दिल्ली

चांदनी चौक के रण में कूदा पूर्व सीएम का पोता और संघ का समर्पित गौ सेवक, बतौर निर्दलीय उम्मीदवार कराया नामांकन, खंडेलवाल की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, पढ़ें कैसे बदल रहे समीकरण?

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नीरज कुमार, नई दिल्ली

चांदनी चौक लोकसभा सीट पर चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है। यहां से सोमवार को विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े संगठन गौ सेवा निधि के उत्तर भारत प्रमुख रहे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के पौत्र और पूर्व आईएएस अधिकारी के पुत्र पंडित कृष्णानंद शास्त्री ने भी ताल ठोंक दी है। उन्होंने सोमवार को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। बता दें कि इस सीट पर भाजपा ने पूर्व मंत्री डॉ हर्षवर्धन का टिकट काटकर प्रवीन खंडेलवाल को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इसके बाद से हर्षवर्धन के समर्थकों में निराशा देखने को मिल रही थी। अब कट्टर हिन्दूवादी नेता कृष्णानंद शास्त्री के मैदान में उतरने से खंडेलवाल की मुश्किलें और बढ़ती नजर आ रही हैं। शास्त्री की इलाके में मजबूत पकड़ है। वह भले ही यह सीट जीत न सकें लेकिन किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में निर्णायक भूमिका अदा जरूर कर सकते हैं। जमीनी स्तर पर गौरक्षा के लिए काम करने वाले शास्त्री के साथ जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की एक बड़ी टीम है। उनकी मौजूदगी से इलाके में हिन्दू वोटों का बंटवारा तय है। अगर हिन्दू वोटों का बिखराव होता है तो इसका सीधा सा असर प्रवीन खंडेलवाल पर पड़ सकता है।

बता दें कि गौ सेवा और गौ रक्षा से जुड़े लोगों के लिए पंडित कृष्णानंद शास्त्री का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनके पिता डॉ. विद्या सागर मिश्र एक आईएएस अधिकारी थे और दादा स्व. द्वारका प्रसाद मिश्र मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं जिनका अब निधन हो चुका है। लेकिन कृष्णानंद शास्त्री ने गौ सेवा को चुना और पिछले कई वर्षों से वह विश्व हिन्दू परिषद की विचारधारा के साथ गौ सेवा के अभियान को नए आयाम देने में जुटे रहे। विहिप से जुड़े संगठन गौ सेवा निधि के उत्तर भारत प्रमुख कृष्णानंद शास्त्री की जिंदगी का सफरनामा बेहद दिलचस्प रहा है।
एक विशेष साक्षात्कार में पंडित कृष्णानंद शास्त्री ने बताया, “मेरा जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में 15 अगस्त 1969 को हुआ था। मेरे पिता डॉ. विद्यासागर मिश्र एक आईएएस अफसर थे और मेरे दादा जी स्व. द्वारिका प्रसाद मिश्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मेरे पिता यूपी कैडर के 1972 बैच‌ के आईएएस अफसर थे। उनकी पोस्टिंग विदेश मंत्रालय में थी, इसलिए वह दिल्ली में ही रहते थे। मेरी मां भी यहीं माता सुंदरी कॉलेज में प्रोफेसर थीं। मेरे नाना स्व. पंडित लाल चंद शर्मा दिल्ली के ही गाजीपुर गांव के रहने वाले थे। वह यहीं गोल डाकखाना में हेड पोस्टमास्टर थे। इसलिए दिल्ली से मेरा रिश्ता बहुत पुराना और गहरा है।”
शास्त्री ने बताया, “पारिवारिक परिस्थितियों के चलते मुझे वर्ष 2017 में घर वापसी करनी पड़ी। उसी साल मेरी शादी हुई। मेरी पत्नी डॉ. रवीना शास्त्री दिल्ली के ही जीबी पंत अस्पताल में न्यूरो सर्जन हैं। मेरे दो बेटे राघव शास्त्री और कुश शास्त्री हैं। पांचवीं तक की पढ़ाई मैंने दिल्ली पब्लिक स्कूल, ग्वालियर से की। उसके बाद जब पिताजी की पोस्टिंग दिल्ली हुई तो हम भी दिल्ली आ गए। मैंने दिल्ली में ही मथुरा रोड स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल में एडमिशन लिया और फिर 12 तक की पढ़ाई यहीं से की। इसके बाद बीकॉम और एम कॉम की पढ़ाई मैंने दिल्ली के ही किरोड़ीमल कॉलेज से की। इसके बाद जामिया से वकालत की पढ़ाई की।” अपने राजनीतिक सफरनामे के बारे में बताते हुए शास्त्री कहते हैं, “दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में मैंने बीकॉम में ‌एडमिशन लिया था। पहले ही साल में मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी‌ परिषद से जुड़ गया। इसके बाद वर्ष 1991 में मुझे सचिव बनाया गया, 1993 में महासचिव और फिर वर्ष 1994 में मुझे दिल्ली प्रदेश के संगठन मंत्री के पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1995 में मुझे किरोड़ीमल कॉलेज छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1993 में मैंने विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन 14 हजार वोटों से हार गया। उस समय विधानसभा क्षेत्र काफी बड़े हुआ करते थे। तब हमारी विधानसभा सीट पर करीब सात लाख वोटर थे। इसके बाद वर्ष 2009 में मैंने निगम पार्षद का भी चुनाव पड़ा। फिर 2013 में भी पार्षद का चुनाव लड़ा।”
आगे का सफर कैसा रहा? वर्तमान में कौन सा दायित्व संभाल रहे थेस पूछने पर शास्त्री कहते हैं, “वर्तमान में मेरे पास गौरक्षा निधि में उत्तर भारत के प्रमुख का दायित्व था। हमारे विश्व हिन्दू परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष आलोक जी ने मुझे यह दायित्व सौंपा था और मैं हमारे संगठन मंत्री खेमचंद शर्मा जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गौरक्षा के लिए काम कर रहा हूं।”
शास्त्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे हैं। उनका कैसा अनुभव रहा और कौन-कौन से दायित्व संभाले, पूछने पर वह कहते हैं, “उस दौर में विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारियों को ओटीसी ‌करना पड़ती थी तो मैंने भी की थी। उस वक्त हमारे जो गुरु जी थे भैया जी जोशी, उन्होंने मुझे संघ का प्रचार करने के लिए प्रेरित किया और वर्ष 1995 में मुझे संघ में सहारनपुर जिला प्रचारक का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद मैं रुड़की रहा, मुजफ्फरनगर रहा। फिर मुझे क्षेत्रीय प्रचारक का दायित्व सौंपा गया और गुवाहाटी भेज दिया गया। इसके बाद छह महीने जम्मू-कश्मीर भी रहा। फिर कई प्रांतों में दायित्व संभालने के बाद वर्ष 2010 में मुझे विश्व हिन्दू परिषद में भेज दिया गया। यहां मुझे उत्तर गौरक्षा आयम में उत्तर भारत के सचिव पद का दायित्व सौंपा गया। तब से मैं विश्व हिन्दू परिषद में ही हूं।”

शास्त्री राम मंदिर आंदोलन का भी हिस्सा रहे हैं। वह कहते हैं, “विश्व हिन्दू परिषद की सबसे बड़ी उपलब्धि है राम मंदिर का निर्माण। मैं भी राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहा हूं। आज हमारे लिए गौरव की बात है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है।” अब मैं समर्थकों के अनुरोध पर चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हूं। यहां के लोगों के लिए मैं काम करना चाहता हूं। इसलिए चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।
बहरहाल, शास्त्री के उतरने से प्रवीन खंडेलवाल के समर्थकों में खलबली और बेचैनी देखने को मिल रही है क्योंकि चांदनी चौक में मुस्लिमों की अच्छी खासी आबादी है जो विपक्ष का परंपरागत वोट बैंक है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के चलते इन वोटों में सेंधमारी की संभावनाएं भी लगभग न के बराबर नजर आती हैं। ऐसे में शास्त्री किसकी जीत का शास्त्र बिगाड़ते हैं यह तो आगामी चार जून को ही पता चलेगा।

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