नीरज सिसौदिया, जालंधर सत्ता के खेल भी बड़े निराले होते हैं. जब कुर्सी हो तो हर कोई सलाम करता है और जब कुर्सी छिन जाए तो सारी नैतिकता धरी की धरी रह जाती है. बात जब सत्ता के नशे में धुत सियासतदान की हो तो नैतिकता की बात ही बेमानी हो जाती है. इसका जीता […]