दरभंगा : एक ओर देश में कुछ संगठन हिन्दू मुसलमान के बीच नफरत फैला रहे हैं. इसी नफरत की आंच पर अपनी राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं । धर्म के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम को लड़ा रहे हैं. वहीं इसी देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उनके मनसूबे को नाकाम कर एक मिसाल पेश कर रहे हैं ।कुछ लोग सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के धर्म के खिलाफ जहर उगलने का काम कर रहे हैं, वहीं एक युवक ने दिखा दिया है कि सोशल मीडिया का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है।दरभंगा में एक मुस्लिम युवक ने खून देकर हिन्दू बच्चे की जान बचाई और मजहब के नाम पर लोगों को लड़ाने वालों के सामने एक उदाहरण भी पेश किया । असफाक ने अपना खून देकर धर्म और जाति के नाम पर एक दूसरे से नफरत करने वाले लोगों से संदेश दिया है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है । मुश्किल वक्त में इंसान का धर्म नहीं उसकी इंसानियत काम आती है।
*नवजात बच्चे का ब्लड ग्रुप ओ-नेगेटिव था*
दरअसल, दरभंगा के एसएसबी जवान रमेश कुमार सिंह की पत्नी आरती कुमारी ने दो दिन पहले एक निजी नर्सिंग होम में ऑपरेशन के बाद बच्चे को जन्म दिया था, लेकिन जन्म के बाद बच्चे की हालत बिगड़ने लगी ।आनन-फानन में बच्चे को मां से अलग कर आईसीयू में रखा गया ।डॉक्टरों ने बच्चे को बचाने के लिए खून की मांग की । नवजात बच्चे का ब्लड ग्रुप ओ-नेगेटिव (रेयर) होने के कारण खून आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा था । बच्चे को बचाने के लिए परिवार वालों ने सोशल मीडिया पर अपनी जरूरत बताने के साथ एसएसबी बटालियन में भी अलग-अलग जगहों पर मैसेज भेजा ।सोशल मीडिया के जरिए संदेश मोहम्मद अशफाक तक भी पहुंचा। मोहम्मद अशफाक ने तुरंत पीड़ित परिवार से संपर्क किया और अस्पताल पहुंच गया. मोहम्मद अशफाक खून देने अस्पताल पहुंच तो गया लेकिन रोजे पर होने की वजह से डॉक्टरों ने उसका खून लेने से साफ इनकार कर दिया। मोहम्मद अशफाक के सामने यहां एक तरफ रोजा था तो दूसरी तरफ नवजात की जिंदगी का सवाल। उन्होंने बच्चे की जान बचाने का फैसला किया और बीच में ही रोजा तोड़कर कुछ खाने को मांगा, जिसके बाद डॉक्टरों ने उनका खून लिया. नवजात बच्चे के लिए अपना खून देनेवाले अशफाक ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि रोजा तो फिर कभी रख लेंगे पर जिंदगी किसी की लौट कर नहीं आती। उन्हें गर्व है की आज खुदा ने उनसे यह काम करवाया, उन्हें इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि नवजात किस जाति या धर्म का है।