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राजा से नाराज हैं पुराने सिपाही

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नीरज सिसौदिया
जालंधर के मेयर जगदीश राज राजा से पुराने सिपाही इन दिनों नाराज चल रहे हैं। कारण सिर्फ इतना है कि उन्हें राजा से उम्मीद के मुताबिक वह तवज्जो अब नहीं मिल रही जो पहले मिला करती थी। उनकी शिकायत है कि राजा सिर्फ विधायकों के हाथों की कठपुतली बनकर रह गए हैं। पुराने साथियों को राजा ने दरकिनार कर दिया है जिसके चलते वह भी खेमा बदलने को मजबूर हो गए हैं।
राजा के एक करीबी पुराने साथी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सत्ता हाथ में आते ही राजा का नजरिया भी बदल गया है। राजा अपने गर्दिश के दिनों के साथियों को भूल गए हैं। छोटे-मोटे काम के लिए भी उन्हें गिड़गिड़ाना पड़ता है जिससे जनता के बीच उनकी छवि धूमिल हो रही है।
राजा के एक पुराने साथी कहते हैं कि राजा बेहद ही मतलब परस्त सियासतदान हैं। जिन साथियों ने बुरे वक्त में राजा का साथ दिया आज राजा उनसे अजनबियों की तरह मिलते हैं। जब तक विधायक का फोन ना जाए तब तक राजा उनके जायज काम भी नहीं करते। वह कहते हैं कि राजा अक्सर कहा करते हैं कि उनका सपना बस एक बार मेयर बनने का था अब अब आगे उन्हें कोई पॉलिटिक्स ही नहीं करनी। वह जो भी करेंगे अपनी मर्जी से करेंगे।
राजा के एक पुराने साथी ने आरोप लगाया कि राजा प्रॉपर्टी के बहुत बड़े कारोबारी हैं। राजा बहुत बड़े फाइनेंसर हैं और यह कारोबार उनका बेटा संभालता है। इनका कहना है कि कई अवैध कॉलोनियों में भी राजा का पैसा लगा हुआ है। हैरानी की बात तो यह है कि जिन अवैध कॉलोनियों में राजा का पैसा लगाए जाने की बात की जा रही है वह अवैध कॉलोनियां अकाली-भाजपा गठबंधन के नेताओं की बताई जाती हैं। यही वजह है कि इन अवैध कॉलोनियों के खिलाफ राजा कोई भी कार्रवाई करने को तैयार नहीं।
राजा के रवैया से दुखी उनके कुछ पुराने साथी अब खेमा बदल चुके हैं वहीं कुछ विधायकों की शरण में पहुंच गए हैं। इतना ही नहीं कभी राजा कि वैशाखी बनने वाले यह साथी अब राजा की टांग खींचने की तैयारी कर रहे हैं। वह कहते हैं कि जब हर छोटे बड़े काम के लिए हमें विधायकों से ही फोन करवाना पड़ेगा तो तो फिर राजा की जरूरत ही क्या है।
वैसे तो सियासत में रूठने मनाने का खेल चलता रहता है लेकिन राजा की और उस उनके पुराने साथियों के बीच चल रहा यह खेल संगठन के लिए नुकसानदायक हो सकता है। क्योंकि राजा के कुछ पुराने ही नहीं बल्कि नए साथी भी ऐसे हैं जो न सिर्फ राजा के बल्कि विधायकों के रवैये से भी दुखी हैं। वह कहते हैं कि अभी विधायकों के साथ चलना उनकी मजबूरी है लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में वह सिर्फ दिखावे के लिए ही विधायक के साथ खड़े नजर आएंगे। पार्टी के लिए अब उस जोर से काम नहीं कर पाएंगे जिस तरह से उन्होंने कांग्रेस के सत्ता में आने से पहले किया था। बहर हाल पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी और राजा के राज से कांग्रेसियों की नाराजगी किस हद तक पार्टी और संगठन को प्रभावित करेगी इसका पता 2019 के लोकसभा चुनाव में आप ही चल जाएगा।

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