नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में टिकट की खरीद फरोख्त का खेल जोर-शोर से चल रहा है| सबसे ज्यादा असर कांग्रेस के दावेदारों पर हो रहा है| वर्षों से पार्टी की सेवा करने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर पैराशूट उम्मीदवार उतारने की तैयारी में राहुल ब्रिगेड जुटी हुई है| एक तरफ तो राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाक में दम करने में लगे हुए हैं तो दूसरी तरफ राहुल गांधी की राहुल ब्रिगेड उन्हीं को चूना लगा रही है| राजस्थान में टिकट की खरीद बिक्री के खेल का खुलासा इंडिया टाइम 24 ने पहले ही कर दिया था जिसके बाद राहुल गांधी ने राजस्थान के चारों प्रभारियों को बुलाकर जमकर फटकार लगाई और कुछ प्रभारी बदल भी दिए गए| यह खेल सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि मध्य प्रदेश में भी जोर शोर से चल रहा है| मध्यप्रदेश में तो हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि वहां टिकट की उम्मीद में बैठे पार्टी नेता को आत्महत्या की कोशिश करने पर मजबूर होना पड़ा|
दरअसल, राजस्थान और मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव बेहद ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है| सियासी जानकारों की मानें तो इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के सत्ता में आने की प्रबल संभावनाएं नजर आ रही हैं| यही वजह है कि टिकट के लिए मारामारी कांग्रेस में चरम पर आ गई है| ऐसे में वर्षों से पार्टी के लिए मेहनत कर रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा और वह विधानसभा पहुंचेंगे| मामला जब उम्मीदों के उलट होता नजर आया तो कांग्रेस में खलबली मच गई| कथित तौर पर टिकट बंटवारे के लिए बनाई गई स्क्रीनिंग कमेटी और प्रभारी मौके को भुनाने में जुट गए| टिकट के लिए करोड़ों रुपए की बोली लगाई जाने लगी| राजस्थान के किशनगढ़ में सूत्रों की मानें तो ग्यारह करोड़ में कांग्रेस की टिकट बेच दी गई। अन्य सीटों के लिए भी यह खेल कुछ ऐसा ही चल रहा है| यहां कांग्रेस पार्टी दो भागों में बंटी हुई है। पहला खेमा अशोक गहलोत का है तो दूसरा खेमा सचिन पायलट का| जिस खेमे के ज्यादा विधायक बनेंगे उसी खेमे का मुख्यमंत्री भी बनाया जाएगा| असल में इन दोनों के बीच की जंग नए और पुराने की होकर रह गई है| उम्मीदों के उलट सचिन पायलट के खेमे के युवा आपस में ही उलझकर रह गए हैं| ऐसे में टिकट बंटवारे का सारा खेल लक्ष्मी के दम पर आगे बढ़ रहा है| जिसका चढ़ावा जितना बड़ा होगा टिकट भी उसके ही खाते में जाएगी|
यहां कुछ मुस्लिम नेता भी टिकट के दावेदार हैं| वह पैसे के साथ साथ आला मुस्लिम नेताओं की सिफारिश की लगाने में जुटे हुए हैं| प्रदेश के आला नेताओं के अलावा उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं का भी सहारा लिया जा रहा है| टिकट के इस खेल ने कांग्रेस को बिखराव की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है| ऐसे में राहुल गांधी के पास सिर्फ वही चेहरे पहुंच रहे हैं जो प्रभारियों के नजदीकी और लक्ष्मी के खेल में सबसे आगे हैं।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक नेता ने सिर्फ इसलिए जहर खा लिया क्योंकि उसे कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रेम सिंह कुशवाह ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट से पार्टी की टिकट के प्रबल दावेदारों में से एक थे| वह वर्षों से पार्टी की सेवा में लगे हुए थे लेकिन बात जब टिकट की आई तो उन्हें दरकिनार कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी को टिकट दे दी गई| हताश प्रेम सिंह ने जहर खाकर जान देने की कोशिश की । प्रेम सिंह और किशनगढ़ जैसे मामलों ने कांग्रेस की पोल खोल कर रख दी है।
टिकट के खेल ने यह साबित कर दिया है कि राहुल गांधी कांग्रेस की नैया पार लगाने में फिलहाल सक्षम नहीं है| कांग्रेस ने बिखराव के जो हालात उत्पन्न हो रहे हैं वह आगामी लोकसभा चुनाव में आत्मघाती साबित होंगे| कांग्रेस की नाकामियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और उपलब्धियों के नाम पर उसके खाते में गिनाने के लिए फिलहाल कोई भी नई उपलब्धि नहीं है| पंजाब में सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस से वहां की जनता इतनी दुखी हो चुकी है कि अगर मध्यावधि चुनाव हो जाएं तो कांग्रेस को मुंह की खानी पड़़ सकती है| कानून-व्यवस्था डावांडोल हो चुकी है और आतंकी हमले हो रहे हैं। गैंगवार शुरू हो चुके हैं और बेखौफ अपराधी दिनदहाड़े गोलियों से खेल रहे हैं| चुनावी वादे अब तक पूरे नहीं हुए हैं| सरकारी अफसर रोज पीटे जा रहे हैं। खुद कांग्रेस विधायक ही अपनी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते नजर आ रहे हैं| अराजकता का जो माहौल पंजाब में कांग्रेस दे रही है वह शासन पूरे देश में जनता नहीं चाहती|
बहरहाल, राहुल गांधी बिखरती हुई कांग्रेस को समेटने में नाकाम नजर आ रहे हैं| अगर यही हाल रहा तो वर्ष 2019 में कांग्रेस को एक बार फिर वनवास झेलना पड़ेगा| कांग्रेस के आला नेता यह जानते हैं| यही वजह है कि पी चिदंबरम जैसे नेता मीडिया के सामने यह कहने में तनिक भी गुरेज नहीं करते कि राहुल गांधी 2019 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे बल्कि गठबंधन की जीत के बाद सभी दलों की सहमति से प्रधानमंत्री चुना जाएगा| वर्ष 2019 का चुनाव राहुल गांधी के लिए अग्निपरीक्षा के समान होगा| अगर 2019 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई तो निश्चित तौर पर राहुल गांधी का सियासी भविष्य संकट में पड़ जाएगा|