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वक्त के साथ पहचान बदल रहा नेपाल का ये ऐतिहासिक शहर

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नेपाल से लौटकर नीरज सिसौदिया

उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित बनबसा पुल से लगभग  10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है नेपाल का ऐतिहासिक शहर महेंद्र नगर| लगभग 171 वर्ग किमी में फैला यह शहर नेपाल के 10 सबसे बड़े शहरों में नौवें नंबर पर है| नेपाल के कंचनपुर जिले का यह सबसे बड़ा शहर व्यापार और शिक्षा के हब के रूप में भी जाना जाता है| इस शहर का नाम नेपाल के महाराजा स्वर्गीय महेंद्र सिंह के नाम पर महेंद्र नगर रखा गया था| वर्ष 2008 में जब नेपाल गणराज्य बना तो महेंद्र नगर का नाम बदलकर भीमदत्त कर दिया गया लेकिन इसकी पहचान अब भी महेंद्र नगर के रूप में ज्यादा है. नेपाल के इस शहर का सफर शुरू होता है भारतीय शहर बनबसा से| बनबसा बस स्टैंड से तांगे पर बैठकर महेंद्र नगर का सफर तय किया जा सकता है| अगर आप निजी वाहन से हैं तो आपको किसी और संसाधन की जरूरत नहीं पड़ेगी| बनबसा के ऐतिहासिक बैराज होते हुए आप कुछ मिनटों में ही महेंद्र नगर का फासला तय कर सकते हैं| गड्ढा चौकी और भुजेला पुल होते हुए महेंद्र नगर का सफर काफी दिलचस्प है| यहां की हरियाली खुद-ब-खुद आकर्षित करती है| रास्ते में शुक्लाफंता नेशनल पार्क भी पड़ता है| नेपाल के महाकाली जोन के अंतर्गत पड़ते कंचनपुर जिले में स्थित महेंद्र नगर भारत-नेपाल उद्योग का भी हब है| इस शहर की कुल आबादी लगभग सवा लाख है| हर साल मार्च से लेकर जून महीने के बीच मां पूर्णागिरी के दर्शन करने टनकपुर आने वाले तीर्थ यात्रियों को नेपाल का यह शहर काफी आकर्षित करता है| यहां के मुख्य बाजार कपड़ों और जूतों के लिए प्रसिद्ध हैं| चाइनीज सैंडल से लेकर चांदनी चौक की क्रॉकरी तक इस बाजार में मौजूद है| यहां आने वाले भारतीय जहां चाइनीज सामान की ओर आकर्षित होते हैं वहीं, नेपाल के विभिन्न जिलों से यहां आने वाले नेपाली नागरिक भारतीय सामानों की जमकर खरीदारी करते हैं| महेंद्रनगर को भले ही व्यापार का हब कहा जाता है लेकिन यह व्यापार सिर्फ महेंद्र नगर बाजार तक ही सीमित है| आसपास के इलाके अब भी कृषि पर निर्भर हैं| नेपाल के बेतड़ी, दार्चुला, दादेलधुरा और अमरगड़ी समेत कंचनपुर जिले के लोगों के लिए बेहतर शिक्षा का एकमात्र केंद्र महेंद्रनगर ही है| लगभग 5 जिलों के बीच एकमात्र विश्वविद्यालय फार वेस्टर्न यूनिवर्सिटी महेंद्र नगर में ही स्थित है| यही वजह है कि कंचनपुर समेत आसपास के जिलों से यहां विद्यार्थी पढ़ाई के लिए आते हैं|
पर्यटन के लिहाज से यह शहर विश्व प्रसिद्ध है| अंग्रेजी शासन काल से ही अपने भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व के चलते यह नगर अंग्रेजों का भी प्रिय था| कुछ वर्षों पहले तक यहां पर एक हवाई अड्डा भी मौजूद था| लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है| उस वक्त यहां पर विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता था. नैनीताल से नेपाल जाने वाले विदेशी यात्री भी महेंद्रनगर हवाई अड्डे से काठमांडू तक का सफर तय करते थे और फिर काठमांडू से अपने देश को निकल जाते थे| तब यहां के बाजारों की रौनक देखने लायक होती थी| बताया जाता है कि अंग्रेज भी काठमांडू जाने के लिए इसी रास्ते का उपयोग करते थे| हालांकि यहां से काठमांडू की दूरी लगभग 700 किलोमीटर है लेकिन ईस्ट वेस्ट हाईवे से जुड़ा होने के कारण महेंद्र नगर से काठमांडू जाना आसान है| ईस्ट वेस्ट हाईवे पूर्वी और पश्चिमी नेपाल को जोड़ने वाला एकमात्र हाईवे है|
पर्यटन के लिहाज से भी यह शहर अपनी अलग पहचान रखता है| शुक्लफंता नेशनल पार्क के साथ ही झिलमिल ताल, वेदकोट ताल, विष्णु मंदिर, दोधारा चांदनी सस्पेंशन ब्रिज और बाबा सिद्ध नाथ का मंदिर यहां के मुख्य आकर्षण हैं| उत्तराखंड के टनकपुर में चलने वाले मां पूर्णागिरि मेले का असर महेंद्र नगर के बाजार में भी साफ देखने को मिलता है| पूर्णागिरि मेले के दौरान यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है और दुकानदारों के चेहरे खिल उठते हैं| इसका एक कारण यह भी है कि इस शहर में खरीदारी के लिए पर्यटकों को नेपाली करेंसी की आवश्यकता नहीं पड़ती| यहां भारतीय करेंसी भी चलती है| चाट के ठेले से लेकर कपड़ों के शोरूम तक आप भारतीय करेंसी से खरीदारी कर सकते हैं| वैसे तो महेंद्र नगर बाजार में हर तरह का सामान मौजूद है लेकिन सबसे अधिक दुकानें कपड़ों की हैं|
भारत और नेपाल की नजदीकियां बढ़ाने के लिए यहां से भारत की राजधानी दिल्ली के लिए भारत नेपाल मैत्री बस सेवा भी शुरू की गई है| यह बस दिल्ली से शाम लगभग 5:00 बजे चलती है और सुबह महेंद्रनगर पहुंचती है|
यहां के कारोबारियों में कई हिंदुस्तानी भी हैं| उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों से नेपाल का रोटी और बेटी का नाता है| महेंद्र नगर में राशन भारत से दोगुने दामों पर मिलता है| जिसके चलते यहां के ग्रामीण इलाकों के लोग राशन खरीदने बनबसा आते हैं और साइकिल आदि के जरिए राशन व जरूरत के अन्य सामान ले जाते हैं| भारत नेपाल सीमा पर दोनों देशों के नागरिकों को आवागमन और सामान लाने और ले जाने की खुली छूट है| लेकिन किसी अन्य देश के नागरिक को इसकी इजाजत नहीं है|
एक तरफ जहां ग्वालियर के माधव राव सिंधिया राजघराने के परिवार के ताल्लुक नेपाल के शाही परिवार से हैं, वहीं दूसरी ओर भारत और नेपाल के सीमावर्ती गांव के परिवारों के बीच भी रिश्तेदारी है. भारत की कई बेटियां नेपाल में बहू बनकर गई हैं और नेपाल की कई बेटियाें की डोली भारत में आई है| रिश्तेदारी का यह सफर बरसों पुराना है| यही वजह है कि सीमावर्ती इलाकों के लोगों के लिए दोनों देशों में कोई फर्क नहीं|

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