नीरज सिसौदिया, बरेली
अब तक समाजवादी पार्टी को लेकर नरम रुख अपनाने वाले प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेताओं ने अब अखिलेश यादव के खिलाफ आक्रामक रुख अपना लिया है। हाल ही में इंडिया टाइम 24 को दिए गए एक साक्षात्कार में प्रसपा के प्रदेश मुख्य महासचिव वीरपाल सिंह यादव ने जनहित के मुद्दों के प्रति सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की खामोशी को लेकर निशाना साधा था पर वहीं अब प्रसपा के महानगर अध्यक्ष और पूर्व डिप्टी मेयर डा. मो. खालिद ने अखिलेश यादव की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा करते हुए उनके राजनीतिक कौशल पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
डा. खालिद ने अखिलेश यादव और उनकी टीम पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी को यह गलतफहमी हो गई है कि सपा वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव जीत रही है। बरेली का उदाहरण देते हुए डा. मो. खालिद ने कहा कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में 26 सदस्य होने के बावजूद सपा नहीं जीत सकी। दो तिहाई मुस्लिम और दो तिहाई यादव सदस्यों ने भाजपा को वोट दिया तो समाजवादी पार्टी कहां खड़ी है यह सोचने का विषय है। उनका आधार वोट बैंक ही उनके साथ नहीं रहा और वे तो पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधि थे जिन्होंने दूसरी पार्टी को वोट दे दिया तो यह कैसे माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी इस समय मजबूत पार्टी है।
डा. खालिद यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि वर्ष 2012 में जब अखिलेश यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे उसके बाद से समाजवादी पार्टी अकेले दम पर एक भी चुनाव नहीं जीती। चाहे वह 2014 का लोकसभा चुनाव हो, 2017 का विधानसभा चुनाव हो, उपचुनाव हो या फिर वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव, ये एक भी चुनाव नहीं जीते. इससे यह आकलन लगा लेना चाहिए कि आज की तारीख में भी वह 2022 का चुनाव तब तक नहीं जीत पाएंगे जब तक वह लोगों को नहीं जोड़ेंगे और छोटे दलों से गठबंधन नहीं करेंगे। वह सिर्फ सपा का ही वोट बैंक मानकर चल रहे हैं तो अब उनके पास इतना वोट बैंक नहीं रह गया है कि वह चुनाव जीत सकें। यूपी का चुनाव जातीय समीकरण के आधार पर लड़ा जाता है। मैं समाजवादी पार्टी के नेताओं से यह पूछना चाहता हूं कि जब यादव उनके साथ नहीं है, मुसलमान उनके साथ नहीं है तो वह कौन सी बिरादरी है जिसके दम पर वह चुनाव जीतकर आ जाएंगे। वह कहते हैं, ‘हम भी समाजवादी हैं, हमारा भी आधार समाजवाद है। हम सपा के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हम सपा के नेताओं को यह सुझाव देना चाहते हैं कि उन्हें अगर सत्ता में आना है तो उन्हें छोटे दलों के साथ गठबंधन करना ही होगा और उनके अधिकार की जो सीटें हैं वह उन्हेंं देनी ही होंगी। अखिलेश अगर अपना अहम छोड़कर सबको साथ लेकर चलेंगे तो निश्चित तौर पर समाजवादी पार्टी जीत सकती है लेकिन एकला चलो की नीति अपनाई तो जीतना मुश्किल हो जाएगा। वोटों के बिखराव को रोकना होगा और हमारे नेता शिवपाल यादव भी यही चाहते हैं। वह भी चाहते हैं कि अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनें लेकिन अगर सपा ने एकला चलो की नीति अपनाई तो यह नामुमकिन हो जाएगा.’
उन्होंने कहा कि अब ओवैसी की पार्टी भी सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. अगर अखिलेश ने छोटे दलों को साथ नहीं जोड़ा तो ओवैसी की पार्टी भी सपा का वोट बैंक तोड़ेगी जिसका सीधा सा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा. उन्होंने कहा कि सपा की हार आम तौर पर 10-12 हजार वोटों से होती रही है. छोटी पार्टियां इस कमी को पूरा कर सकती हैं.