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कोर्ट पहुंचा नगर आयुक्त अभिषेक आनंद द्वारा दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का मामला, बिल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए गिराने जा रहे थे महिला की तीन दुकानें, पढ़ें क्या है पूरा मामला?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए दो करोड़ रुपए की रिश्वत लेकर बेबस महिला की तीन दुकानें गिराने का प्रयास करने के मामले में नगर आयुक्त अभिषेक आनंद, अपर नगर आयुक्त अजीत कुमार सिंह और सहायक लेखा अधिकारी ह्रदय प्रकाश की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं| बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए जिस अनुपमा राघव की दुकानों को गिराने के लिए नगर निगम की ओर से नोटिस दिया गया था वह अनुपमा यादव और कोर्ट की शरण में जा चुकी हैं| उन्होंने विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण प्रथम उमेश चंद्र पांडेय की अदालत में उक्त अधिकारियों के खिलाफ याचिका दायर की है. उन्होंने नगर निगम के तीनों अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं| अनुपमा राघव ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि 6 जून 1995 को तत्कालीन प्रशासक नगर निगम की ओर से नगर निगम अधिनियम की धारा 129 (3) के तहत तीन दुकानों का आवंटन मिशन मार्केट सिविल लाइंस अशोका फोम के सामने बरेली उत्तर प्रदेश शासन के निर्देश पर मृतक आश्रित कोटे में नौकरी के एवज में किया गया था| इससे संबंधित अनुबंध पत्र 23 सितंबर 1995 को हस्ताक्षरित किया गया था| इसके बाद भी उन्हें कब्जा समय से नहीं दिया गया और बाद में माननीय न्यायालय के आदेश पर समय से कब्जा न देने पर मय मुआवजा 12% ब्याज के साथ कब्जा देने के निर्देश दिए गए थे|

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न्यायालय के आदेशों के बाद उन्हें दुकानों पर कब्जा दिया गया| उस समय प्रशासक के पास नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी समिति नगर आयुक्त की भी सारी शक्तियां थी| उन्होंने कहा कि शहर के कुछ बिल्डरों और भू माफियाओं द्वारा उनकी दुकान के पीछे की जमीन को गलत तरीके से खरीदा गया है| यह बिल्डर और भूमाफिया उक्त जमीन पर शुरू से ही कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रयास कर रहे हैं| इसके कारण नगर निगम की ओर से सितंबर 2004 में उनकी दुकानों को अतिक्रमण के नाम पर ध्वस्त भी कर दिया गया था| इसके बाद उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी और माननीय उच्च न्यायालय एवं महिला आयोग के आदेश पर उनकी ध्वस्त की गईं दुकानें नगर निगम ने दोबारा से इमर्जेंट फंड से बनवाईं| वर्ष 2011 में उन्हें दोबारा से बनाई गई दुकानों पर कब्जा दिया गया| बरेली मंडल की तत्कालीन संयुक्त आयुक्त विकास आईएएस अधिकारी अनीता चटर्जी ने पूरे मामले की जांच बतौर जांच अधिकारी की थी| जांच रिपोर्ट में उन्होंने स्पष्ट रूप से अंकित किया था कि मिशन कंपाउंड की भूमि को बिल्डर ने खरीदा है, अतः दुकानें गिराने के पीछे बिल्डर को लाभ पहुंचाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता|
उन्होंने कहा कि जब से नगर निगम में अभिषेक आनंद की बतौर नगर आयुक्त तैनाती हुई है तब से सचिन भारद्वाज पुत्र अनिल भारद्वाज और नगर निगम द्वारा ब्लैक लिस्ट की गई एडवरटाइजिंग कंपनी के संचालकों (जिनमें हरीश अरोड़ा आदि लोग शामिल हैं) द्वारा उनकी दुकानों को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है| नगर आयुक्त अभिषेक आनंद, अपर नगर आयुक्त अजीत कुमार सिंह और सहायक लेखा अधिकारी ह्रदय प्रकाश द्वारा पहले तो उन पर दुकानें ओने पौने दामों में देने का दबाव बनाया गया| जब वह दुकानें देने को तैयार नहीं हुईं तो उनकी दुकानों को गिराने का षडयंत्र रचा जाने लगा| उन्होंने आरोप लगाया कि इसके बदले में अभिषेक आनंद ने बिल्डरों से दो करोड़ रुपए की रिश्वत लेकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए उनकी दुकानों को 5 दिन में खाली करने और 5 दिन में खाली न करने पर उन्हें गिराने का नोटिस जारी कर दिया| उन्होंने नगर निगम के अधिकारियों पर फर्जी साक्ष्य तैयार करने का भी आरोप लगाया है| उन्होंने आरोप लगाया कि नगर आयुक्त ने उन्हें अपने घर पर बुलाया और 10 लाख रुपए रिश्वत देने को कहा. साथ ही रिश्वत न देने की सूरत में उनकी दुकानों को गिराने की धमकी दी| इतना ही नहीं नगर आयुक्त और अन्य अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेज भी तैयार कर लिए और उनके द्वारा दी गई नजराना राशि को गलत तरीके से किराए में समायोजित कर दिया| इस षड्यंत्र के खिलाफ उन्होंने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में गुहार लगाई और उच्च न्यायालय ने नवंबर 2020 में उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए नगर निगम को दुकानों कि किराएदारी आगे बढ़ाने पर विचार करने का आदेश दिया था|

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डॉ. अनुपमा राघव ने आरोप लगाया है कि प्रतिवादी गण अभी भी हठधर्मिता पर आमादा हैं| साथ ही नगर निगम में वकीलों की फौज होने के बावजूद डेजिग्नेटिड वकील शशिनंदन को नियम के विपरीत हायर कर लिया है| इस संबंध में जब उन्होंने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी तो उन्हें धोखा देने के मकसद से गलत जानकारी दे दी गई| साथ ही माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दुकानों की किराएदारी बढ़ाने पर विचार करने के संबंध में दिए गए आदेशों को भी अनदेखा कर उच्च न्यायालय की गरिमा को भी ठेस पहुंचाने का काम किया है| डॉक्टर अनुपमा राघव ने याचिका दायर कर इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है| बहरहाल, आरटीआई के तहत गलत जानकारी देने और फर्जी दस्तावेज बनाने समेत बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के मामले में नगर आयुक्त अभिषेक आनंद और उनके साथी अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं|

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