ललपनिया से लौटकर रामचंद्र कुमार अंजाना
प्रकृति में वन, पहाड़, नदी के बिना जीव-जन्तु की परिकल्पना नहीं की जा सकती। जल, जंगल, जमीन है तो जीवन है,यह परिकल्पना इसी से है।संताल समाज ने आदिकाल में ही इसे मान लिया था और प्रकृति की गोद में ही उनकी सभ्यता, संस्कृति पनपी और उनका अपना धर्म व संविधान भी यहीं से बना। जिसका साक्षात दर्शन है लुगूबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ । संताली समाज के रीति-रिवाजों, उनके जीने की कला और उनके जीवन-दर्शन का उद्गम स्थल है यह स्थान लुगूबुरु । क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यहीं पर हजारों वर्ष पूर्व लुगू बाबा की अध्यक्षता में संताली समाज के संविधान की रचना हुई जिसे संताली समाज आज भी मान रहा है । संताल समाज के धर्मगुरु ने हजारों वर्षों बाद भी प्रकृति से जुड़ी उन मान्यताओं को जीवित रखा है।
संताल समाज की असीम आस्था का केंद्र -लुगूबुरु से संताल समाज की असीम आस्था से जुड़े होने के कारण लोग इसे सबसे बड़ा तीर्थ स्थल मानते हैं। मान्यता है कि लुगू बाबा की अध्यक्षता में 12 वर्षों तक यहां के चट्टानों पर बैठ कर मंत्रणा की गई और संतालियों की गौरवशाली रीति-रिवाजों और संविधान की आधारशिला रखी गई। यहां रह कर संतालियों ने इसी स्थान पर खेती-बाड़ी की,धान को यहां के चट्टानों पर ही ओखली बना कर कूटा। यहां की शिलाओं पर उसके चिन्ह अभी भी देखे जा सकते हैं। यहीं पर बहते सीता नाला का पानी का लोगों ने उपयोग किया । यह पवित्र नाला जो लगभग 40 फुट नीचे जल प्रपात की तरह गिरता है अब सीता झरना के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोगों में यह छरछरिया झरना के नाम से भी प्रसिद्ध है। जबकि निकट में स्थित गुफा को लुगु बाबा का छटका कहते हैं। कहा जाता है कि लुगु बाबा इसी स्थान पर नहाते थे और इसी गुफा से होते हुए सात किलोमीटर ऊपर घिरी दोलान (गुफा) में जाकर रहते थे। इस गुफा के रास्ते लुगू बाबा के सच्चे भक्त ऊपर के गुफा तक पहुंच जाते थे।
सात देवी-देवताओं की होती है पूजा- संताली समाज शुरू से ही प्रकृति को ही माता -पिता व ईश्वर की तरह पूजते आये हैं। जिस चट्टान पर बैठकर लुगुबाबा का दरबार लगता था,वह अब दरबार चट्टानी के नाम से प्रसिद्ध है ।यहां दरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान ( मंदिर) में मरांग बुरु,लुगूबुरु,लुगु आयो,घांटाबाड़ी गो बाबा,कुड़ीकीन बुरु,कपसा बाबा और बीरा गोसाईं की पूजा की जाती है । साथ ही सीता झरना के पवित्र जल को श्रद्धालु बोतल में भरकर अपने साथ ले जाते हैं ।ऐसा विश्वास है कि पेट दर्द और अन्य रोगों में इस जल को पीने से लाभ होता है।
लुगूबुरु में बसी है हिंदुओं की भी आस्था – लुगूबुरु से संताली समाज ही नहीं अपितु हिंदू धर्मावलंबियों की भी आस्था जुड़ी हुई है। विशेष कर कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि, श्रावणमास, और मकर संक्रांति पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। पूजा स्थलों पर लोग भजन कीर्तन के लिए भी पहुंचते हैं। यहां पहाड़ की गुफा में शिव पार्वती मंदिर,ऋषि नाला, इंद्र गुफा,साधु डेरा,चिरका जैसे स्थानों पर श्रद्धालु हमेशा ही पहुंचते हैं जहां से प्रकृति की रमणीकता यहां देखते ही बनती है।