विचार

केजरीवाल@3.0 : न सियासी दुश्मनों की बात, न अन्ना टोपी दिखी साथ

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आनंद सिंह
2013, 2015 और 2020…इन तीनों वर्षों में अरविंद केजरीवाल को शपथ लेते मैंने देखा।
2013 के शपथ ग्रहण समारोह में जबरदस्त भीड़ थी।
2015 के शपथ ग्रहण समारोह में जबरदस्त भीड़ थी।
2020 के शपथ ग्रहण समारोह में भी जबरदस्त भीड़ थी।
मजेदार बात सुनिए-इन तीनों शपथ ग्रहण समारोहों में से मैं किसी में भी शामिल नहीं था।
हर समारोह मोबाइल फोन पर लाइव देखता रहा, हां, 2013 का समारोह टीवी पर लाइव देखने का लोभ संवरण न कर सका।
2013 और 2015 में शपथ ग्रहण करने के बाद केजरीवाल गा रहे थे…इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा…
2020 में शपथ ग्रण के बाद उन्होंने गाया-हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन…
2013 और 2015 में शपथ ग्रहण समारोह में उनके सिर पर आम आदमी पार्टी की टोपी थी।
2020 के शपथ ग्रहण समारोह में उनके सिर पर कोई टोपी नहीं थी।
उनके किसी मंत्री के सिर पर टोपी नहीं थी।
टोपी का न होना क्या इंगित करता है, यह आप पर छोड़ा।


2020 में शपथ ग्रहण समारोह में (जो आज ही चंद घंटे पूर्व संपन्न हुआ है) उन्होंने जो भाषण दिया, वह मुझे अच्छा लगा। यह उनकी रणनीति के तहत दिया गया भाषण है या फिर मन से, केजरीवाल ही बता सकते हैं लेकिन उनके भाषण का जो लब्बोलुआब निकला वह था…
1-वह दिल्ली के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं और उनसे जब भी, जो भी चाहे, मिल सकता है
2-वह दलगत भावना से ऊपर उठ कर मोदी जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के सभी वरिष्ठों से आशीर्वाद की कामना करते हैं.
3. उन्होंने दिल्ली के बेहतरीन 50 आम लोगों को दिल्ली का निर्माता बताकर यह साबित किया कि मेट्रो की पायलट, आइआइटी करने वाले छात्र, मोहल्ला क्लीनिक चलाने वाले चिकित्सक, आटो चलाने वाले लोग व कामकाजी-मेहनतकश तबका ही उनके टारगेट वोटर हैं और वो उनका हर हाल में ख्याल रखेंगे
4. उनके भाषण में पूरी दिल्ली दिखी, कोई सियासी रंजिश का भाव नहीं दिखा.
5. वह केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने को इच्छुक हैं.
6. चुनावी सभाओं में उनके ऊपर व्यंग्य वाणों की बारिश करने वाले, आलोचना करने वालों को उन्होंने मंच से ही माफ कर दिया और विपक्ष से अपने लिए भी ऐसा ही करने का आग्रह किया.
7. उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ दिल्ली है। वह टकराव की राजनीति शायद अब छोड़ चुके हैं।
अगर ऐसा वास्तव में हो जाता है तो दिल्ली तो आगे बढ़ ही जाएगी, केजरीवाल का भी नया अवतार होगा-केजरीवाल@3.0.
केजरीवाल में आए इन परिवर्तनों को भी सकारात्मक रूप में देखने की जरूरत है क्योंकि 2013, 2015 और 2019 के आखिरी तक जो टकराव की भाषा बोली जाती रही है, उसने भाजपा और आप, दोनों का नुकसान किया। फिर, 2015 में बेशक आप ने एकतरफा मैदान मार लिया हो लेकिन 2020 के चुनाव में ऐसा हरगिज नहीं है। भाजपा के 8 विधायक हैं जो विधानसभा में सरकार पर अंकुश रखने का काम करेंगे। बेशक 2015 में भाजपा के मात्र 3 सदस्य ही थे पर अब 8 हैं और 62 के मुकाबले ये 8 आपको भले ही सिंगल डिजिट में दिखें लेकिन इनका इम्पैक्ट डबल डिजिट में हो सकता है।
यह बेहद जरूरी है कि जो मैंडेट केजरीवाल को मिला है, उसे पक्ष और विपक्ष दोनों समझे और आत्मसात करे। सभी नगर निगमों में भाजपा का आधिपत्य है। भाजपा वहां काम करे और आप सरकारी योजनाओं को ठीक से लागू करे तो कोई अचरज नहीं कि दिल्ली दुनिया की सबसे शानदार महानगरी बन सकती है।

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