नीरज सिसौदिया, जालंधर
पंजाब में विधानसभा चुनाव भले ही 2022 में होने हैं लेकिन उसकी तैयारियां अभी से शुरू हो चुकी हैं. जालंधर में चार सीटों पर चुनाव होने हैं जिनमें जालंधर वेस्ट, नॉर्थ, सेंट्रल और कैंट सीटें शामिल हैं. ये चारों सीटें नगर निगम के दायरे में आती हैं. यही वजह है कि इन सीटों पर हार जीत का फैसला भी नगर निगम पर काबिज राजनीतिक दल की कामयाबियों और उपलब्धियों के आधार पर होता है. पिछले चुनावों में जब अकाली-भाजपा गठबंधन को ये सीटें गंवानी पड़ी थीं तो हार का ठीकरा तत्कालीन मेयर सुनील ज्योति पर फोड़ा गया था. ये बात अलग है कि नगर निगम के तहत आने वाले क्षेत्रों में काफी काम कराने के बावजूद ज्योति अपनों के ही निशाने पर आ गए थे. इसकी एक वजह शायद यह भी रही कि ज्योति अपनी पार्टी के नेताओं के हाथों की कठपुतली नहीं बन सके थे. यही वजह रही कि उन्हें सदन में चूड़िया तक भेंट कर दी गईं, वो भी खुद डिप्टी मेयर अरविंदर कौर ओबरॉय ने. बहरहाल, कर्ज में डूबी नगर निगम की विरासत को ज्योति ने एक सम्मानजनक स्थिति में जरूर लाकर खड़ा कर दिया था. इसके बाद नगर निगम में सत्ता परिवर्तन हुआ और जगदीश राज राजा मेयर के पद पर काबिज रहे. विधायकों की मेहरबानी से मेयर पर काबिज हुए राजा का वर्षों पुराना सपना पूरा हो चुका था. राजा अब पूरी तरह संतुष्ट थे और पद संभालते ही वह पार्टी नेताओं को खासतौर पर विधायकों को संतुष्ट करने में लग गए. राजा को डर था कि कहीं ज्योति की तरह वह भी अपनों के निशाने पर न आ जाएं. लेकिन राजा की संतुष्टि की सियासत ने उन्हें कठपुतली बनाकर रख दिया. अभी दो साल भी नहीं बीते थे और राजा के विरोध में अपने ही उतर आए. विधायक परगट सिंह ने तो उन्हें अब तक का सबसे नाकाम मेयर घोषित कर दिया.
राजा की पकड़ अफसरों पर भी बहुत मजबूत नहीं हो सकी क्योंकि राजा की राह पर अफसर भी चल पड़े. राजा की बात मानने की जगह अफसर विधायकों के दरबार में हाजिरी लगाने लगे. निगम के ठेके राजिंदर बेरी और अन्य विधायक के करीबियों के खाते में जाने लगे. ऐसे में राजा से उम्मीदें लगाए बैठे पार्टी नेताओं की उम्मीदें भी दम तोड़ने लगीं. विकास के नाम पर ठेके तो दिए गए लेकिन विकास कहीं नजर नहीं आया. अब जबकि राजा के बतौर मेयर लगभग ढाई साल से भी अधिक का समय होने को है, राजा अपने खाते में एक भी उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज नहीं करा सके. न ही विकास हुआ और न ही राजा पार्टी के पार्षदों को संतुष्ट कर सके. ऐसे में पार्टी के पार्षदों का दर्द फूटने लगा और एक-एक कर वह सार्वजनिक तौर पर राजा के गले की फांस बनते जा रहे हैं. इसी कड़ी में हाल ही में मीडिया को दिए गए बयान में वरिष्ठ पार्टी नेता और पार्षद देशराज जस्सल का दर्द भी छलक पड़ा. ये वही जस्सल हैं जो सुनील ज्योति के कार्यकाल के दौरान सदन में टेबल पर चढ़कर हंगामा करने में सबसे आगे रहते थे. पिछले करीब पांच बार से लगातार पार्षद भी बनते आ रहे हैं. सीनियर डिप्टी मेयर के दावेदारों में भी उनका नाम शामिल था.
राजा की ताजपोशी और हैनरी गुट से दूरी ने जस्सल को पार्षद पद से आगे नहीं बढ़ने दिया. अब जब राजा की नाकामियों का ढिंढोरा सारा शहर पीट रहा है तो फिर जस्सल कैसे पीछे रह सकते थे. हाल ही में जस्सल ने एक दैनिक समाचार पत्र को दिए गए बयान में जालंधर में कांग्रेस के सभी विधायकों की हार की भविष्यवाणी कर डाली. साथ ही इसके लिए राजा की नाकामियों को सबसे बड़ी वजह भी करार दिया. जस्सल ने कहा कि इस बार जालंधर के सभी विधायक विधानसभा चुनाव हार जाएंगे और इसकी वजह राजा होंगे क्योंकि राजा अभी तक शहर में विकास नहीं करवा पाए हैं.
जस्सल की बात में दम भी है. सड़कों का बुरा हाल है, सीवरेज की सफाई नहीं होती, वरियाणा डंप और कूड़े की समस्या का समाधान राजा आज तक नहीं करवा सके हैं, स्टॉर्म सीवरेज प्रोजेक्ट कागजों से बाहर नहीं निकल पाया है, स्ट्रीट वेंडिंग पॉलिसी लागू नहीं हो पाई, अवैध बिल्डिंगों और अवैध कॉलोनियों का काला खेल अभी भी जारी है, बरसात में इस बार भी जलभराव शहर के लोगों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी करेगा. शुद्ध पेयजल आपूर्ति अभी भी शहरवासियों के लिए सपना बनी हुई है. बिना मोटर के नलों में पानी नहीं आता. पार्कों की स्थिति बदहाल है. स्ट्रीट लाइट का एलईडी प्रोजेक्ट शुरू होना तो दूर लाइटों की मेंटेनेंस के चार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर भी ग्रहण लगा हुआ है जिसके विरोध में खुद निगम के पार्षद उतर आए हैं. निश्चत तौर पर इन सभी का असर आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस विधायकों को झेलना पड़ेगा.
इन सब चीजों से पार पाया जा सकता था लेकिन जब अपने ही खिलाफत पर उतर आएं तो सत्ता का सफर मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है. राजा भी विधायकों के लिए आग का वो दरिया तैयार कर रहे हैं जिसे पार कर पाना विधायकों के बस की बात नहीं है. हाल ही में जालंधर वेस्ट विधानसभा हलके के पार्षद बाजवा ने भी अपनी ही पार्टी के मेयर के खिलाफ धरना दिया था. अरुणा अरोड़ा मॉडल टाउन इलाके में कुछ इस तरह सड़कों पर काम कराती नजर आईं कि लोग उन्हें भावी मेयर का तमगा देने लगे हैं. बलराज ठाकुर का दर्द भी किसी से छुपा नहीं है और रही सही कसर विपक्षी दल के नेता पूरी कर रहे हैं.
बहरहाल, देशराज जस्सल के बयान के बाद राजा की मुश्किलें और बढ़ गई हैं क्योंकि जस्सल उसी विधानसभा हलके के रहने वाले हैं जहां के विधायक की मेहरबानी ने ही राजा को मेयर की कुर्सी दिलाई. हैनरी ने उनका समर्थन इस दिन के लिए तो कदापि नहीं किया होगा कि राजा के कारनामों की वजह से उनके हलके के पार्टी के पार्षद ही उनके धुर विरोधी भाजपा नेता और पूर्व विधायक केडी भंडारी की जुबान बोलने लगें.