यूपी

‘बरसाती’ नहीं ‘बारहमासी’ नेता हैं राजेश अग्रवाल और सतीश कातिब मम्मा, सूबे में चाहे किसी का भी हो राज पर अपने वार्ड के यही हैं ‘राजा’, एक भाजपाई तो दूसरा सपाई, दोनों हैं विधानसभा के दावेदार, जानिये दो सियासतदानों की अनकही कहानी

Share now

नीरज सिसौदिया, बरेली
यूं तो सियासत के कई रंग होते हैं और जितने रंग सियासत के होते हैं उतने ही रंग के सियासतदान भी होते हैं। बरेली शहर में भी आपको हर रंग के नेता मिल जाएंगे। अगर नेताओं को उनके काम के आधार पर वर्गीकरण करना हो तो मुख्य रूप से चार तरह के नेता नजर आते हैं। सबसे पहले बरसाती नेता जो सिर्फ चुनावी बरसात में ही बाहर निकलते हैं और खूब शोर मचाते हैं। गली-मोहल्लों की दीवारें इनके पोस्टरों से पटी रहती हैं लेकिन चुनाव बाद ये सियासी मेढक वापस अपने-अपने बिलों में दुबक जाते हैं और अगले चुनावों का इंतजार करते हैं। दूसरे किस्म के करामाती नेता होते हैं जो काम कुछ नहीं करते लेकिन अपनी करामात से सत्ता सुख जरूर भोगते रहते हैं। इनके लिए पक्ष और विपक्ष कोई मायने नहीं रखता। ये ‘तुम्हारी भी जय जय और हमारी भी जय जय’ की तर्ज पर काम करते हैं। तीसरी किस्म खुराफाती नेताओं की होती है। ये न खुद काम करते हैं और न ही दूसरों को करने देते हैं। कभी किसी पार्षद के वार्ड में प्रोजेक्ट पास नहीं होने देते तो कभी अधिकारियों पर रौब गांठकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। आखिरी में बात आती है चौथी किस्म के नेताओं की। इन नेताओं के लिए चुनाव कोई मायने नहीं रखते। ये हर दिन चुनावी मोड में ही काम करते हैं। घरवालों से इनकी मुलाकात सिर्फ खाने की टेबल पर ही होती है। और कभी-कभी तो इन्हें एक ही टाइम का खाना नसीब होता है।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पार्षद राजेश अग्रवाल एवं वरिष्ठ भाजपा नेता व बरेली नगर निगम के सबसे पुराने पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा इसी चौथी किस्म के नेता हैं।
इन दोनों ही नेताओं का दिन सुबह लोगों के नाली-नालियों और कचरे के ढेर की सफाई करवाने के साथ शुरू होता है और लगभग इसी तरह खत्म भी होता है। ऐसा कोई हवन, पूजन, शादी, तेरहवीं जैसा काम नहीं है जो इनके वार्ड में हो और इनकी मौजूदगी के बिना हो।
साथ ही जनहित के मुद्दे भी ये दोनों ही नेता सदन में उठाते रहते हैं। राजेश अग्रवाल ने पिछले दिनों हाउस टैक्स को लेकर लगभग चार माह से अधिक की लंबी लडाई लड़ी और उसमें सफलता हासिल की । नतीजतन आज बरेली की जनता को गृहकर में बड़ी राहत मिल चुकी है। खास तौर पर इंस्पेक्टर राज से इन्होंने जनता को निजात दिलाई है। 31 अक्टूबर तक स्वकर फॉर्म भरने की अंतिम तिथि है। इसे लेकर ये लगातार जागरूक कर रहे हैं। सड़कों से लेकर सफाई तक का काम राजेश अग्रवाल और सतीश मम्मा खुद मौके पर खड़े होकर करवाते हैं। इन्होंने वार्ड का एक वॉट्सएप ग्रुप बनाया हुआ है, वार्ड के लोग अब इन्हीं वॉट्सएप ग्रुप पर अपनी समस्या लिखकर डाल देते हैं और ये दोनों पार्षद उनका समाधान करवाने पहुंच जाते हैं। आज घर में पानी आएगा या नहीं, बिजली कितनी देर के लिए जाएगी, पानी की समस्या किस कारण से होगी, सीवर की समस्या कब सुधरेगी, इसका पूरा अपडेट इन दोनों नेताओं के वार्ड के वॉट्सएप ग्रुप पर दिन-रात दिया जाता है।

वार्ड में कचरा साफ करवाते राजेश अग्रवाल।

मम्मा तो जनता के काम कराने में इतने मशगूल रहते हैं कि कभी-कभी अगर लेबर नहीं आती तो हाफ पैंट और हवाई चप्पल पहने मम्मा पार्षद की भूमिका छोड़ लेबर की भूमिका अदा करने लगते हैं।
बहरहाल, ये इन नेताद्वय की सरलता के चंद उदाहरण मात्र हैं। इनकी कार्यशैली और दैनिक कार्यों की फेहरिस्त इतनी लंबी है जिनका उल्लेख यहां कर पाना मुमकिन नहीं है।

वार्ड में काम करवाते सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा

बरेली की सियासत में दशकों की कड़ी मेहनत के बूते अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले ये दोनों ही नेता विधानसभा के प्रबल दावेदार हैं। सतीश कातिब मम्मा बरेली शहर विधानसभा सीट से भाजपा से तो राजेश अग्रवाल बरेली कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट को प्रबल दावेदार हैं। ये दावेदारी 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए है। सतीश मम्मा के लिए विधानसभा के रास्ते इसलिए भी खुल सकते हैं क्योंकि अरुण कुमार के बाद मम्मा बरेली शहर विधानसभा सीट के कायस्थ समाज के सबसे बड़े जमीनी नेता हैं और आज तक नगर निगम का एक भी चुनाव नहीं हारे। अगर पूर्व स्वास्थ्य मंत्री स्वर्गीय दिनेश जौहरी के पुत्र राहुल जौहरी इस बार टिकट की दौड़ में शामिल नहीं होते तो संभव है कि मम्मा बाजी मार ले जाएंगे। इसके अलावा कोई भी कायस्थ नेता मम्मा की बराबरी में नहीं ठहरता।
इसी तरह राजेश अग्रवाल की बरेली कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट की दावेदारी इसलिए मजबूत नजर आती है क्योंकि फिलहाल राजेश अग्रवाल की बराबरी का कोई भी हिन्दू नेता समाजवादी पार्टी में नजर नहीं आता। पिछले चुनाव में सुप्रिया ऐरन जरूर मैदान में उतरी थीं लेकिन अग्रवाल समाज के समर्थन को वोटों में तब्दील नहीं कर पाई थीं। नतीजतन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। अगर राजेश अग्रवाल को शहर की जगह कैंट से टिकट दिया गया होता तो शायद चुनाव नतीजे पलट सकते थे क्योंकि राजेश अग्रवाल वार्ड पार्षद के चुनाव में उस बूथ पर भी जीत गए जिसमें भाजपा विधायक संजीव अग्रवाल का आवास भी आता है।
अग्रवाल समाज के कार्यक्रमों में जितनी तरजीह भाजपा विधायक को दी जाती है लगभग उतना ही सम्मान राजेश अग्रवाल को भी दिया जाता है।
बहरहाल, विधानसभा की तैयारियां तेज हो चुकी हैं और दोनों नेता अपनी मेहनत के दम पर दमदारी से ताल ठोकने में जुट गए हैं।

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *