कोई भी इंसान तब तक अपराधी नहीं कहा जा सकता जब तक उसका जुर्म साबित न हो जाए लेकिन कई बार ऐसा देखने में आता है कि पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करते ही उसके साथ अपराधियों जैसा बर्ताव करने लगती है. कई बार तो अवैध रूप से हिरासत में चार-पांच दिन से भी ज्यादा वक्त तक रखती है जिससे निर्दोष लोग पूरी तरह से टूट जाते हैं. ऐसे में भारतीय संविधान और कानून प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तार होने के बाद भी कुछ अधिकार देता है. अगर पुलिस इन अधिकारों से आरोपी को वंचित रखती है तो ऐसा करने वाले पुलिस कर्मचारियों को अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ सकती है. जागरूकता के अभाव और पुलिस के डर की वजह से अक्सर लोग गिरफ्तारी के बाद अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करते और चुपचाप पुलिस की ज्यादती का शिकार होते रहते हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि वे कौन कौन से अधिकार हैं जो गिरफ्तारी के बाद भी आपको कानून प्रदान करता है और किस कानून के तहत आप ये अधिकार पाने के हकदार हैं.
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 57 के मुताबिक कोई भी पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा अवधि के लिए निरुद्ध नहीं कर सकती. गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर यह समय 24 घंटे से अधिक नहीं हो सकता. आरोपी को 24 घंटे के भीतर न्यायालय में पेश करना अनिवार्य होता है.
धारा 167 कहती है कि जब 24 घंटे के अंदर अन्वेषण पूरा न हो तो पुलिस न्यायालय से आरोपी को रिमांड पर ले सकती है लेकिन उसे अवैध रूप से हिरासत में नहीं रख सकती.
वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तार व्यक्ति को कुछ अधिकार देता है. इसके मुताबिक, गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताना अनिवार्य होगा. दूसरा गिरफ्तार व्यक्ति को अपने पसंदीदा अधिवक्ता से परामर्श लेने की पूरी छूट होगी. उसे 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा. साथ ही उसके परिजनों को भी सूचित किया जाएगा.
कई मामलों में देखा गया है कि पुलिस इन नियमों का पालन नहीं करती है. मनमर्जी से पांच-पांच दिन तक अवैध रूप से हिरासत में रखा जाता है. इस प्रकार निर्दोषों का शोषण और कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है.
वहीं, अवैध अभिरक्षा के खिलाफ सुप्रीन कोर्ट में जाकर habeas Corps की याचिका दायर कर सकते हैं. वहीं, भारतीय दंड संहिता की धारा 342 के तहत पुलिस कर्मियों को एक वर्ष का कारावास और एक हजार रुपये जुर्माने की सजा का भी प्रावधान है.
प्रस्तुति – रीना हनीफ, एडवोकेट, बरेली