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हिन्दुओं में भी लोकप्रिय हैं डा. मोहम्मद खालिद, कहा- नेताओं के लिए हिन्दू-मुस्लिम शब्द ही नहीं होना चाहिए, पढ़ें पूर्व डिप्टी मेयर डा. खालिद से खास बातचीत

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कोरोना का कहर एक बार फिर बढ़ता जा रहा है. देश भर से इलाज के संकट की खबरें आने के बाद लोगों का गुस्सा सरकारों पर फूटता जा रहा है. लोग अस्पतालों की बदहाली और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के अभाव के लिए धर्म की राजनीति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. अगर उस वक्त हम हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई छोड़ विकास के लिए लड़ते तो शायद आज इस महामारी से लड़ने में इस तरह की अव्यवस्थाओं से नहीं जूझना पड़ता. बरेली के पूर्व डिप्टी मेयर डा. मोहम्मद खालिद का भी यही मानना है. डा. खालिद मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखते हैं मगर वह हर धर्म का उतना ही सम्मान करते हैं जितना मुस्लिम धर्म का करते हैं. यही वजह है कि मंदिर हो या गुरुद्वारा डा. खालिद के कदम कहीं नहीं रुकते. इसीलिए वह मुस्लिमों के साथ है हिन्दुओं के भी लोकप्रिय नेता हैं. अपने डिप्टी मेयर के कार्यकाल के दौरान उन्होंने जितना महत्व मस्जिदों और मजारों को दिया उतना ही मंदिरों और गुरुद्वारों को भी दिया. धर्म की राजनीति और दूसरे धर्मों में उनकी आस्था को लेकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष और पूर्व डिप्टी मेयर डा. मो. खालिद ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : धर्म की राजनीति को लेकर उपजे वर्तमान हालातों के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
जवाब : मेरा मानना है कि भारत जैसे देश में किसी भी सरकार को हिन्दू-मुस्लिम करने का कोई अधिकार नहीं है. यह देश जितना हिन्दुओं का है उतना ही अन्य धर्मावलंबियों का भी है. यह देश बना ही इस तरह से है कि यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी मिलकर रह सकें. जब सब लोग मिलकर रहेंगे तभी यह देश आगे बढ़ेगा और तरक्की करेगा.
सवाल : आप एक मुस्लिम नेता हैं. आपने हिन्दुओं के लिए क्या किया?
जवाब : आपका सवाल बहुत अच्छा है. आजकल के नेता बात तो बहुत करते हैं पर अपने अंदर झांक कर नहीं देखते कि उन्होंने खुद क्या किया उस मुद्दे पर जिसकी वे बात करते हैं. मैं सबसे ज्यादा समय डिप्टी मेयर रहा बरेली में. जब मैं डिप्टी मेयर था तो जब भी हिन्दू त्योहार होता था तो हम मंदिरों में जाकर निरीक्षण करते थे और वहां अपनी सामर्थ्य के हिसाब से साफ सफाई और अन्य कार्य कराते थे. ये हमारा पहला काम था साम्प्रदायिक सौहार्द की दिशा में, जब हम किसी पावर में थे. हमने जितना महत्व मस्जिदों और मजारों को दिया उतना ही महत्व गिरिजाघरों, मंदिरों और गुरुद्वारों को भी दिया. अगर हम जिले के नेता हैं तो हम न हिन्दू होते हैं न मुसलमान होते हैं. नेता के लिए हिन्दू-मुस्लिम शब्द तो कुछ होना ही नहीं चाहिए. हमें सबके कार्यक्रमों में उसी श्रद्धा के साथ जाना चाहिए जिस श्रद्धा के साथ अपने धर्म के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं. हमारे ऊपर ऐसा कोई आरोप नहीं है कि हमने कभी भी हिन्दू-मुस्लिम में कोई भेद किया.

सवाल : हिन्दुओं के ऐसे किसी कार्यक्रम में आप शामिल हुए?
जवाब : हमारे मढ़ीनाथ में बहुत बड़ा मंदिर है जहां हम जाते हैं, करगैना में बालाजी का मंदिर है, जहां एक गुरु जी थे जो अब नहीं रहे. अब उनके बेटे हैं. वहां भी हम जाते हैं. सदर में मंदिर है. इसके अलावा कई मंदिर हैं जहां हम गए. हमें याद भी नहीं कि कितने मंदिरों में हम गए हैं. हमारा धर्म भी कहता है कि किसी भी धर्म की बुराई न करो. ये तो आजकल का माहौल बन गया है कि नेता किसी भी धर्म पर कटाक्ष करके वोट पाने का काम कर रहे हैं. हमें क्या अधिकार है कि किसी भी धर्म की बुराई करें. हर धर्म पर उस धर्म के लोगों की आस्था होती है. एक राजनेता का काम किसी धर्म के लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाने का नहीं है.
सवाल : आपने कभी किसी मंदिर में कोई काम कराया है?
जवाब : देखिए यह कहने की बात नहीं है कि हमने क्या किया है मंदिरों या दूसरे धर्म के आयोजनों को लेकर? हमने करगैना के शिवजी के मंदिर में काम कराया, बालाजी मंदिर में काम कराया, कई मंदिरों में डोनेट किया लेकिन एक नेता के लिए यह उचित नहीं है कि धार्मिक कार्यों का ढिंढोरा पीटे. हमारे यहां कांवड़ यात्रा निकलती है तो उसमें भी सेवा करते हैं. भंडारों में सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं जाते बल्कि सबके साथ बैठकर प्रसाद भी ग्रहण करते हैं. मेरा मानना है कि अन्न का कभी अपमान नहीं होना चाहिए, हमें अगर सड़क पर अन्न पड़ा दिखता है तो उसे साइड भी करवाते हैं ताकि उस पर किसी का पैर न पड़े. कई बार दीपावली में पूजा के बाद लोग भगवान की प्रतिमा को ऐसे ही छोड़ देते थे तो हम उसे उठाकर रख लेते हैं और बाद में अपने स्टाफ से उसे गंगा में प्रवाहित करवा देते हैं.
सवाल : क्या कभी हिन्दुओं के किसी बड़े धार्मिक स्थल पर भी जाना हुआ?
जवाब : बरेली के अंदर मुझे मुस्लिम होने के नाते गर्व है कि मैं उस वक्त उत्तराखंड के जागेश्वर धाम गया जिस वक्त बरेली से ज्यादा लोग वहां नहीं जाते थे. जिस जगह पर हमने तस्वीरें खिंचवाईं वहां एक फिल्म की शूटिंग भी हुई.
सवाल : आप सपा में लगभग 25 साल रहे. कहा जाता है कि सपा हिन्दू-मुस्लिमों के बीच की खाई बढ़ाने का काम करती है?
जवाब : हम सपा में रहे और आज हम प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में हैं लेकिन सपा में कभी यह नहीं कहा गया कि हिन्दू-मुस्लिम करना है या हिन्दू मुस्लिम को लड़ाना है. वहां भी हमारी कोशिश रही कि हिन्दू समाज भी जुड़े, मुस्लिम समाज भी जुड़े. यह बात सही है कि मुस्लिम समाज ज्यादा जुड़ा हुआ है लेकिन माननीय नेता जी ने हमें कई बार निर्देश भी दिए और आज बड़ी संख्या में हिन्दू समाज जुड़ा भी है. यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि सिर्फ मुसलमानों की पार्टी है.
सवाल : हिन्दू नेताओं से आपके कैसे संबंध हैं? क्या कभी गरीब हिन्दुुुुओं को दान दिया?

जवाब : मेरे सभी हिन्दू नेताओं से बहुत अच्छे संबंध हैं. भाजपा, बसपा, कांग्रेस आदि दलों के हिन्दू नेताओं के घर मेरा काफी आना जाना रहा है. शादी त्योहारों में हमारा आना जाना रहता है. होली मेले में हम शामिल होते रहे हैं, वाल्मीकि समाज के कई कार्यक्रमों में हम बतौर चीफ गेस्ट भी शामिल हुए. हमारे धर्म में यह माना जाता है कि अपनी आय का दो फीसदी पैसा दान में देना चाहिए. मैं हिन्दू-मुस्लिम देखकर दान नहीं करता. अपनी आय का दो प्रतिशत पैसा जो भी जरूरतमंद मिलता है चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान हो, उसे दान करता हूं.
सवाल : आप रोटरी क्लब 8 पीएम से भी जुड़े हैं. क्या क्लब के माध्यम से भी कभी दूसरे धर्म के लोगों के लिए कुछ किया?
जवाब : क्लब के माध्यम से कई बार ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें गरीबों की मदद की. एक आश्रम है जहां हमने खाने का कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को भोजन कराया. गरीब बेटियों के विवाह भी करवाए.

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