आओ इक़ नई दुनिया बसाते हैं।
मिल कर प्रेम का दरिया बहाते हैं।।
महोब्बत ही कारोबार हो दुनिया में।
ऐसी धुन हर दिल में बजाते हैं।।
जहाँ हो बस अमनों चैन का बसेरा।
मिलके हमसब ऐसा जहाँ बनांते हैं।।
तेरा मेरा इसका उसका हो चुका।
अब बस प्यार के ही नगमें सुनाते हैं।।
ऊपरवाले ने जमीं दी गुलशन के लिए।
मिल कर उसका यह कर्ज़ चुकाते हैं।।
लहू बहा कर बहुत देख लिया हमनें।
अब मिला जो किरदार वो निभाते हैं।।
*हंस* बने वोही जन्नत इसी जमीन पर।
महोब्बत का बीज हरदिल में उगाते हैं।।
रचयिता – एस के कपूर “श्री हंस”, बरेली