विचार

कुएं से गहरे अंधेरों में खुद को पाती हूं मैं…

आशा की एक भी किरन जहाँ, न देख पाती हूँ मैं जानती हूँ लोगों की माफी भी निकाल न सकेगी मुझे , एक एक सीढी बनी है मेरे अपराध बोध से। अंधेरों से घिरी देखती हूँ अपने अंत को करीब से, सोचती हूँ नहीं जीत सकती मैं अपने नसीब से। पर नहीं गलत हूँ मैं, […]