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परिवार में नहीं था कोई सियासत दान, अपने दम पर बनाई पहचान, बेहद दिलचस्प रहा है भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष इंदू सेठी के संघर्ष का सफर, पढ़े स्पेशल इंटरव्यू…

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सियासत में जहां महिलाओं को सिर्फ पति के हाथों की कठपुतली समझा जाता है, वहीं इंदू सेठी ने इस दकियानूसी विचारधारा को दरकिनार कर अपना अलग मुकाम हासिल किया है. उनके पति का सियासत से कोई वास्ता नहीं रहा मगर इंदू सेठी आज भाजपा महिला मोर्चा के महानगर की कमान संभाल रही हैं. बरेली शहर की महिला सियासतदानों की सूची में उनका नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है. इंदू सेठी बरेली भाजपा के इतिहास में पहली ऐसी नेत्री के तौर पर भी जानी जाती हैं जो चार पुरुष प्रत्याशियों को चुनाव में हराकर कैंट भाजपा मंडल की अध्यक्ष बनी थीं. वह बेटियों को टेंशन की जगह टेन संस यानी दस बेटों के बराबर मानती हैं. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए इंदू को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा? उनके पिता एक बिजनेसमैन थे जबकि पति एक डॉक्टर थे, फिर उन्होंने राजनीति को क्यों चुना? इंदू सेठी ने अपनी जिंदगी के 28 कीमती साल भाजपा को दिए हैं. इस दौरान राजनीति में वह क्या फर्क महसूस करती हैं? महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बतौर श्रम मंत्रालय की सदस्य वह क्या प्रयास कर रही हैं? शहर के विकास को वह किस नजरिये से देखती हैं? आगामी विधानसभा चुनाव में वह योगी सरकार की किन उपलब्धियों के नाम पर महिलाओं से वोट मांगेंगी? ऐसे ही विभिन्न मुद्दों पर इंदू सेठी ने इंडिया टाइम 24 के प्रधान संपादक नीरज सिसौदिया से खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : अपने परिवार और शुरुआती जीवन के बारे में बताइये? क्या कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है आपकी?
जवाब : हमारे ससुर जी पाकिस्तान के मांटगुमरी में रहा करते थे जबकि मेेेेरे माता- पिता लाहौर से थे. जब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो हम हिन्दुस्तान आ गए. मेरे पिता एक बिजनेसमैन थे और रॉयल होटल संचालित करते थे. मेरा जन्म कैंट में हुआ. बचपन भी कैंट में बीता. मेरी शुरुआती शिक्षा नर्सरी क्लास से सेंट मारिया गौरोटी हाईस्कूल से हुई. फिर 12 वीं मैंने जीजीआईसी इंटर कॉलेज से की, बीए साहूगोपीनाथ से और एमए मैंने पॉलिटिकल साइंट से प्राइवेट किया. मेरी कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही.
सवाल : राजनीति में कैसे आना हुआ?
जवाब : शादी से पहले तो मुझे राजनीति से कोई लेना देना नहीं था. मेरे पति डाक्टर थे. शादी के बाद जब मैं ससुराल आई तो मैंने देखा कि मेरे जेठ डा. पुरुषोत्तम कुमार सेठी संघ से जुड़े हुए थे. ऐसे में घर पर भी संघ से जुड़े लोगों का आना जाना होता था और हमारा भी संघ के कार्यकमों में जाना होने लगा. मुझे संघ के सेवा भाव ने प्रेरित किया. मुझे लगा कि मुझे भी लोगों के लिए और समाज के लिए कुछ करना चाहिए. इस तरह से सन् 1980 में मैं संघ से जुड़ गई.
सवाल : फिर भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा कब बनीं?
जवाब : संघ में काम करते करते जाने कब 12 साल गुजर गए पता ही नहीं चला. फिर मन में आया कि किस तरह से मैं आम जनता के लिए कुछ कर सकूं, ये मन में आया तो वर्ष 1992 में मैं भाजपा की वार्ड अध्यक्ष बन गई. यहीं से मेरे राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई.
सवाल : आपने जिस दौर में राजनीति शुरू की उस दौर में महिलाओं का राजनीति में आना कम ही हो पाता था? ऐसे में परिवार का कितना सपोर्ट मिला?
जवाब : मैंने जब राजनीति शुरू की थी उस दौर में लोगों का यह मानना था कि राजनीति में बहुत गंदगी है और राजनीति में महिलाओं को नहीं आना चाहिए. मगर मुझे मेरे पति का बहुत सपोर्ट मिला. वो डाक्टर थे जिला अस्पताल में. उन्होंने कहा कि अगर तुम इसमें सेवा भाव से जुड़ना चाहती हो तो मैं जरूर देखना चाहूंगा कि तुम इसमें कितना बदलाव ला सकती हो, लोगों को कितना सुधार सकती हो. इसलिए ज्वाइन करो भाजपा को.

अपने राजनीतिक सफर के बारे में बतातीं इंदू सेठी.

सवाल : परिवार के सपोर्ट के बाद आप भाजपा की वार्ड अध्यक्ष बन गईं. फिर पार्टी को वार्ड में मजबूत बनाने के लिए आपने क्या प्रयास किए?
जवाब : सबसे पहले मैंने देखा कि वार्ड में कोई कमेटी नहीं बनी थी तो सबसे पहले मैंने वार्ड की कमेटी बनाई. हमारा वार्ड तब सात नंबर वार्ड था जो कि अब तीन नंबर हो चुका है. इसके तहत बीआई बाजार वाला इलाका पड़ता है. समाज के हर वर्ग को जोड़ा और लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि राजनीति कैसे समाज के अंतिम छोर पर खड़े लोगों के लिए मददगार साबित हो सकती है.
सवाल : आगे का राजनीतिक सफर कैसे तय किया?
जवाब : लगभग दो साल तक मैं वार्ड अध्यक्ष रही और धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रही थी. उस वक्त भाजपा के महानगर अध्यक्ष दिलीप आर्या जी थे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. इसके बाद केवल कृष्ण जी पार्टी के महानगर अध्यक्ष बने. उन्होंने मेरे कार्य को देखते हुए मुझे भाजपा महिला मोर्चा का कैंट मंडल के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी. वर्ष 1994 में मैं महिला मोर्चा की मंडल अध्यक्ष बन गई. उस वक्त कैंट मंडल में महिला मोर्चा का कोई अस्तित्व ही नहीं था जिसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई. लगभग साढ़े चार साल तक मैंने महिला मोर्चा को कैंट मंडल में सशक्त बनाने का प्रयास किया. मेरी मेहनत काफी सफल रही और वर्ष 1999 में मुझे भाजपा की मेन बॉडी का कैंट मंडल अध्यक्ष बनाया गया.
सवाल : क्या आप आम सहमति से भाजपा मंडल अध्यक्ष बन गई थीं?
जवाब : नहीं, पहले ऐसा जरूर होता था कि आम सहमति से मंडल अध्यक्ष बना दिया जाता था लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ. पहले मुझसे कहा गया कि आप फार्म भरिये मंडल अध्यक्ष के लिए लेकिन बाद में कहा कि आपकी जगह हम किसी और को बना रहे हैं. मुझे ये बात नागवार गुजरी और मैंने नाम वापस लेने से इंकार कर दिया. उस समय मेरे अलावा चार पुरुष दावेदार भी थे मंडल अध्यक्ष के लिए. इसलिए बरेली भाजपा के इतिहास में पहली बार चुनाव कराए गए. इनमें लालमन जी को खुद संगठन की ओर से उतारा गया था. वार्ड की कमेटियों के लोग ही वोटर थे. जब चुनाव हुए तो मुझे सबसे ज्यादा वोट मिले और 35 वोटों से जीतकर मंडल अध्यक्ष बन गई. उस वक्त कुल 85 लोगों ने वोट किया था. मुझे आज भी याद है कि उस वक्त जो जश्न मना था वो शायद ही किसी मंडल का मना हो. मेरी हिम्मत और जीत को सभी ने सराहा. फिर वर्ष 2004 तक मैं मंडल अध्यक्ष रही और उसके बाद मैं भाजपा की महानगर मंत्री बनी. उस समय हमारे महानगर अध्यक्ष सुधीर जैन जी थे. वह दो बार महानगर अध्यक्ष रहे और मैं एक बार मंत्री व एक बार उपाध्यक्ष रही. वर्ष 2010 तक महानगर मंत्री रहने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से मैं तीन साल तक किसी पद पर नहीं रही लेकिन सक्रिय हमेशा रही. फिर 2013 में महानगर महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनी. तब से अब तक लगभग सात साल से मैं इसी पद पर कार्यरत हूं.
सवाल : आपने सिर्फ पार्टी के लिए ही काम किया या समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभाई?
जवाब : पार्टी के लिए काम करना भी समाजसेवा ही है. इसके अलावा मैं पंजाबी सेवा कल्याण समिति की महिला विंग की अध्यक्ष भी हूं. इस संगठन की ओर से हर साल हरिमंदिर में परिचय सम्मेलन कराया जाता है. गरीब बेटियों की शादी आदि भी कराई जाती है. कोरोना काल में हमारी महिला मोर्चा की टीम हर बस्ती में गई और मास्क, सैनेटाइजर के साथ भोजन वितरण भी किया. जब बाजार में संकट था तो घर पर मास्क सिलवाए और मुफ्त बांटे.
सवाल : मलिन बस्तियों के गरीब बच्चों के लिए आपने क्या किया?
जवाब : मलिन बस्तियों के गरीब बच्चों के लिए हमने संसाधनों की व्यवस्था करने के साथ ही बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में भी काफी प्रयास किए हैं. हमने समय समय पर उन्हें कपड़े बांटे हैं. मुंशी नगर की मलिन बस्तियां हों, जगतपुर के पास की मलिन बस्तियां हों, बदायूं रोड पर सुभाष नगर के इलाके की बस्तियां हों,ट कालीबाड़ी, सिंधु नगर के पास, रोडवेज के पास, सौ फुटा रोड से अंदर जाकर पड़ने वाली बस्ती हो या बालजती हो, हमने हर जगह जाकर बच्चों को कपड़े बांटने के साथ ही बेटियों के लिए सिलाई मशीन भी उपलब्ध करवाई है, साथ ही उन्हें प्रशिक्षण भी दिलाया ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.
सवाल : महिला सुरक्षा की दिशा में क्या प्रयास कर रही हैं?
जवाब : पहले स्नैचिंग की कई वारदातें होती रहती थीं. हैरो स्कूल की एक शिक्षिका के साथ भी एक बार ऐसा ही हुआ. इसके बाद हमने पुलिस से लेकर केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार जी तक हमने इस मुद्दे को उठाया. और मोरल पुलिसिंग पर जोर दिया. जो भी मामला मेरे पास आता है मैं हर पीड़िता की मदद करती हूं. मेरे दरवाजे किसी भी पीड़िता के लिए हर वक्त खुले हैं. जिस बेटी को कोई भी परेशानी हो मैं उसके साथ हमेशा खड़ी हूं.
सवाल : आप पिछले करीब 28 वर्षों से राजनीति में हैं. तब और अब की राजनीति में महिलाओं को लेकर क्या फर्क महसूस करती हैं?
जवाब : अब थोड़ी सी राजनीति बदल चुकी है. मोदी जी के नेतृत्व में ये जरूर हो गया है कि महिलाओं को तवज्जो मिलनी शुरू हो गई है. पहले महिलाओं को इतनी तवज्जो नहीं दी जाती थी. पहले सिर्फ भीड़ बढ़ाने की चीज समझा जाता था लेकिन अब महिलाओं को आगे लाया जा रहा है. पहले केवल ऑनपेपर्स था पर अब वास्तव में उन्हें अधिकार दिए जा रहे हैं.
सवाल : शहर के विकास को आप किस नजरिये से देखीे हैं? क्या आपको लगता है कि शहर का जितना विकास होना चाहिए था उतना हुआ या नहीं?
जवाब : शहर का विकास होना शुरू हो चुका है. ये बात सही है कि जिस रफ्तार से विकास होना चाहिए था उतनी रफ्तार से नहीं हुआ. इसके कई कारण हैं. लोग कहते हैं कि संतोष गंगवार इतने वर्षों से सांसद हैं, मंत्री भी रहे पर विकास नहीं करा पाए, मैं इसे गलत मानती हूं. संतोष जी ने बरेली शहर के लिए काफी कुछ किया है लेकिन उनके सामने भी कई तरह की दिक्कतें होती हैं. प्रदेश में हमारी सरकार नहीं थी, मेयर भी हमारी पार्टी के नहीं थे. उदाहरण के तौर पर टेक्सटाइल पार्क को ही ले लीजिए. अब हमारी सरकार आई है तो इसके लिए जमीन मिल गई है. पहले नहीं मिली थी. अब शहर स्मार्ट सिटी में आ गया है. विकास हो रहा है.
सवाल : स्मार्ट सिटी के तहत शहर के सिर्फ चुनिंदा वार्ड ही आए हैं. बाकी का क्या होगा? क्या इस दिशा में आप कोई प्रयास कर रही हैं?
जवाब : जी बिल्कुल, हम लोग सबसे पहले रोड्स और सीवर लाइन का प्रयास कर रहे हैं. स्ट्रीट लाइट के प्रयास कर रहे हैं. इस संबंध में मेयर साहब से भी मिलकर बात की है. मंडी पर लगने वाले जाम से लोगों को निजात दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
सवाल : बरेली में पिछले चार दशक से कोई नया इंडस्ट्रियल एरिया नहीं बना है. इसकी वजह से नई इंडस्ट्री भी नहीं बनी है. पुरुषों को भी रोजगार नहीं मिल रहा. ऐसे में महिलाओं को रोजगार मिले इसके लिए आप क्या प्रयास कर रही हैं?
जवाब : मैंने छोटे-छोटे रोजगार देने के लिए योगी जी को और संतोष गंगवार जी को भी लिखित में दे दिया है. जैसे महिलाएं अगर घर में अचार बना रही हैं तो उनके रोजगार को कैसे बढ़ाया जाए, इसके प्रयास कर रहे हैं. चूंकि मुझे संतोष जी ने श्रम विभाग में भी मेंबर बनाया है तो मैं उनके इसके बारे में लिख लिख कर भेज रही हूं. साथ ही संतोष गंगवार और विधायक अरूण कुमार ने भी भरोसा दिलाया है कि सिलाई के जरिये जो महिलाएं जीवन यापन कर सकती हैं उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. मंत्री जी और विधायक जी के आश्वासन के बाद हम शहर की ऐसी जरूरतमंद लड़कियों की सूची तैयार कर रहे हैं. इसके बाद उन्हें मशीन वितरित की जाएगी. साथ ही बच्चों के लिए स्कूल खोलने के संबंध में भी मैंने उन्हें लिखित में अवगत करा दिया है. इस पर अभी कार्रवाई चल रही है और उम्मीद है कि अगले साल तक इसके सार्थक परिणाम सामने आएंगे.
सवाल : बरेली शहर का सबसे बड़ा मुद्दा आप किसे मानती हैं, जिस पर काम होना चाहिए लेकिन नहीं हुआ?
जवाब : मेरी नजर में सबसे बड़ा मुद्दा बाल श्रम है. मेरा मानना है कि अगर नींव मजबूत होगी तभी हम उस पर मकान खड़ा कर सकते हैं. कुछ समुदाय के लोग बच्चों को बचपन से ही काम में लगा देते हैं. अगर बच्चों में कुछ हुनर है तो सबसे पहले उन्हें शिक्षित करना चाहिए. मैं बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रयासरत हूं.
सवाल : विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. बतौर महिला मोर्चा की महानगर अध्यक्ष आप सरकार की वो कौन सी उपलब्धियां मानती हैं जिनके आधार पर आप महिलाओं से वोट मांगेंगी?
जवाब : योगी सरकार में महिलाओं का स्तर बढ़ा है. हमने यह संदेश दिया है कि बेटियां टेंशन नहीं बल्कि टेन संस हैं. यानी एक बेटी दस बेटों के बराबर है. आप याद कीजिए पिछली सरकारों में महिलाओं के प्रति अपराध इतने बढ़ गए थे कि हम लोगों ने मंगलसूत्र तक पहनकर सड़क पर निकलना बंद कर दिया था. हम लोग पर्स रखना भूल गए थे. बेटियों से सरेआम छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी घटनाएं होती थीं. मैं यह नहीं कहती कि वो सब अब खत्म हो गया है लेकिन नियंत्रित जरूर हो गया है. पहले का दस फीसदी भी नहीं रहा. ये हमारी सरकार की नीतियों की वजह से ही संभव हो पाया है.

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