नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस की अंदरूनी सियासत भी तेजी से बदलने लगी है. शीला गुट के सिपहसालार कमजोर और अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं. इनमें कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता भी शामिल हैं जो शीला दीक्षित के बेहद करीबी रहे हैं. संदीप दीक्षित इन नेताओं को वह प्रतिष्ठा दिलाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं जो उनकी मां शीला दीक्षित ने दिलाई थी. यही वजह है कि ये नेता अब दूसरे दलों में सियासी जमीन तलाश रहे हैं. इनमें दो बड़े चेहरे आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्र और बादली विधानसभा हलके से ताल्लुक़ रखते हैं.
पहला नाम कांग्रेस के बादली हलके से विधायक रहे देवेंद्र यादव का है तो दूसरा नाम दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री मंगतराम सिंघल का. दोनों ही शीला दीक्षित के खासमखास थे. देवेंद्र यादव को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सहित कई बड़ी जिम्मेदारियां संगठन में दी गई थीं. वह कई राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रभारी भी रहे. हालांकि, राजस्थान में टिकट बंटवारे में गड़बड़ी के बाद उन्हें हटा भी दिया गया था. इसके बाद शीला दीक्षित का निधन हुआ और देवेंद्र यादव की सियासी जमीन खिसकने लगी. इन दिनों देवेंद्र यादव के बादली विधानसभा हलके में उनके भगवा प्रेम की चर्चाएं जोरों पर हैं. कुछ लोगों का कहना है कि वह आम आदमी पार्टी का दामन भी थामना चाहते हैं. हालांकि, आप का झाड़ू थामने वाली चर्चाएं कोरी अफवाह ही नजर आती हैं. इसकी पुष्टि भी सूत्र नहीं करते लेकिन भाजपा प्रेम की चर्चाओं को सूत्र भी पुष्ट करते हैं.
दरअसल, बादली विधानसभा हलके में भाजपा वजूद की जंग लड़ रही है. एक समय था जब भाजपा के जय भगवान अग्रवाल इस इलाके से विधायक हुआ करते थे. फिर परिसीमन हुआ और जयभगवान रोहिणी तक ही सिमट गए. तब से भाजपा इस इलाके में नेतृत्व के संकट से जूझ रही है. आलम यह है कि भाजपा को यहां कोई भी ऐसा चेहरा नजर नहीं आ रहा है जो विधायक की सीट जीतकर उसकी झोली में डाल सके. ऐसे में भाजपा की नजर भी देवेंद्र यादव पर है. देवेंद्र यादव यहां के लगभग 20 से 25 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखते हैं. उनके भाजपा में जाने से पार्टी को यह वोट बैंक पूरा भले ही न मिले पर कुछ न कुछ फायदा जरूर होना है. अगर देवेंद्र यादव और भाजपा का मेल हो जाता है तो आम आदमी पार्टी के विधायक अजेश यादव के लिए आगे की राह उतनी आसान नहीं होगी जितनी वर्तमान में नजर आ रही है. चर्चा है कि पार्टी में पहले वाला रुतबा नहीं मिलने के कारण देवेंद्र यादव भी अब भगवा ब्रिगेड का हिस्सा बनने की तैयारी कर रहे हैं. कुछ संघ नेताओं के सहारे उनकी भाजपा में एंट्री कराने की चर्चाएं भी जोरों पर हैं.
कुछ ऐसा ही हाल मंगतराम सिंघल का बताया जा रहा है. मंगतराम के लिए सबसे बड़ी मुसीबत मुकेश गोयल हैं. मुकेश गोयल ने पिछली बार ही मंगतराम का पत्ता साफ कर दिया था. मंगतराम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट हासिल नहीं कर सके थे. हालांकि, मुकेश गोयल सीट जीतने में नाकाम रहे. इस बार मुकेश गोयल का कद संगठन में और ज्यादा बढ़ गया है. वह जयप्रकाश अग्रवाल के बेहद करीबी हैं और शीला दीक्षित के निधन के बाद जयप्रकाश की संगठन में पकड़ और ज्यादा मजबूत हुई है.
चर्चा है कि मंगतराम सिंघल इस बार बेटे के लिए आदर्श नगर सीट से पार्टी से टिकट चाहते हैं. लेकिन उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा मुकेश गोयल हैं. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि वह आम आदमी पार्टी का दामन थाम सकते हैं. हालांकि, आम आदमी पार्टी ने इस बार प्रत्याशी तय कर लिया है और सिटिंग विधायक पवन शर्मा का पत्ता साफ होना तय माना जा रहा है. भाजपा भी यहां से नया चेहरा उतारना चाहती है. ऐसे में अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि टिकट मिलने पर मंगतराम भाजपा का दामन भी थाम सकते हैं.
बहरहाल, अगर कांग्रेस में बिखराव की ये अटकलें सच साबित होती हैं तो एक बार फिर आम आदमी पार्टी को इसका सीधा फायदा होगा और कांग्रेस को फिर वनवास ही मिलेगा.