नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद हर तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जय जयकार होने लगी है| पार्टी नेता और कार्यकर्ता जीत का सेहरा राहुल गांधी के सिर बांध रहे हैं| अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई यह जीत कांग्रेस और राहुल गांधी की जीत है या फिर मोदी सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से की जीत है| निश्चित तौर पर यह कांग्रेस की जीत नहीं बल्कि केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता का गुस्सा है जो वोट बन कर कांग्रेस की झोली में आ गिरा है| इन नतीजों से यह अनुमान लगाना एकदम गलत है कि कांग्रेस भाजपा पर हावी हो चुकी है| अगर ऐसा होता तो कांग्रेस को सभी राज्यों में एकतरफा जीत मिलती लेकिन जहां पर विकल्प थे वहां जनता ने कांग्रेस को नकार दिया| सबसे बड़ा उदाहरण मिजोरम है जहां 10 साल से कांग्रेस की सरकार थी लेकिन वहां कांग्रेस के मुख्यमंत्री खुद दोनों सीटों से चुनाव हार गए| क्या इस हार के जिम्मेदार राहुल गांधी हैं? कुछ ऐसा ही हाल तेलंगाना में भी हुआ जहां कॉन्ग्रेस सत्ता का ख्वाब देखती ही रह गई और टीआरएस ने 87 सीटों पर शानदार जीत हासिल की| क्या तेलंगाना की हार राहुल गांधी की हार नहीं है? सबसे बड़ा मुकाबला मध्यप्रदेश में देखने को मिला जहां 15 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के बावजूद कांटे की टक्कर रही| यहां हार जीत का अंतर उंगलियों पर गिना जा सकता है| अगर थोड़ी बहुत जोड़-तोड़ हो गई तो यहां भाजपा सरकार बना सकती है|
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राजस्थान में भी कांग्रेस को बहुमत के लिए 100 सीटें चाहिए थीं लेकिन वह 99 पर ही अटक गई| भाजपा यहां भी 73 सीटें ले गई| एकमात्र राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का प्रदर्शन सराहनीय रहा| यहां भी 15 साल की रमन सिंह सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के चलते कांग्रेस की झोली में वोटों की बारिश हुई| इन नतीजों से एक बात तो स्पष्ट है कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की राह आसान नहीं होगी| भाजपा ने जिस तरह से मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस को कड़ी चुनौती दी है ठीक उसी तरह से आगामी लोकसभा चुनाव में भी वह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेश करने वाली है| निश्चित तौर पर इन राज्यों के परिणामों से केंद्र सरकार सबक लेगी और जीत की नई रणनीति तैयार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह नई राह पर चलते नजर आएंगे| राजस्थान में कांग्रेस के कुछ दिग्गजों को भी करारी हार का सामना करना पड़ा है| पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ गिरिजा व्यास, सांसद करण सिंह यादव और नेता प्रतिपक्ष जो कि मुख्यमंत्री पद की होड़ में शामिल थे रामेश्वर डूडी भी चुनाव हार गए| यहां 13 सीटें निर्दलीय के खाते में गई है और 8 सीटें कांग्रेस और भाजपा से इतर अन्य पार्टियों ने हासिल की है| यानी देखा जाए तो कांग्रेस को यहां एक तरफा जनादेश नहीं मिला है| ऐसे में यह वक्त जीत के लिए इतराने का नहीं बल्कि कांग्रेस को अपनी रणनीति पर और अधिक मेहनत करने का है| निश्चित तौर पर इन राज्यों में सत्ता में वापसी कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुई है लेकिन 2019 के चुनाव के लिए उसे और जोर लगाना पड़ेगा| साथ ही भाजपा को भी अपनी रणनीति पर मंथन करने की जरूरत है वरना वर्ष 2019 में भाजपा का भी वही हाल होगा जो वर्ष 2014 में कांग्रेस का हुआ था| बरहाल सत्ता का सेमीफाइनल खत्म हो चुका है अब फाइनल की बारी है|