते नजर आ रहे हैं. वे यह भूल गए हैं कि शिवपाल भले ही अलग पार्टी बना चुके हैं मगर समाजवादी पार्टी में आज भी उनके कुछ वफादार शामिल हैं जो हर छोटी बड़ी सूचना शिवपाल तक पहुंचाते रहते हैं. अखिलेश को भी ऐसे समाजवादी नेता बिल्कुल नहीं भा रहे. बहरहाल, चाचा-भतीजे के रिश्ते की नई शुरुआत के लिए 11 जुलाई तक इंतजार करना होगा. इस वार्ता में अगर कोई सकारात्मक फैसला होता है तो शिवपाल को गालियां देने वाले समाजवादियों की खैर नहीं. शिवपाल यादव वैसे भी बदले की नीति के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में पीठ पीछे उन्हें अपमानित करने वाले समाजवादियों का बचना नामुमकिन हो जाएगा.
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