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बहेड़ी और भोजीपुरा में दोहराया जाएगा 2017 का इतिहास, बहेड़ी में नसीम अहमद तो भोजीपुरा में शहजिल का खेल बिगाड़ने वाले सुलेमान बेग के बड़े भाई सुल्तान बेग बने मुसीबत, सपा को बदलना होगा उम्मीदवार

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नीरज सिसौदिया, बरेली

वर्ष 2027 में प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही समाजवादी पार्टी की राह उतनी आसान नहीं है जितनी कि लोकसभा चुनाव के बाद नजर आ रही है। 2022 में बरेली जिले में सपा ने जिन दो सीटों पर जीत हासिल की थी, इस बार वो दोनों सीटें भी उसके हाथ से फिसलती दिखाई दे रही हैं। यानि इस बार बरेली जिले की सभी नौ सीटें भी सपा के हाथ से निकल सकती हैं। हालांकि, हार-जीत का फैसला काफी हद तक पार्टी उम्मीदवारों पर निर्भर करेगा। अगर कुछ विधानसभा सीटों पर चेहरे बदले जाते हैं तो पार्टी जीत भी सकती है लेकिन चेहरे न बदलने पर परिणाम बेहतर होने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती।
सबसे पहले बात भोजीपुरा विधानसभा सीट की। वर्ष 2012 में इस सीट पर शहजिल इस्लाम ने जीत हासिल की थी। वर्ष 2017 में शहजिल इस्लाम समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां से मैदान में उतरे लेकिन भारतीय जनता पार्टी के बहोरन लाल मौर्य ने उन्हें पराजित कर दिया। इस चुनाव में शहजिल इस्लाम की हार का सबसे बड़ा कारण मुस्लिम वोटों का बंटवारा था। इस बंटवारे के सूत्रधार बने सुल्तान बेग के छोटे भाई सुलेमान बेग।

शहजिल इस्लाम

शहजिल इस्लाम अंसारी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं जबकि सुलेमान बेग उच्च जाति से हैं। सुलेमान बेग उस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से मैदान में उतरे थे। ऐसे में उच्च जाति के मुस्लिम वोट सुलेमान के पाले में चले गए जबकि अंसारी वोट शहजिल इस्लाम के हिस्से में आ गए। उस चुनाव में बहोरन लाल मौर्य ने शहजिल इस्लाम को 27764 वोटों से शिकस्त दी थी। बहोरन लाल को 1 लाख 381 वोट मिले थे जबकि शहजिल इस्लाम को 72 हजार 617 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे सुलेमान बेग ने 49 हजार 882 वोट हासिल किए थे। अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं होता तो शहजिल इस्लाम चुनाव जीत जाते जैसा कि 2022 के चुनाव में हुआ। 2022 में बेग परिवार का कोई भी सदस्य भोजीपुरा से चुनाव नहीं लड़ा था जिसके चलते मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हो पाया और बहोरन लाल को हराकर शहजिल इस्लाम विधायक बन गए।

सुल्तान बेग

इस बार की परिस्थितियां 2022 से एकदम विपरीत और 2017 से भी अधिक खराब हैं। इस बार सुलेमान बेग की जगह सुल्तान बेग शहजिल इस्लाम का खेल बिगाड़ने में अभी से जुट गए हैं। सूत्र बताते हैं कि अगर सपा ने सुल्तान को टिकट नहीं दिया ताे वह किसी अन्य पार्टी से भी मैदान में उतर सकते हैं। हालांकि, सुल्तान बेग ने इसकी पुष्टि नहीं की है। लेकिन ऐसा हुआ तो शहजिल इस्लाम की हार तय है। अगर पार्टी भोजीपुरा से किसी गैर मुस्लिम को मैदान में उतारती है तो सपा यह सीट जीत सकती है वरना हार तय है।

अताउर्रहमान

इसी तरह बहेड़ी विधानसभा सीट पर भी पार्टी की स्थिति बेहद खराब नजर आ रही है। यहां पार्टी की सबसे बड़ी मुसीबत नसीम अहमद हैं। 2012 में यहां से अता उर रहमान ने जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में अता उर रहमान समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में नसीम अहमद ने पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा था और बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे। इसका परिणाम यह हुआ कि अता उर रहमान अपनी सीट तो गंवा ही बैठे, दूसरे पायदान पर भी नहीं आ सके।

नसीम अहमद

इस चुनाव में भाजपा के छत्रपाल गंगवार 1,08,846 वोट हासिल कर विधायक बन गए जबकि नसीम अहमद 66,009 वोट हासिल कर दूसरे और अता उर रहमान 63841 वोटों के साथ तीसरे पायदान पर खिसक गए। वर्ष 2022 में नसीम अहमद समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। काफी मेहनत करने के बाद भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो सपा सुप्रीमो ने उन्हें सरकार आने पर मंत्री बनाने का आश्वासन देकर करहल विधानसभा सीट का प्रभारी बना दिया। करहल से खुद अखिलेश यादव मैदान में उतरे थे। नसीम अहमद ने खूब मेहनत की और अखिलेश यादव करहल से चुनाव जीत गए। इधर, बहेड़ी में मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हुआ और अता उर रहमान भी विधायक बन गए। उसके बाद बहेड़ी नगरपालिका चेयरमैन के चुनाव आए। नसीम अहमद ने सपा से चेयरमैन का टिकट मांगा। अखिलेश यादव ने उनका टिकट फाइनल भी कर दिया लेकिन ऐन वक्त पर उनका टिकट काटकर अंजुम राशिद को दे दिया गया और नसीम अहमद खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे। इसके बाद नसीम अहमद ने सपा को अलविदा कह दिया और बसपा का दामन थाम लिया। अब नसीम अहमद 2027 के विधानसभा चुनाव में फिर से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। सुल्तान बेग की तरह उनका भी एकमात्र उद्देश्य मौजूदा विधायक को हराना है चाहे वह खुद जीत पाएं अथवा नहीं। अगर नसीम अहमद मैदान में उतरते हैं तो निश्चित तौर पर अता उर रहमान को शिकस्त झेलनी पड़ेगी। अगर पार्टी बहेड़ी विधानसभा सीट से किसी गैर मुस्लिम उम्मीदवार को उतारती है तो जरूर सपा को जीत मिल सकती है।
बहरहाल, भोजीपुरा और बहेड़ी विधानसभा की मौजूदा स्थिति 2017 का इतिहास दोहराने के स्पष्ट संकेत दे रही है। पार्टी को इन दोनों ही सीटों पर निश्चित तौर पर उम्मीदवार बदलना होगा वरना उसे हार का सामना करना पड़ेगा।

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