कुरुक्षेत्र, ओहरी
मातृभूमि सेवा मिशन के संयोजक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि भारत भूमि पर केवल वीर पुरुषों ने ही जन्म नहीं लिया बल्कि वीर नारियों ने भी जन्म लिया है। ऐसी ही नारियों में अग्रणी थी महारानी लक्ष्मीबाई। एक सच्चे वीर को प्रलोभन कभी भी उसके कर्तव्य पालन से विमुख नहीं कर सकते। एक सच्चे वीर का चरित्र अनुकरणीय होता है, उसका लक्ष्य उदार और उच्च होता है। अपने पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह हमेशा आत्मविश्वासी, कर्तव्य परायण, स्वाभिमानी और धर्मनिष्ठ होता है। वे वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतीथि के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि 27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत कर दी और झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। पोलेटिकल एजेंट की सूचना पाते ही रानी के मुख से यह वाक्य प्रस्फुटित हो गया, मैं अपनी झांसी नहीं दूगी। 7 मार्च 1854 को झाँसी पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ। झाँसी की रानी ने पेंशन अस्वीकृत कर दी व नगर के राजमहल में निवास करने लगी। यहीं से भारत की प्रथम स्वाधीनता क्रांति का बीज प्रस्फुटित हुआ। अंग्रेजों की राज्य लिप्सा की नीति से उत्तरी भारत के नवाब और राजे-महाराजे असंतुष्ट हो गए और सभी में विद्रोह की आग भभक उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने इसको स्वर्णावसर माना और क्रांति की ज्वालाओं को अधिक सुलगाया तथा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की योजना बनाई। वीरांगना लक्ष्मीबाई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका थी। हमारे भारत के लिए यह बहुत ही गर्व ही बात है कि रानी लक्ष्मी बाई का जन्म हमारे भारत में हुआ था। भारतीय वसुंधरा को गौरवान्वित करने वाली झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थों में ही आदर्श वीरांगना थीं। वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई पुरे विश्व के में अद्मय साहस की परिचायक हैं। ऐसी वीरांगना से आज भी राष्ट्र गर्वित एवं पुलकित है। उनकी देशभक्ति की ज्वाला को काल भी बुझा नहीं सकता। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी रानी लक्ष्मीबाई की भी प्रशंसा की थी। रानी लक्ष्मीबाई ने स्वातंत्र्य युद्ध में अपने जीवन की अंतिम आहूति देकर जनता जनार्दन को चेतना प्रदान की और स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया।