नीरज सिसौदिया, बरेली
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अहम शहर बरेली इन दिनों तनावपूर्ण माहौल से गुजर रहा है। हाल के दिनों में हुई हिंसा ने इस शहर की पहचान और फिजाओं को गहरा आघात पहुँचाया है। एक ओर जहाँ कुछ ताकतें नाथ नगरी की हवा में जहर घोलने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने कर्मों और विचारों से अमन, एकता और भाईचारे का परचम बुलंद कर रहे हैं। इन्हीं में एक नाम सबसे अधिक चर्चाओं में है — राजेश अग्रवाल, जो समाजवादी पार्टी के बरेली शहर विधानसभा सीट से पूर्व प्रत्याशी और वर्तमान में रामपुर गार्डन वार्ड से पार्षद हैं।
2 अक्टूबर को विजयादशमी के पावन अवसर पर राजेश अग्रवाल ने अपने आवास विकास स्थित निवास पर एक विशाल साईं भंडारे का आयोजन किया। इस आयोजन की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इसमें राजनीति की सीमाएं टूट गईं। भंडारे में हर धर्म, हर विचारधारा, हर वर्ग और हर पार्टी के लोग एक साथ बैठे, भोजन किया, और एक ही स्वर में शांति और सद्भावना का संदेश दिया।
इस अवसर पर न केवल समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता उपस्थित रहे, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं ने भी अपनी मौजूदगी से इस आयोजन को खास बना दिया। बरेली की मेयर डॉ. उमेश गौतम और प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री डॉ. अरुण कुमार स्वयं भंडारे में पहुंचे। यह दृश्य अपने आप में एक उदाहरण था कि जब नीयत साफ हो और उद्देश्य समाज को जोड़ना हो, तो राजनीतिक सीमाएँ अप्रासंगिक हो जाती हैं।
साईं भंडारे में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सभी धर्मों के लोग पहुंचे। आयोजन का माहौल पूरी तरह पारिवारिक और सामाजिक सौहार्द से भरा हुआ था। कहीं कोई राजनीतिक भाषण नहीं हुआ, न ही किसी दल का झंडा लहराया गया। केवल एक संदेश था — “बरेली अमन चाहता है।”
राजेश अग्रवाल के इस कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के प्रदेश महासचिव एवं पूर्व मंत्री अता उर रहमान, महानगर अध्यक्ष समीम खान सुल्तानी, जिला अध्यक्ष शिवचरण कश्यप, पार्षद शमीम अहमद, और महानगर महासचिव पंडित दीपक शर्मा समेत कई अन्य प्रमुख नेता मौजूद रहे। इसके अलावा पुलिस विभाग के अधिकारी, प्रशासनिक कर्मचारी, और कई स्थानीय अधिकारी भी इस आयोजन में शामिल हुए।
बरेली हाल ही में हुई हिंसक घटनाओं के कारण पूरे देश के अखबारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्खियों में रहा है। इन घटनाओं ने शहर की छवि को नुकसान पहुँचाया और यहां के आम नागरिकों में भय और असहजता का माहौल पैदा कर दिया। लेकिन ऐसे समय में जब सियासी और धार्मिक तनाव अपनी चरम पर हों, राजेश अग्रवाल जैसे नेता का यह आयोजन लोगों को यह याद दिलाता है कि बरेली की असली पहचान नफरत नहीं, बल्कि इंसानियत और भाईचारा है।
राजेश अग्रवाल ने न केवल आयोजन किया, बल्कि उसमें व्यक्तिगत रूप से हर व्यक्ति से मिलकर उन्हें प्रसाद ग्रहण कराया। उन्होंने कहा कि “हमारा शहर हमेशा से गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल रहा है, और इसे कोई तोड़ नहीं सकता।”
भंडारे में जिस तरह भाजपा, सपा, कांग्रेस और आम जनता एक साथ दिखाई दी, वह दृश्य बरेली की सियासत में बहुत दुर्लभ माना जा रहा है। डॉ. अरुण कुमार और मेयर उमेश गौतम का इस आयोजन में पहुंचना अपने आप में एक बड़ा संदेश था — कि राजनीति से ऊपर समाज का हित है।
दोनों नेताओं ने भी राजेश अग्रवाल के इस प्रयास की सराहना की और कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से समाज में तनाव घटता है और आपसी विश्वास बढ़ता है। वहीं सपा के नेताओं ने इसे “अमन और इंसानियत का सबसे बड़ा त्योहार” बताया।
राजेश अग्रवाल समाजवादी पार्टी के पुराने और जमीनी नेता हैं। वह बरेली शहर की सियासत में पिछले तीन दशकों से सक्रिय हैं और हमेशा विकास, सेवा और सौहार्द की राजनीति के लिए पहचाने जाते रहे हैं। चाहे मोहल्ले का कोई छोटा सा मुद्दा हो या शहर की कोई बड़ी समस्या — राजेश अग्रवाल हर वर्ग के लोगों के साथ खड़े दिखाई देते हैं।
उनका राजनीतिक सफर हमेशा से जनसेवा पर आधारित रहा है। उन्होंने कभी धर्म या जाति देखकर किसी की मदद नहीं की। यही वजह है कि आज उनके समर्थकों में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — हर धर्म और हर वर्ग के लोग शामिल हैं।
दशहरे के दिन साईं भंडारे के आयोजन से पहले भी राजेश अग्रवाल ने कई धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। हाल ही में वह सुभाष नगर रामलीला मंच पर नजर आए थे, जहाँ उन्होंने रावण दहन के मंच से भी भाईचारे और सद्भाव का संदेश दिया। उन्होंने कहा था, “त्योहार हमें जोड़ने के लिए होते हैं, तोड़ने के लिए नहीं।”
उनका यह संदेश बरेली के लोगों के दिलों में उतर गया। इसी क्रम में दशहरे के दिन आयोजित साईं भंडारे ने जैसे इस सोच को और भी गहराई से स्थापित कर दिया।
राजेश अग्रवाल इस बार बरेली कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के प्रबल दावेदारों में से एक माने जा रहे हैं। पार्टी में उनकी स्वीकार्यता और जनता में उनकी पकड़ दोनों ही बेहद मजबूत हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस प्रकार वह लगातार अमन और इंसानियत का संदेश दे रहे हैं, वह न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि को मजबूत कर रहा है, बल्कि समाजवादी पार्टी की साख को भी बढ़ा रहा है।
भविष्य में अगर उन्हें बड़ा मौका मिलता है, तो उनकी प्राथमिकता शहर में विकास के साथ-साथ सांप्रदायिक सौहार्द को कायम रखना होगी।
भंडारे में शामिल लोगों ने राजेश अग्रवाल की पहल की खुलकर सराहना की। वरिष्ठ सपा नेता और पार्षद शमीम अहमद ने कहा —
“आज के समय में जब लोग धर्म के नाम पर बाँटने में लगे हैं, राजेश जी ने सबको जोड़ने का काम किया है। यही असली सेवा है। हमने आज देखा कि भाजपा और सपा के नेता एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन कर रहे थे — इससे बड़ा संदेश और क्या होगा।”
यह आयोजन केवल एक भंडारा नहीं था, बल्कि यह बरेली की नई दिशा का प्रतीक था। ऐसा प्रतीक जहाँ नफरत के स्थान पर प्रेम है, भेदभाव के स्थान पर समानता है, और राजनीति के स्थान पर मानवता है।
इस आयोजन ने दिखाया कि यदि इच्छाशक्ति सच्ची हो, तो किसी भी शहर में फिर से भाईचारे की हवा बहाई जा सकती है।
राजेश अग्रवाल का दशहरे के अवसर पर आयोजित यह विशाल साईं भंडारा इस बात का प्रतीक बन गया है कि सियासत अगर सही दिशा में हो, तो समाज को जोड़ सकती है।
आज जब देश के कई हिस्सों में धार्मिक तनाव और मतभेद की खबरें सुर्खियों में रहती हैं, तब बरेली से उठी यह मिसाल उम्मीद की एक नई किरण बनकर सामने आई है।
अग्रवाल का यह संदेश साफ है —
“हम सब एक हैं, और जब तक बरेली के दिलों में इंसानियत जिंदा है, तब तक कोई भी ताकत हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को मिटा नहीं सकती।”
इस आयोजन ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि बरेली की असली पहचान उसके मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों से नहीं, बल्कि उन दिलों से है जो हर धर्म के लिए खुले हैं।
इस तरह 2 अक्टूबर 2025 का दिन न केवल विजयादशमी के रूप में, बल्कि बरेली में भाईचारे की नई शुरुआत के दिन के रूप में याद किया जाएगा — और इस परिवर्तन के केंद्र में होंगे राजेश अग्रवाल, जिन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर इंसानियत को चुना।