विचार

कृषि और राष्ट्रीय ग्रामीण योजनाओं का सच

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अमन कुमार
महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांव में बसता है और गांव इसकी आत्मा है। निश्चित तौर पर भारत में सिर्फ गांव में बसता है बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की दूरी भी गांव ही हैं। यही वजह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। आजादी के बाद सामुदायिक विकास को वरीयता देते हुए सबसे पहले वर्ष 1952 में सामुदायिक विकास योजनाओं के कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया था। इसकी शुरुआत तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ राजेंद्र प्रसाद ने की थी। सामुदायिक विकास कार्यक्रम का ढांचा कुछ इस प्रकार तैयार किया गया था कि इसमें ग्रामीणों की भागीदारी हो और यह उनका अपना कार्यक्रम बन सके। इसका मूल उद्देश्य यह था कि सरकार ग्रामीणों को वित्तीय तकनीकी सहायता प्रदान करें और वह मिलकर विकास में अपना योगदान दे सकें। सामुदायिक विकास की दृष्टि से देश को सामुदायिक विकास खंडों में बांट कर विकास के कार्य शुरू किए गए। सामुदायिक विकास कार्यक्रमों की निगरानी जहां केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा की जाती है वही इन्हें राज्य सरकारों द्वारा संचालित किया जाता है। सरकार की ओर से ग्रामीण विकास के लिए योजनाएं तो बहुत बनती है लेकिन उस पर पूरी तरीके से अमल नहीं हो पाता। यही वजह है कि आजादी के 70 साल गुजरने के बावजूद देश के कई गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं। जरूरत है इन गांव में लघु एवं ग्रामीण कुटीर उद्योग को बढ़ाने की ताकि रोजगार के नए अवसर पैदा हो सके। सरकार की ओर से कवि राष्ट्रीय ग्रामीण योजनाओं के तहत राष्ट्रीय प्रसार सेवा शुरू की गई थी और इसके लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन प्रचार निदेशालय की स्थापना की गई थी। लेकिन यह निदेशालय भी अपने उद्देश्यों को पूरा करने में पूरी तरह से कामयाब नहीं कहा जा सकता। भारत में पंचायतों के प्राचीन स्वरूप को ध्यान में रखकर त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का सूत्रपात किया गया। 24 अप्रैल 1993 को 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 प्रभावी हुआ। इसके अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दायरे में लाया गया था। लेकिन गांव की तकदीर बदलने के लिए यह कदम भी पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो सका। अवैध कॉलोनियों ने कृषि के रकबे को निगल लिया। शहरों में जमीने खत्म होती गई और गांव की खेती वाली भूमि को कॉलोनाइजरों ने कंक्रीट के जंगलों में तब्दील कर दिया। ग्रामीण विकास की दृष्टि से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा सकता है। इस योजना का शुभारंभ वर्ष 2000 में किया गया था। इसे भारत निर्माण योजना का नाम भी दिया गया इस योजना के तहत गांव को मुख्य बारहमासी सड़कों से जोड़ने का काम शुरू हुआ जो पक्के मार्गो से वंचित थे। लेकिन आज भी पहाड़ी इलाकों की बात करें तो कई गांव ऐसे हैं जो सड़क से कोसों दूर हैं। ऐसा ही एक गांव है पिथौरागढ़ जिले में स्थित नामिक। नामिक में रहने वालों को वोट डालने के लिए भी 14 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। क्योंकि इलाके में सड़क नहीं बन सकी है इसलिए उन्हें पैदल ही जाना पड़ता है। नामिक तो एकमात्र उदाहरण है इसके अलावा जाने कितने हिंदुस्तान के ऐसे गांव हैं जो आज भी सड़कों से महरूम हैं। नामित तो महज एक उदाहरण है हिंदुस्तान की तकदीर बदलने के लिए सबसे पहले गांव की तस्वीर बदलनी होगी। डिजिटल गांव का सपना दिखाने से पहले गांव को मूलभूत सुविधाएं पहुंचानी होगी। तभी जाकर हमारा देश सफलता की राहों पर आगे बढ़ सकेगा।

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