दिल्ली

विश्व पुस्तक मेला : अफ्रीकी साहित्य श्रृंखला के तहत तीन पुस्तकों का विमोचन

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली 

दिल्‍ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्‍व पुस्‍तक मेले में इसी सप्‍ताह गार्गी प्रकाशन की ओर से चलाई जा रही अफ्रीकी शृंखला की तीन पुस्‍तकों का विमोचन किया गया है। इन पुस्‍तकों में से एक पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ व केप वर्डे के लेखक विचारक और मुक्ति योद्धा ‘अमिल्‍कर कबराल : जीवन संघर्ष और विचार’ का अनुवाद एवं संपादन जानेमाने पत्रकार एवं लेखक आनंद स्‍वरूप वर्मा ने किया है। दूसरी पुस्‍तक दिगंबर द्वारा अनुदित नाइजीरियाई कवि नीयी ओसुंदरे का काव्‍य संग्रह ‘गांव की आवाज’ है। तीसरी पुस्‍तक सेनेगल के लेखक और फिल्‍म निर्देशक रहे सेम्बियन ओसमान लिखित उपन्‍यास ले डॉकर नोयर का नरेंद्र अनिकेत द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद ‘काला गोदी मजदूर’ है। समयांतर के संपादक पंकज बिष्‍ट ने पुस्‍तकों का विमोचन किया।
इस मौके पर अफ्रीका महादेश के इतिहास, सामाजिक जीवन, विचार और वहां की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले आनंद स्‍वरूप वर्मा ने यूरोपीय देशों का उपनिवेश रहे अफ्रीका के जीवन पर उपनिवेश कालीन सितम के प्रभाव के साथ ही स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद वहां के संसाधनों की लूट के लिए संपन्‍न राष्‍ट्रों द्वारा बिछाए गए जाल का ब्‍योरा दिया। आजाद हुए देशों में रजनीतिक उथल-पुथल और सैनिक तानाशाही के खेल से त्रस्‍त आम जन की पीड़ा वहां के साहित्‍य और विचार में प्रतिध्‍वनित होती है।


इस क्रम में वर्मा ने नाइजीरियाई लेखक एवं कवि नीयी ओसुंदरे की कुछ पंक्तियों का उल्‍लेख किया जो वर्तमान भारतीय राजनीति पर सटीक बैठती हैं। लाभ कमाने के लिए पूंजीवाद शुरू से ही जिन हथकंडों का प्रयोग करता चला आ रहा है वह भारत के लिए अकेला नहीं है।

गहरे तौर पर देखा जाए तो शोषण का हथकंडा भिन्‍न नहीं है और तीसरी दुनिया का हर देश एक ही खाने में नजर आता है। इसकी बेतरीन समझ वहां के साहित्‍य, संस्‍कृति, लोक जीवन, इतिहास और राजनीतिक व्‍यवस्‍था में उतार-चढ़ाव के पीछे के छिपाए जाने वाले असली कारणों की पड़ताल में मिलती है। इस क्रम में अफ्रीकी लेखकों के उल्‍लेखनीय कार्यों को हिंदी में लाने का काम गार्गी प्रकाशन कर रहा है। तीनों अनुदित पुस्‍तकें भारतीय जीवन से कहीं भिन्‍न नजर नहीं आती हैं। अफ्रीकी साहित्‍य का नायक हमारे बीच का संघर्षशील मजदूर है तो वहां के विचारक हमारे बीच बैठा एक संवेदनशील आम आदमी। इन किताबों से गुजरने पर हम एक ऐसी दुनिया में खुद को खड़ा पाएंगे जहां न हम अकेले हैं न ही हमारा देश अलग दिखेगा।

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