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सुप्रिया तो बहाना है, प्रवीण सिंह ऐरन का 2024 पर निशाना है, पढ़ें भाजपा के मंच पर पूर्व मेयर सुप्रिया ऐरन की मौजूदगी के क्या हैं मायने?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी उठापटक भी तेज हो गई है. बरेली में भी भी इसकी बुनियाद रखी जाने लगी है. जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में करिश्माई तरीके से जीत हासिल करने वाली भाजपा ने पिछले दिनों पूर्व मेयर और कांग्रेस नेत्री सुप्रिया ऐरन को अपने मंच पर लाकर सबको हैरान कर दिया. भाजपा के मंच पर सुप्रिया की मौजूदगी के सियासी गलियारों में कई मायने लगाए जा रहे हैं. हालांकि, सुप्रिया ऐरन अभी भी खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बता रही हैं लेकिन चर्चाओं का बाजार तो गर्म हो ही चुका है.
दरअसल, सुप्रिया ऐरन के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं काफी समय से हो रही हैं. अब तक इसे सिर्फ हवा हवाई ही करार दिया जा रहा था लेकिन अब जबकि भाजपा के मंच पर सुप्रिया ऐरन ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है तो इन चर्चाओं को बल मिला है. सियासी जानकार इसे पूर्व सांसद और सुप्रिया ऐरन के पति प्रवीण सिंह ऐरन के राजनीतिक भविष्य से जोड़ कर देख रहे हैं. उनका मानना है कि प्रवीण सिंह ऐरन सुप्रिया के माध्यम से वर्ष 2024 पर निशाना साधना चाहते हैं. चूंकि बरेली के वर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार आगामी लोकसभा चुनाव तक 75 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके होंगे. ऐसे में वह भाजपा के 75+ के फॉर्मूले के दायरे में आ जाएंगे. ऐसे में वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे और पार्टी के मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बन जाएंगे अथवा किसी प्रदेश के राज्यपाल बना दिए जाएंगे. संतोष गंगवार की विदाई के बाद भाजपा को उन्हीं की तरह कद्दावर और सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता होगी. कयास लगाए जा रहे हैं कि संतोष की विरासत उन्हीं के परिवार का कोई शख्स संभालेगा. सियासी जानकार मानते हैं कि संतोष गंगवार की सियासत की विरासत पर प्रवीण सिंह ऐरन की नजर है. ऐसा होना भी लाजिमी है क्योंकि प्रवीण सिंह ऐरन इस सीट से कई बार संतोष गंगवार से मुंह की खा चुके हैं. प्रवीण सिंह ऐरन जानते हैं कि कांग्रेस में रहकर फिलहाल उनका यह सपना पूरा नहीं होने वाला. हां, अगर वह भगवा ब्रिगेड में शामिल हो जाएं तो उनकी राह बेहद आसान हो सकती है. बरेली शहर में कभी कांग्रेस का मतलब ही प्रवीण सिंह ऐरन हुआ करता था. आज भी पार्टी में उनका कद काफी बड़ा है. ऐसे में भाजपा में सीधे-सीधे शामिल होना उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. जो सम्मान उन्हें कांग्रेस में मिला वह भाजपा में मिलता फिलहाल नजर नहीं आ रहा. ऐसे में प्रवीण सिंह ऐरन को कोई ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. सियासी जानकार बताते हैं कि प्रवीण सिंह ऐरन सुप्रिया के माध्यम से यह दांव खेलने की तैयारी कर रहे हैं. भाजपा के मंच पर सुप्रिया ऐरन की मौजूदगी इसी का ट्रेलर है. असल पिक्चर तो वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देखने को मिलेगी. सियासी सूत्रों का कहना है कि प्रवीण सिंह ऐरन इन दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार के साथ भी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं. सूत्र यह भी बताते हैं कि संतोष गंगवार भी ऐरन को पूरी तवज्जो दे रहे हैं. बताया जाता है कि ऐरन की नजर लोकसभा चुनाव जीतकर संतोष गंगवार की ही तरह केंद्रीय मंत्री पद हासिल करने पर है. अब देखना यह होगा कि प्रवीण सिंह ऐरन भाजपा में शामिल होकर संतोष गंगवार की विरासत संभालेंगे या फिर कांग्रेस में रहकर ही सियासी मैदान मारेंगे. बहरहाल, चर्चाओं का बाजार गर्म है और कहा तो यहां तक जा रहा है कि सुप्रिया ऐरन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा का दामन थाम लेंगी. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस मुक्त भारत की दिशा में भाजपा का यह एक और बड़ा कदम माना जाएगा.

जब जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो सकते हैं तो प्रवीण सिंह ऐरन क्यों नहीं?
सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में अब कोई भी नेता अपना सियासी भविष्य सुरक्षित नहीं देख रहा. यही वजह है कि एक के बाद एक पार्टी नेता भाजपा या दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं. जानकारों का कहना है कि जब जितिन प्रसाद जैसे दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं तो फिर प्रवीण सिंह ऐरन क्यों नहीं हो सकते? कुछ सियासी सूत्र यह भी बताते हैं कि सुप्रिया ऐरन भाजपा से विधानसभा चुनाव भी लड़ सकती हैं. उनका कहना है कि ऐरन दंपति दो सीटों पर दावा जता रहा था जिस कारण भाजपा में उनकी एंट्री लटकी हुई है. भाजपा एक सीट तो देने को तैयार है लेकिन दो सीटें देने को तैयार नहीं. वहीं कुछ सूत्र बताते हैं कि प्रवीण सिंह ऐरन ने अपने लिए राज्यसभा और पत्नी के लिए विधानसभा का टिकट मांगा है. बहरहाल, ये सब अटकलें और चर्चाएं हैं, इनमें कितनी सच्चाई है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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