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हरियाणा के नतीजों के बाद क्या गिरने लगा है Amit shah का ग्राफ, खतरे में बादशाहत? 

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली

हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद भाजपा के Amit shah की बादशाहत पर भी सवाल उठने लगे हैं|

किसी ने खूब कहा है कि –

बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है .

अमित शाह के साथ भी इन दिनों कुछ ऐसा ही हो रहा है. अमित शाह भाजपा की उसी ऊंची इमारत की तरह हैं जिस पर हर वक्त संकट के बादल मंडराते रहते हैं. इन दिनों वह खतरा और भी बढ़ता हुआ नजर आ रहा है और शाह का ग्राफ गिरता जा रहा है. हाल ही में शाह के बेटे जय शाह की प्रॉपर्टी और बीसीसीआई के सचिव बनने को लेकर भी  Amit shah  विरोधियों के निशाने पर आ गए थे.

कुछ लोगों का मानना है कि अब Amit shah का राजनीतिक ग्राफ गिरने लगा है जो दोबारा पुराना मुकाम हासिल नहीं कर पायेगा| वहीं, कुछ लोग इन नतीजों का स्थानीय स्तर पर आकलन करते हुए इसे स्थानीय सरकार की नाकामयाबी का नतीजा मानते हैं न कि केंद्र सरकार और Amit shah की रणनीति का नतीजा| ऐसे में सवाल ये उठने लगा है कि क्या वाकई में Amit shah की बादशाहत पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं? क्या अमित शाह का सियासी भविष्य खतरे में है? क्या शाह की सियासी रणनीतियां अब भारतीय जनता पार्टी के काम नहीं आने वाली?

दरअसल मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद Amit shah ने केंद्रीय गृह मंत्री का पद भार संभाल लिया| इसके बाद से ही देश के एक खास वर्ग में अमित शाह को लेकर एक अलग विचारधारा बननी शुरू हो गई थी और शाह विरोधी माहौल को हवा मिलने लगी| इसके बाद जैसे ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया गया तो एक खास वर्ग का विरोध अमित शाह के खिलाफ चरम पर आ गया| इसके बाद जो खिलाफत देशभर में शुरू हुई वह अब तक अमित शाह के खिलाफ एक माहौल तैयार करने में लगी हुई है|

विरोधी भी यह जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की रणनीति की कोई भी काट उनके पास नहीं है| यही वजह है कि शाह की छोटी से छोटी गलतियों को भुलाने का मौका भी विपक्ष नहीं छोड़ रहा| दूसरी ओर रोजगार और रोटी के मुद्दे पर नाकाम केंद्र सरकार की नाकामी का खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को निश्चित तौर पर भुगतना पड़ा| यही वह नाकामी थी जिसने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक माहौल तैयार किया और हरियाणा एवं महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजों में इसका असर देखने को मिला| अब तक जो विरोधी मृत प्राय स्थिति में पड़े हुए थे उनके लिए इन नाकामियों और दोनों विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन ने संजीवनी का काम किया|

पुरानी कहावत है ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’| भारतीय जनता पार्टी के साथ भी फिलहाल यही हो रहा है| एक तरफ तो वह हरियाणा में अपनी कई सीटें गंवा चुकी है और कांग्रेस ने सीटें बढ़ाने के साथ साथ ही अपना खोया हुआ वजूद भी कायम कर लिया| ऐसे में पहले गोपाल कांडा से समर्थन की बात पर फजीहत के बाद फैसला बदलना और फिर शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा काट रहे चौटाला परिवार के वारिस से गठबंधन का फैसला, कहीं न कहीं भाजपा पर भारी पड़ता नजर आ रहा है| ऐसा करके भाजपा ने भले ही हरियाणा में अपनी सरकार बना ली हो लेकिन जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला से गठबंधन का फैसला विभिन्न राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों और आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की गले की फांस बन सकता है|

ऐसे में Amit shah का राजनीतिक ग्राफ भी गिरने लगा है| जनता यह मानने लगी है कि अब शाह की रणनीति भाजपा के काम नहीं आने वाली| सियासी जानकार मानते हैं कि इन फैसलों के बाद Amit shah की भी उल्टी गिनती शुरू होना लगभग तय हो चुका है| शाह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद वैसे ही भारतीय जनता पार्टी नया अध्यक्ष तलाश रही है| नया अध्यक्ष बनने के बाद शाह की बादशाहत किस हद तक कायम रह सकती है इसका अंदाजा खुद ब खुद लगाया जा सकता है| अभी झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव होंगे|

दिल्ली अब और भी दूर हो गई 

हरियाणा के नतीजे बताते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा| सत्ता में आना तो दूर उसे यहां नंबर दो के लिए भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी| दरअसल, दिल्ली कांग्रेस का गढ़ रही है| आम आदमी पार्टी के आगमन के बाद यहां कांग्रेस का ग्राफ कुछ नीचे गया था| पार्टी कार्यकर्ता हताश नजर आ रहे थे लेकिन हरियाणा में शानदार प्रदर्शन के बाद दिल्ली कांग्रेस को संजीवनी मिल गई है|

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के नेतृत्व में अब दिल्ली में कांग्रेस एकजुट होने लगी है| सोए हुए कांग्रेसी फिर से जाग उठे हैं| उन्हें यह लगने लगा है कि सत्ता की चाबी भले ही आम आदमी पार्टी के हाथ से न छीन सकें लेकिन उसे कड़ी टक्कर दी जा सकती है| निश्चित तौर पर यह परिस्थितियां भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबत का सबब साबित होंगी| एक तरफ तो पहले ही दिल्ली विधानसभा से भाजपा बेहद दूर है वहीं दूसरी तरफ हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजों ने आग में घी का काम किया है| अब दिल्ली भाजपा से और भी दूर हो चुकी है. दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी की जो उम्मीदें बन रही थीं वह उम्मीदें भी अब दम तोड़ती नजर आ रही हैं| भाजपा के शाह दिल्ली में संगठन को मजबूत कर पाने में नाकाम रहे हैं|

लोकसभा चुनाव तो मोदी के नाम पर जीत लिया गया लेकिन भारतीय जनता पार्टी के Amit shah की सबसे बड़ी नाकामी यही रही कि उन्होंने पिछले लगभग 6 वर्षों के दौरान दिल्ली में संगठन को मजबूत करने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके चलते पार्टी यहां गुटबाजी का शिकार हो रही है| यह हालात दर्शाते हैं कि आने वाला समय Amit shah के लिए बहुत अच्छा नहीं होगा| बहरहाल शाह की जगह भाजपा का अगला शहंशाह कौन बनेगा यह देखना दिलचस्प होगा|

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