नीरज सिसौदिया, बरेली “कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए न हो कमीज तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए” कवि दुष्यंत की ये पंक्तियां उस मंजर को बयां करने के लिए काफी है जो बरेली शहर […]
नीरज सिसौदिया, बरेली “कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए न हो कमीज तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए” कवि दुष्यंत की ये पंक्तियां उस मंजर को बयां करने के लिए काफी है जो बरेली शहर […]