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दिल्ली में सीलिंग पर हंगामा क्यों बरपा?

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नई दिल्ली। दिल्ली में शुरू हुई सीलिंग पर चौतरफा हंगामा बरपा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी के आगे सारा जुगाड़ तंत्र फेल हो गया है। छोटे हों या बड़े, व्यापारी सड़कों पर हैं। रैली जुलुस नारेबाजी और बाजार बंद, सीलिंग से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। वहीं कुछ नेताओं ने अपनी राजनीतिक रोटियां भी सेंकनी शुरू कर दी हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी का कदम गलत है? क्या यह कमेटी वाकई व्यापारियों और दुकानदारों के साथ अन्याय कर रही है?  क्या केंद्र सरकार को वाकई व्यापारियों को सीलिंग से बचाने के लिए नया अध्यादेश लाना चाहिए? और इन सबसे बड़ा सवाल जो आज हर जेहन में गूंज रहा है वह यह है आखिर सीलिंग की नौबत आई क्यों? जब सबकुछ कानून के मुताबिक चल रहा है तो फिर हंगामा क्यों बरपा है?
 दरअसल, इस पूरे हंगामे के जिम्मेदार नगर निगम के अधिकारी, राजनेता और खुद वह लोग हैं जो नियमों को ताक पर रखकर कारोबार चला रहे हैं। एक के बाद एक अवैध बिल्डिंग बनती रहीं,  सरकारी खजाने को भरने की बजाय अक्सर अपनी जेब में भरते रहें और राजनेता अपनी सियासत चलाते रहे। चंद रुपए बचाने के चक्कर में व्यापारी भी सियासतदानों और नगर निगम के अधिकारियों को खुश करने में लगे रहे। गली कूचों में कमर्शियल इमारतें खड़ी कर दी गई, करोड़ों का कारोबार इन इमारतों में अवैध रूप से होता रहा।
कहीं अवैध फैक्ट्रियां खुल गईं तो कहीं बड़े बड़े मॉल भी नियमों को ताक पर रखकर बना दिए गए। सब ने अपनी अपनी जेब भरी मगर सरकारी खजाने में फूटी कौड़ी तक नहीं आई। अब जब न्याय के मंदिर  कानून की राह पकड़ी तो हंगामा खड़ा हो गया।
 सोचने तथ्य यह है कि जिस तेजी से सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी अपने काम को कानून के दायरे में रहते हुए अंजाम दे रही है उसी तरह से अगर नगर निगम के अधिकारियों ने अपना फर्ज निभाया होता तो यह नौबत ही नहीं आती। कुछ अधिकारियों ने कोशिशें जरूर की मगर सियासतदानों के आगे उनकी एक न चली।  छोटा सा उदाहरण पुल पहलाद पुर और नांगिया फार्म का है। यहां तो कथित तौर पर खुद एक सांसद ने  अवैध कॉलोनियों काटकर अवैध बिल्डिंग खड़ी करवा दीं। माननीय दिल्ली हाईकोर्ट ने इन इमारतों को गिराने के आदेश तक दे दिए हैं लेकिन सांसद जी का खौफ  कहीं या अधिकारियों की लापरवाही कि अब तक इन आदेशों पर अमल नहीं किया जा सका है।
 सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी की ओर से सीलिंग की जो कार्रवाई की जा रही है वह निश्चित तौर पर सराहनीय है। हालांकि इसके दूसरे पहलू से भी इनकार नहीं किया जा सकता। कुछ व्यापारी ऐसे भी हैं जिन्होंने नियमानुसार काम शुरू करना चाहा लेकिन अधिकारियों ने नियमों के ऐसे पेंच फंसा दिए कि कानून से काम करना उनके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा हो गया। नतीजतन उन्हें अफसरों की चीजें गर्म कर अपना कारोबार करने पर मजबूर होना पड़ा।
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नियमों को और सरल बनाना होगा
 दिन-ब-दिन दिल्ली की बढ़ती आबादी और बाहरी लोगों के आगमन को देखते हुए निश्चित तौर पर यहां कारोबारी नियमों को और आसान बनाने की आवश्यकता है। दिल्ली में जनसंख्या घनत्व दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है लेकिन दिल्ली का दायरा नहीं। पिछले दिनों राजधानी में हुई सीलिंग के चलते न  केवल कारोबार पर असर पड़ा है बल्कि दूर दराज से बाहरी प्रदेशों से दिल्ली में है रोजी की जुगत में आए हजारों बेकसूर लोग बेरोजगार हो गए हैं।  यह वह लोग हैं जो व्यापारियों के प्रतिष्ठानों पर जी तोड़ मेहनत कर 2जून की रोटी कमाते हैं।
सीलिंग का सिलसिला नहीं थमा तो वह दिन दूर नहीं जब इनके घरों के चूल्हे ठंडे पड़ जाएंगे। दो जून की रोटी इनके लिए सपना बन जाएगी और इनके मासूम बच्चे स्कूल छोड़कर मजदूरी करने को विवश हो जाएंगे। फिलहाल गेम केंद्र सरकार के पाले में है। अब इन हजारों में बेकसूर लोगों का भविष्य भी केंद्र सरकार को ही तय करना है। सरकार चाहे तो उसके खजाने में करोड़ों रुपए आ सकते हैं। लेकिन यह भी तय करना जरूरी है कि यह करोड़ों रुपए किसी बेकसूर जिंदगी की कीमत चुकाकर ना आएं। यह तय करना होगा फिर बवाना जैसा कोई हादसा किसी के घर के चलते चिरागों को ना बुझा दे। बहरहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार विपरीत परिस्थिति से निपटने के लिए कौन सा रास्ता इख्तियार करती है।
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