झारखण्ड

माओवादी आज से मनाएंगे शहीद सप्ताह, पुलिस अलर्ट

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बोकारो थर्मल। रामचंद्र कुमार अंजाना
भाकपा माओवादियों की केंद्रीय कमेटी बुधवार से शहीद स्मृति सप्ताह मनाएगी। माओवादी नेता की याद में 3 अगस्त तक मनाए जाने वाले कार्यक्रम को लेकर माओवादियों ने तैयारी पूरी कर ली है। झारखंड के कई इलाकों में गुरुवार को माओवादियों ने शहीद सप्ताह को लेकर पोस्टर लगाया। शहीद सप्ताह के दौरान नक्सली किसी बड़ी वारदात को अंजाम न दे सकें, इसके लिए पुलिस मुख्यालय ने अलर्ट जारी किया है। 28 जुलाई से शुरू होने वाले शहीद सप्ताह को लेकर बोकारो पुलिस अलर्ट हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में पहले से चल रहे अभियान को और तेज कर दिया है। शहीद सप्ताह को लेकर बोकारो पुलिस अलर्ट जारी कर दिया गया है। खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में विशेष चौकसी बरतने के आदेश दिए गए हैं। नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखने की हिदायत दी है। पुलिस रेलवे स्टेशनों पर भी पैनी निगाह रखे हुए है। नक्सल प्रभावित रेलवे स्टेशनों पर अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है।
कोविड संक्रमण, एनकाउंटर से मारे गए कई नक्सली : एक साल में 160 माओवादियों की मौत पुलिस मुठभेड़ या अन्य वजहों से हुई है। माओवादियों की ओर से ही जारी आंकड़ों की मानें तो झारखंड- बिहार में 11 नक्सली मारे गए हैं। वहां दंडकारण्य में सबसे अधिक 101 नक्सली मारे गए हैं। इसके अलावा ओडिशा में 14, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में आठ, आंध्र और ओडिशा सीमा क्षेत्र में 11, पश्चिमी घाटी में एक और तेलंगाना में 14 माओवादी शहीद हुए हैं। इन 160 नक्सलियों में से 30 महिला हैं, जिनकी मौत हुई है। सूत्रों का कहना है कि माओवादियों को बीमारी की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ा है। माना जा रहा है कि कोविड-19 की वजह से अबतक 13 नक्सलियों की मौत हुई है। माओवादियों की केंद्रीय कमेटी ने फैसला लिया है कि मारे गए नक्सलियों की स्मृति में वें गांवों और शहरों में कार्यक्रम करेंगे। इनकी याद में स्मारकों का भी निर्माण कराया जाएगा। इसके अलावे नाटक-गीतों के जरिए उनके बारें में जानकारी दी जाएगी। उनके परिवारों को भी कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
शहीद सप्ताह के दौरान अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं माओवादी : माओवादी अपने मारे गए साथियों को शहीद का दर्जा देकर हर वर्ष शहीद सप्ताह मनाते हैं, इस दौरान संगठन की कोशिश रहती है कि किसी बड़ी वारदात को अंजाम देकर अपनी धमक को को दिखाएं। अब माओवादी ने अपने प्रभाव वाले इलाकों में पोस्टर लगाकर शहीद सप्ताह मनाने का संदेश देंगे। हजारीबाग और गिरीडीह के इलाकों में माओवादियों ने शहीद सप्ताह को लेकर पोस्टरबाजी कर सीमावर्ती इलाका बोकारो में चहलकदमी भी शुरू कर दिए है। इधर, थाना प्रभारी सुमन कुमार ने भी पुष्टि की है कि सीमावर्ती इलाकों में नक्सलियों ने पोस्टरबाजी की है। वरीय अधिकारियों के दिशा-निर्देश के अलोक में उनके हर मुवेंट पर पुलिस की पैनी नजर है।

ग्रामीणों के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ है खाई
बोकारो थर्मल। रामचंद्र कुमार अंजाना
बोकारो के झुमरा पहाड़ और ऊपरघाट के लोगों की दास्तां बहुत दर्दभरी है। यहां के गांवों में नक्सल समर्थक होने का ठप्पा है। गिरीडीह और हजारीबाग बॉर्डर से लगे ऊपरघाट का इलाका माओवादियों का कॉरिडोर है। इस कोरिडोर से छतीसगढ़, बंगाल, बिहार और नेपाल जुड़ा हुआ है। एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई…। झुमरा पहाड़ और ऊपरघाट के आसपास के गांव के लोगों के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल है। हथियार के बल नक्सली ग्रामीणों से खाना मांगते हैं तो देना पड़ता है जबकि पुलिस भी अभियान के क्रम में गांव पहुंचती है तो उन्हें सब बताना पड़ता है। बाद में ग्रामीणों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है। ग्रामीणों का कहना है कि वें दोनों तरफ से मारे जाते हैं। कुछ ग्रामीणों की आपसी रंजिश है तो कुछ मजबूरी के कारण शिकार हुए हैं। गांव के कुछ लोगों पर मुकदमा है और वे जेल गए हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा इलाका नक्सली है।
1980-90 में बढ़ी नक्सली गतिविधि, सैकडों लोगों पर है मुकदमा 

झुमरा पहाड़ और ऊपरघाट के विभिन्न गांवों के सैकड़ों लोगों पर नक्सल गतिविधि से संबंधित मुकदमा दर्ज है। इलाके की बड़ी आबादी कृषि पर आधारित है। यह इलाका रामगढ़, हजारीबाग और गिरीडीह से सटा है। पुलिस और सुरक्षा बलों ने इन गांवों को रडार पर लिया है। पुलिस और सुरक्षाबल आज भी इन गांवों में नक्सल अभियान और गतिविधि के खिलाफ कार्रवाई के लिए ही जाते हैं। झुमरा पहाड़ और ऊपरघाट के कई युवक में जेल से बाहर निकले है और अब मुख्य धारा में जीवन गुजार रहा है। न्यायिक कारणों से वह कैमरे के सामने नहीं आ रहें है। इनलोगों बताया कि गांव के लोग पुलिस और नक्सलियों के बीच पीस रहे हैं। कुछ समय से नक्सली नहीं आ रहे हैं। ग्रामीण आपस में ही लड़ रहे हैं और एक दूसरे को नक्सली बताकर फंसा रहे हैं।
गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी, नहीं जाते प्रशासनिक अधिकारी :
झुमरा पहाड़ और ऊपरघाट के गांवों में अधिकारी नहीं जाते हैं। विधायक या नेता चुनाव के वक्त ही जाते हैं। कुछ ही नेता लोगों से मिलते हैं। बारिश के दिनों में ये इलाका कट जाता है। गांव को जोड़ने वाला पुल अधूरा है। गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। स्कूल है लेकिन शिक्षक नहीं आते हैं। गांव की बड़ी आबादी कई सरकारी योजना, आवास और पेंशन से वंचित है। यहां आने के लिए कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। पुल नहीं होने के कारण लोग काफी परेशान हैं।

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