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ये दोस्ती सपा के लिए अच्छी है, दरगाह के लिए एक हुए सियासत के दुश्मन, कभी होती थी वार अब बन गए यार, जानिये कैसे एक हुए मुन्ना, कुरैशी, सक्सेना और शमीम?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
कहते हैं कि दुश्मनी कैसी भी हो हमेशा तकलीफ ही देती है, बात जब सियासत की हो तो ये तकलीफ मुसीबतों का पहाड़ भी बन सकती है। फिर न राजनीति रास आती है और न ही निजी जिंदगी। बरेली नगर निगम के चार पार्षदों को भी शायद ये बात समझ में आ चुकी है। तभी तो कभी एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले ये पार्षद अब बरेली से लेकर लखनऊ तक हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में साथ ही नजर आते हैं। चाहे मेयर या नगर आयुक्त को ज्ञापन देना हो या अखिलेश यादव की मीटिंग का हिस्सा बनना हो या फिर दरगाह का कोई कार्यक्रम हो, ये चारों अब दुश्मनी भूलकर एक साथ ही दिखाई देते हैं।
ये चारों कई बार के पार्षद बन चुके हैं। इनमें पहला नाम है अब्दुल कय्यूम खां उर्फ मुन्ना, दूसरे हैं आरिफ कुरैशी, तीसरे शमीम अहमद और चौथे हैं नगर निगम में समाजवादी पार्टी के पार्षद दल के नेता गौरव सक्सेना।
बरेली नगर निगम में और इनकी पार्टी में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो इनकी दुश्मनी से वाकिफ न हो। गौरव सक्सेना और शमीम अहमद तो बीच सड़क पर कचहरी में सरकार विरोधी धरना प्रदर्शन के दौरान सरकार से लड़ते-लड़ते आपस में भी लड़ बैठे थे। इसके बाद इनमें से एक पार्षद ने दूसरे को पिटवाने के लिए लड़कों की फौज तक बुला ली थी। लेकिन अब गिले-शिकवे भूलकर दोनों दुश्मन गलबहियां करते नजर आ रहे हैं।


इसी तरह आरिफ कुरैशी और गौरव सक्सेना भी एक समय एक-दूसरे के धुर विरोधी रह चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि गौरव सक्सेना के रूप में युवा महासचिव अनुभवी नेता और कई बार के पार्षद आरिफ कुरैशी को रास नहीं आ रहा था। यही वजह थी कि दोनों के बीच नोकझोंक की चर्चा अक्सर आम रहती थी। अब ये दोनों भी पुरानी अदावत भूलकर एक हो चुके हैं।
सबसे बड़ी जंग चला करती थी अब्दुल कय्यूम खां उर्फ मुन्ना और बानखाना के पार्षद शमीम अहमद के बीच। दोनों की अदावत इतनी बड़ी थी कि मामला पुलिस थाने और मुकदमेबाजी तक जा पहुंचा था। संगठन वाले भी इनकी अदावत से परेशान थे क्योंकि दोनों मुसलमान हैं और दोनों ही शहर विधानसभा सीट के तहत आने वाले वार्डों से ही पार्षद हैं। मुस्लिम ही पार्टी का वोट बैंक है। ऐसे में दोनों की आपसी अदावत कहीं न कहीं पार्टी के लिए भी मुसीबत का सबब बन रही थी। दोनों ही पूर्व मंत्री अता उर रहमान के करीबी भी माने जाते हैं। अब दोनों एक हैं और अक्सर साथ दिखाई देते हैं।


अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि ऐसा कौन सा चमत्कार हुआ कि इन चारों की दुश्मनी अचानक से दोस्ती में बदल गई। दरअसल, ये कमाल दरगाह आला हजरत का है। बरेली भाजपा के नेता नाथ कॉरिडोर की पुरजोर मांग कर रहे थे जिसे सरकार की मंजूरी भी मिल चुकी है। इसके बाद मुस्लिम पार्षदों को दरगाह का ख्याल आया और तीनों मुस्लिम पार्षदों ने आपस में रायशुमारी कर यह निर्णय लिया कि वो भी नाथ कॉरिडोर की तर्ज पर दरगाह आला हजरत कॉरिडोर की मांग मेयर के समक्ष रखेंगे। गौरव सक्सेना भले ही हिन्दू हैं लेकिन समाजवादी पार्टी पार्षद दल के नेता होने के नाते उन्हें भी जोड़ना अनिवार्य था। मुन्ना और गौरव सक्सेना के ताल्लुकात पहले से ही बेहतर रहे हैं। दोनों हमेशा एक-दूसरे का साथ देते आ रहे थे। ऐसे में गौरव सक्सेना को भी इस मुहिम का हिस्सा बनाया गया। जिसके बाद चारों एक हो गए और अब तो आलम ये है कि कुछ पार्षद  गौरव सक्सेना के मुस्लिम प्रेम को लेकर भी चुटकी लेने लगे हैं।

बहरहाल, समाजवादी पार्टी के भविष्य के लिए ये दोस्ती अच्छी है। ये पार्षद बरेली महानगर के उन दिग्गजों के लिए एक मिसाल पेश कर रही है जो आज भी पुरानी अदावत और वर्चस्व की जंग में पार्टी को रसातल में ले जाने का काम कर रहे हैं। जिस तरह सारी अदावत भूलकर इन पार्षदों ने सबसे कम उम्र के युवा नेता गौरव सक्सेना के नेतृत्व को स्वीकार किया है उसी तरह पुराने दिग्गजों को भी नए नेतृत्व को स्वीकार करना चाहिए। इसी में उनका सियासी भविष्य भी सुरक्षित रहेगा और पार्टी भी नई ऊंचाइयों को हासिल करेगी।

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