नीरज सिसौदिया, बरेली
बिथरी विधानसभा सीट पर विधानसभा का सियासी घमासान बेहद दिलचस्प मोड़ पर आ पहुंचा है। भाजपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामने वाली अल्का सिंह की उम्मीदवारी ने चुनावी तस्वीर पूरी तरह से बदल दी है। अब तक यहां भाजपा की राह आसान मानी जा रही थी लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में अल्का सिंह की एंट्री ने सारे सियासी समीकरण बदल दिए हैं। अब यहां न तो हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई रह गई है और न ही दलितों-अगड़ों और पिछड़ों की। अब मुकाबला प्रत्याशी के चेहरे पर होगा। एक तरफ जहां टिकट न मिलने के कारण निवर्तमान विधायक राजेश मिश्र उर्फ पप्पू भरतौल के समर्थक भाजपा से नाराज हैं तो वहीं पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव का टिकट कटने से वीरपाल के समर्थकों की नाराजगी भी चरम पर है। यहां चार दलों के बीच मुख्य मुकाबला है और चारों ही दलों से नए चेहरे मैदान में हैं। सभी चेहरे पढ़े-लिखे और साफ-सुथरी छवि वाले हैं। तीन पुरुषों के बीच एकमात्र महिला चेहरा अल्का सिंह का है। महिलाओं के बीच वह अच्छी पकड़ भी बना चुकी हैं। समाजवादी पार्टी के पूर्व महानगर अध्यक्ष और पूर्व डिप्टी मेयर डा. खालिद भी अब उसी कांग्रेस का हिस्सा बन चुके हैं जिससे अल्का सिंह मैदान में उतरी हैं।
बता दें कि डा. मोहम्मद खालिद वीरपाल सिंह यादव के बेहद करीबी हैं। दोनों समाजवादी पार्टी में साथ रहे और दोनों ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में भी साथ ही रहे। बिथरी विधानसभा सीट पर डा. खालिद और उनके समर्थकों ने वीरपाल सिंह यादव को चुनाव लड़ाने की पूरी तैयारी की हुई थी लेकिन वीरपाल सिंह यादव को टिकट न मिलने से सारी तैयारी धरी रह गई। अब जब डा. खालिद कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं तो डा. खालिद की तैयारी अल्का सिंह के काम आएगी। चूंकि वीरपाल सिंह यादव कोरोना संक्रमित हो चुके हैं इसलिए वे किसी से मुलाकात नहीं कर रहे। ऐसे में अब तक जो लड़ाई सपा और भाजपा के बीच मानी जा रही थी वह लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच हो गई है। इसका मतलब यह नहीं है कि बसपा और सपा मुकाबले से बाहर हो चुकी हैं। ये दोनों पार्टियां भी निर्णायक भूमिका में हैं और कभी भी बड़ा बदलाव हो सकता है। चूंकि अल्का सिंह वेल नोन पर्सनालिटी हैं जो अन्य कोई भी प्रत्याशी नहीं है, इसलिये वह मुकाबले में भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही हैं। चूंकि अल्का सिंह भाजपा से कांग्रेस में आई हैं तो बड़ी तादाद में उनके वे समर्थक भी खुलकर या अंदरखाने उनका समर्थन कर रहे हैं जो उनके साथ भाजपा में थे। एंटी भाजपा और एंटी सपा वोट के साथ ही डा. खालिद की मौजूदगी बड़ी तादाद में मुस्लिम वोटर्स का डायवर्जन भी कांग्रेस के पाले में करने में सक्षम है। ऐसे में जिले में बिथरी एकमात्र ऐसी सीट है जहां कांग्रेस प्रतिद्वंदी भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है। ऐसे में अगर भाजपा से नाराज पप्पू भरतौल के कुछ समर्थकों का साथ भी अल्का सिंह को मिल गया तो भाजपा की मुसीबत बढ़ सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह अगम मौर्य, तौफीक प्रधान और आशीष पटेल हैं। मुस्लिम वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा तौफीक प्रधान के खाते में जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं क्योंकि तौफीक प्रधान के अपने सियासी वजूद के अलावा एआईएमआईएम के जिला पंचायत सदस्य चुने गए वारसी की भी मुस्लिम वोटर्स में गहरी पैठ है। सपा प्रत्याशी अगम मौर्य और बसपा प्रत्याशी आशीष पटेल भी कुछ हिन्दू और कुछ मुस्लिम वोट निश्चित तौर पर काटेंगे। जब हिन्दू और मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा तो निश्चित तौर पर यहां हिन्दू-मुस्लिम फैक्टर हार और जीत का फैसला नहीं करेगा। ऐसे में शख्सियत और सियासी वजूद ही काम आएगा और अल्का सिंह का चेहरा बिथरी की जनता के लिए किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आशीष पटेल भी अपने पिता के नाम के चलते बिथरी के लिए अंजान नहीं हैं। राघवेंद्र शर्मा का चेहरा यहां के काफी लोगों के लिए नया जरूर है लेकिन भाजपा का मजबूत संगठन उन्हें मजबूती प्रदान कर रहा है। अगम मौर्य के समक्ष सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि वह पिछली बार आंवला सीट से दूसरी पार्टी से चुनाव लड़े थे और अब उनकी पार्टी के साथ ही सीट भी बदल गई है। यहां सपा का संगठन वीरपाल यादव की वजह से मजबूत था लेकिन अब बेहद कमजोर नजर आ रहा है। बहरहाल, बिथरी सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। आगामी चार से पांच दिनों के भीतर तस्वीर काफी हद तक साफ होने की उम्मीद जताई जा रही है।
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