नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी को सियासत के फलक पर ले जाने वाले सपा के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव वैसे तो अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में ही ही पार्टी से किनारे होने लगे थे लेकिन उनका सम्मान पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच पहले की तरह ही बरकरार था। शिवपाल यादव के मुद्दे को छोड़ दें तो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपने पिता के आशीर्वाद के बिना कोई भी नया काम शुरू नहीं करते। हाल ही में उन्होंने विजय रथ यात्रा की शुरूआत करने से पूर्व भी मुलायम सिंह का आशीर्वाद लिया था। लेकिन शायद सपा के कुछ नेता अब यह मान चुके हैं कि मुलायम सिंह यादव अब उनके किसी काम के नहीं रहे। यही वजह है कि ये नेता अब मुलायम सिंह यादव को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते। इसका ताजा उदाहरण शनिवार को बरेली जिले के बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिला। यहां समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अता उर रहमान अपने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन के बैनरों पर मुलायम सिंह यादव की तस्वीर लगाना ही भूल गए। अता उर रहमान के इस कारनामे ने सिर्फ बरेली ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इस घटना के बाद लोगों में यह संदेश जाने लगा है कि पार्टी में अब सिर्फ अखिलेश यादव ही सर्वोपरि हैं इसलिए मुलायम सिंह यादव को सम्मान दें या न दें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि ऐसा करने वाले नेता यह भूल चुके हैं कि मुलायम सिंह पार्टी के जन्मदाता ही नहीं बल्कि अखिलेश यादव के पिता भी हैं और एक बेटा अपने पिता का अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकता है।
बात अगर पूर्व मंत्री अता उर रहमान की करें तो आज जिस मुलायम सिंह की तस्वीर लगाना भी वह भूल गए हैं, ये वही मुलायम सिंह हैं जिन्होंने उस वक्त अता उर रहमान का साथ दिया था जब पूर्व विधायक मंजूर अहमद की हत्या के आरोप में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी थी। उस वक्त अगर मुलायम सिंह अता उर रहमान का साथ न देते तो शायद आज वह सियासत के काबिल भी न होते। हालांकि, अता उर रहमान की मंशा यह बिल्कुल भी नहीं रही होगी कि वह मुलायम सिंह का अपमान करें लेकिन इतना जरूर साबित हो गया कि अता उर रहमान अब मुलायम सिंह को उस गंभीरता से नहीं लेते जिस गंभीरता से लेना चाहिए। अगर पहले की तरह ही वह नेता जी को गंभीरता से लेते तो शायद उनका ध्यान सबसे पहले मुलायम सिंह की तस्वीर पर ही जाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अखिलेश यादव और जिला अध्यक्ष अगम मौर्य की तस्वीर लगाना वह नहीं भूले मगर मुलायम सिंह उन्हें याद नहीं रहे। क्या मुलायम सिंह की हैसियत अब पार्टी में अगम मौर्य के बराबर भी नहीं रह गई है? यह सवाल आम जनता के मन में भी उठने लगा है।
इस घटना के बाद इलाके में यह चर्चा तेज हो गई है कि जो नेता अपनी पार्टी के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही उनका बनता सम्मान नहीं दे रहा, जो पार्टी के संस्थापक को याद नहीं रख सका वह आम जनता को कैसे याद रख पाएगा?
बता दें कि पिछले लगभग चार साल से जनता से दूरी बनाये रखने के कारण बहेड़ी की जनता अता उर रहमान से नाराज चल रही है। ऐसे में मुलायम सिंह का अपमान करना उन्हें भारी पड़ सकता है। बहरहाल, मुलायम सिंह के राजनीतिक अस्तित्व पर भी अब सवाल खड़े होने लगे हैं।