नीरज सिसौदिया, जालंधर
खाली खजाने का रोना रोने वाला नगर निगम अफसरों की फिजूलखर्ची में कोई कसर नहीं छोड़ रहा| एक तरफ तो नगर निगम के नुमाइंदे खजाना खाली होने की दुहाई दे रहे हैं और दूसरी तरफ अफसरों को विदेश घूमने के लिए भेज रहे हैं। ताजा मामला वाटर सप्लाई ऑपरेशन एंड मैनेजमेंट डिपार्टमेंट का है| इस विभाग की एक टीम को लाखों रुपए खर्च करके पिछले दिनों बांग्लादेश भेजा गया और नतीजा सिफर रहा|
दरअसल नगर निगम की ओर से ब्यास दरिया से जालंधर शहर तक पानी लाने का प्रोजेक्ट शुरू किया जाना है| इस प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 3000 करोड़ रुपए से भी अधिक है| इसी तरह का एक प्रोजेक्ट बांग्लादेश की राजधानी ढाका में भी चल रहा है| वहां लगभग 30 किलोमीटर की दूरी से पानी राजधानी में लाया जाना है| यह प्रोजेक्ट वर्ष 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था| अभी तक इसका सिर्फ 30 फीसद काम ही पूरा हो सका है| यानी ढाका अपने लक्ष्य से काफी पीछे चल रहा है| यानी जो देश अपना ही प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर पा रहा है और समय से पिछड़ गया है उस देश से सीखने के लिए जालंधर नगर निगम के अधिकारियों को भेजा गया|
जो देश 30 किलोमीटर के प्रोजेक्ट में 8 साल में सिर्फ 30 फ़ीसदी काम ही पूरा कर पाया है अगर इस लिहाज से देखा जाए तो जालंधर में व्यास दरिया से पानी लाने का प्रोजेक्ट 7 किलोमीटर दूरी का है| अगर ढाका की तर्ज पर जालंधर में प्रोजेक्ट पर काम किया जाएगा तो ये प्रोजेक्ट लगभग 50 साल में पूरा हो पाएगा| इस बीच जाने कितने अधिकारी आएंगे और रिटायर होकर वापस चले जाएंगे| योजना की लागत भी 50 सालों में कहां की कहां पहुंच जाएगी इसका अंदाजा खुद-ब-खुद लगाया जा सकता है|
सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि नगर निगम के पास अभी सैलरी देने तक के पैसे नहीं है तो इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे कहां से आएंगे| अब अगर इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे नहीं आएंगे तो फिर अधिकारियों को विदेश भेजने की इतनी जल्दी क्यों थी? नगर निगम की ओर से एसई लखविंदर सिंह को भी बांग्लादेश भेजा गया| लखविंदर सिंह जल्द ही रिटायर होने वाले हैं| अगर वह जल्दी ही रिटायर हो जाते हैं और प्रोजेक्ट शुरू नहीं होता तो फिर लखविंदर सिंह का ज्ञान नगर निगम के काम नहीं आने वाला|
यह भी ठीक उसी तरह हुआ है जिस तरह अपने कार्यकाल के आखिरी समय में मेयर सुनील ज्योति और नगर निगम के तत्कालीन कमिश्नर बसंत गर्ग विदेश दौरे पर गए थे| हर कोई जानता था कि मेयर सुनील ज्योति का कार्यकाल अब खत्म होने वाला है फिर उनके विदेश दौरे पर फिजूलखर्ची क्यों की गई? बसंत गर्ग का विदेश दौरा भी फिजूलखर्ची ही साबित हुआ है क्योंकि अब उनका ट्रांसफर हो चुका है और वह नगर निगम के किसी काम नहीं आने वाले| जब तक नगर निगम अपना रेवेन्यू जुटाने में सफल नहीं हो जाता है तब तक ऐसे विदेश दौरे फिजूलखर्ची ही कहे जाएंगे|
बांग्लादेश दौरे से लौटी एक अधिकारी ने बताया कि वहां पर वाटर सप्लाई और सीवरेज डिपार्टमेंट की रिकवरी सौ फ़ीसदी है और हमारे यहां 50 फ़ीसदी भी पूरी नहीं है| वहां स्लम एरिया से भी महीना लगभग 4:00 से 5:00 करोड़ रुपए वसूला जाता है और हम 5 मरले से नीचे के मकानों से ₹1 भी वसूल नहीं कर पाते| वहां वाटर वेस्टेज नाम मात्र है और हम प्रतिदिन 50 फ़ीसदी पानी बर्बाद कर रहे हैं| ऐसे में सबसे पहले जरूरत है अपने सिस्टम को सुधारने की और रेवेन्यू बढ़ाने की| जब तक यह दो काम नहीं हो जाते तब तक चाहे बांग्लादेश का दौरा करें या फिर यूरोप का नगर निगम को कोई फायदा नहीं होने वाला|
अब सवाल यह उठता है कि मेयर जगदीश राज राजा और निगम कमिश्नर दीपक लाकड़ा ऐसे गैरजिम्मेदाराना फैसले क्यों ले रहे हैं? सिस्टम को सुधारने की बजाय वह सिस्टम को और कमजोर करने में क्यों लगे हैं?