नीरज सिसौदिया, बरेली
महिला दिवस यानि महिलाओं के सम्मान का सबसे खास दिन। आज हम आपको मिलाने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के बरेली शहर की दो ऐसी महिलाओं से जो सादगी, संस्कृति और समर्पण का संगम हैं। इनमें एक हिन्दू हैं तो दूसरी इस्लाम को मानने वाली। एक पूर्व अधिकारी की बेटी है तो दूसरी ने एक साइंटिस्ट के घर जन्म लिया। दोनों के मजहब अलग हैं मगर काम एक से हैं। दोनों ही पब्लिसिटी से कोसों दूर रहकर सिर्फ समाजसेवा पर विश्वास करती हैं। दोनों ही स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं और अपने सरल स्वभाव के लिए जानी जाती हैं। दोनों ही अपने-अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं। दोनों के पति प्रतिष्ठित राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखते हैं। इतनी सारी खूबियां होने के बावजूद दोनों कभी सुर्खियों में नजर नहीं आतीं। ये शख्सियतें हैं धर्मदत्त सिटी हॉस्पिटल की जानी-मानी महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. मृदुला शर्मा और मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल एंड फहमी आईवीएफ सेंटर की डायरेक्टर डॉक्टर फहमी खान।

सबसे पहले बात डॉ. मृदुला शर्मा की। डॉ. मृदुला शर्मा बरेली के चिकित्सा जगत का जाना पहचाना नाम हैं। एक डॉक्टर होने के साथ ही वह एक अच्छी कथक डांसर और एक बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी भी हैं। हॉकी की नेशनल लेवल की खिलाड़ी रह चुकीं मृदुला शर्मा समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने हॉकी को छोड़कर आला थाम लिया। उन्होंने चार साल तक प्रयागराज से कथक का प्रशिक्षण लिया और कई परफॉर्मेंस भी दीं।

चिकित्सा जगत को अपनी जिंदगी के लगभग 30 बेशकीमती साल देने वाली मृदुला शर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली शहर की रहने वाली हैं लेकिन उनका बचपन राजधानी दिल्ली में गुजरा। उनके पिता केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में तैनात थे। उन्होंने छठी क्लास से ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। वर्ष 1980 में उन्होंने दिल्ली स्टेट की टीम से पहली बार चंडीगढ़ में नेशनल खेला था।

हॉकी उनका पैशन था और डॉक्टर बनना उनका सपना। एशिया के सबसे बड़े महिला मेडिकल कॉलेज लेडी हार्डिंग से वर्ष 1987 में एमबीबीएस पास आउट करने वाली मृदुला ने सफदरगंज मेडिकल कॉलेज से डीएनबी (डिप्लोमा इन नेशनल बोर्ड इन ऑक्जेन गाइनी) भी किया। वर्ष 1988 में मृदुला शर्मा की शादी यूपी सरकार के पूर्व मंत्री धर्मदत्त वैद्य के पोते डॉ. अनुपम शर्मा से हुई। उस वक्त बरेली डेवलप हो रहा था लेकिन इतनी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं। अनुपम शर्मा और मृदुला चाहते थे कि अपने शहर के लिए भी कुछ करें। इसलिए उन्होंने दिल्ली छोड़ने का फैसला लिया और वर्ष 1995 में बरेली आ गए।

तीन साल तक प्रोफेशनल डॉक्टर की भूमिका निभाने के बाद डा. मृदुला शर्मा समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय हुईं। उन्होंने मीरगंज, शाही और शेरगढ़ जैसे इलाकों में स्वास्थ्य जांच एवं जागरूकता कैंप लगाने शुरू किए लेकिन पब्लिसिटी से दूर रहीं। समाजसेवा को लेकर उनका नजरिया और तरीका दोनों एकदम अलग है। वह सोशल वर्क को फैशन के रूप में बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करतीं। डा. मृदुला ने अपनी नौकरानी की बेटी की तकदीर संवारी और उसे पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर भी बनाया लेकिन उस नौकरानी का नाम अब तक किसी को पता नहीं। वह मीरगंज के ब्रह्मादेवी बालिका विद्यालय की मैनेजर भी हैं। स्कूल के जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करने के साथ ही उन्हें उच्च स्तर तक ले जाने की दिशा में भी मृदुला शर्मा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कई गरीब बच्चों को वह मुफ्त शिक्षा भी दिलवा रही हैं। यह सिलसिला वर्षों से यूं ही चला आ रहा है।

डा. मृदुला एक अच्छी डॉक्टर होने के साथ ही कुशल गृहिणी भी हैं। उनके बड़े पुत्र मेजर डॉ. राघव शर्मा आर्मी में डॉक्टर हैं। साथ ही बहू मेजर डा. निकिता भी एएफएमसी पुणे में पोस्टेड हैं। एक 6 साल के पोते विराज की वह दादी हैं। छोटे पुत्र माधव शर्मा और पुत्रवधू ईशा दोनों आर्किटेक्ट हैं।

कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं सैटेलाइट स्थित फहमी आईवीएफ सेंटर की डायरेक्टर और जानी-मानी स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर फहमी खान। फहमी खान के पिता बरेली के ही आवीआरआई में साइंटिस्ट थे। पढ़ाई में बचपन से ही अव्वल आने वाली डॉ. फहमी खान का चयन वर्ष 1992 में एमबीबीएस के लिए हुआ। लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से उन्होंने यूजी, पीजी और स्पेशलाइजेशन किया। फिर एक साल दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में एसआर शिप की।

दुनिया की चकाचौंध से दूर फहमी खान का निकाह वर्ष 1999 में मीरगंज के रहने वाले डॉक्टर अनीस बेग से हुई। अनीस बेग समाजवादी पार्टी के चिकिसा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी हैं। फहमी खान अपने सिद्धांतों और सेवा कार्यों के लिए जानी जाती हैं।

वर्ष 2004 में उन्होंने अपने पति अनीस बेग के साथ मिलकर बरेली में बेग अस्पताल की बुनियाद रखी। यहीं से उनके सेवा और समर्पण का सफर भी शुरू हुआ। अनीस बेग के राजनीतिक परिवार के होने के कारण मीरगंज और आसपास के बेबस गरीब बेग हॉस्पिटल में बड़ी उम्मीदों के साथ पहुंचते थे। चूंकि अनीस बेग बाल रोग विशेषज्ञ थे इसलिए महिलाओं का इलाज फहमी खान ही करती थीं।

इसके बाद उन्होंने शीशगढ़, नवाबगंज, मीरगंज, ठिरिया निजावत खां सहित बरेली जिले के विभिन्न इलाकों में मेडिकल कैंप लगाने शुरू कर दिए। वह समाजसेवा के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगीं लेकिन सस्ती लोकप्रियता से कोसों दूर रहीं। लगभग 20 साल तक बेग अस्पताल को एक नए मुकाम पर पहुंचाने के बाद उन्होंने एक नई शुरुआत की। अब वो बेऔलाद दंपति के सपनों को पूरा कर रही हैं। लेकिन यहां भी वो अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं कर रही हैं। उनका आईवीएफ सेंटर आधुनिक तकनीकों और मशीनरी से लैस अपनी तरह का बरेली का पहला आईवीएफ सेंटर हैं।
