झारखण्ड

लुगूबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ रू संताली संस्कृति व संविधान का सृष्टि-स्थल

ललपनिया से लौटकर रामचंद्र कुमार अंजाना प्रकृति में वन, पहाड़, नदी के बिना जीव-जन्तु की परिकल्पना नहीं की जा सकती। जल, जंगल, जमीन है तो जीवन है,यह परिकल्पना इसी से है।संताल समाज ने आदिकाल में ही इसे मान लिया था और प्रकृति की गोद में ही उनकी सभ्यता, संस्कृति पनपी और उनका अपना धर्म व […]