राम जन्मभूमि मुक्ति के लिये 500 वर्षों के संघर्ष और बलिदान के बाद यह सुअवसर आया है. आज प्रभु श्री राम के भव्य दिव्य मंदिर का शुभारंभ हो रहा है. मुझे स्मरण है कि 1990 में कार सेवा के लिए मांडलगढ़ ,कोटडी के कारसेवक ट्रेन से मांडलगढ़ स्टेशन से जाने के लिए पहुंचे. वहां सन्देश मिला कि सब अजमेर पहुंचें, फिर तीन ट्रक से लोग अजमेर के लिये रवाना हुए. ब्यावर होते हुए अजमेर पहुंचे. पिताजी स्व. गोपाल कृष्ण गुरुजी व स्व. हरीश जी गट्टानी के नेतृत्व में अजमेर से ट्रेन से रवाना हुए. मुझे, भगवान सिंह जी, नरेन्द्र जी राजोरा , कैलाश जी गौड़, भायाजी भवानी शंकर को निर्देश के अनुसार रवाना करके वापस आये. बीगोद पहुंचने पर पता चला कि रात्रि को हमारे कारसेवा में गए कुछ साथियों के मकानों पर उपद्रव करने की कोशिश हुई है. हम तुरन्त डिप्टी एसपी मांडलगढ़ से मिले और शंकर जी भाईसाहब को अजमेर सूचना दी. भैरो सिंह जी से बात की. उसके बाद सेना के जवान बीगोद व मांडलगढ़ आ गये. कई बन्धु रास्ते में गिरफ्तार कर लिए गए. कुछ बन्धु पैदल चल कर अयोध्या कार सेवा में पहुंचे.
92 की कार सेवा में हम कोटा से ट्रेन से 29 नवम्बर को ही अयोध्या पहुंच गए. हम 90 साथी थे. छोटा भाई ओमप्रकाश तो घर पर बिना बताये कोटा के बन्धुओं के साथ 20 तारीख को ही पहुंच गया था. 5 तारीख को जब यह घोषणा हुई कि सरयू से एक मुट्ठी रेत लाकर कार सेवा करेंगे तो कार सेवकों में आक्रोश फैल गया. 6 दिसम्बर को जब 10 बजे से सभा शुरू हुई तो 11बजे करीब आक्रोश फूट पड़ा. कार सेवक गुंबद पर चढ़ गए. देखते ही देखते हजारों कार सेवक ढांचे पर पहुंच गए. जिसके जो हाथ आया ढांचे को तोड़ने में लग गया. जो बाहर थे उन्होंने जोश बढ़ाना शुरू कर दिया. 3 बजे के करीब 500 वर्षों से हिदू समाज को शूल से चुभने वाला राम लला के मंदिर को तोड़ कर बनाया गया ढांचा जिसे कुछ लोग बाबरी मस्जिद कहते थे, धराशायी हुई. कलंक का अंत हुआ. उसके बाद तो अयोध्या का नजारा देखने के काबिल था. शंख बजने लगे मंदिरों में आरतियां होने लगीं. घण्टे व जालर बजने लगे. पटाखे छूटने लगे. जैसे रामजी अयोध्या लंका विजय कर लौटे हैं. क्या नयनाभिराम दृश्य था, देखते ही बनता था.
आज वो अधूरा कार्य पूरा होने के अवसर पर दीप जलायें. यह दिन राम मंदिर के निर्माण के साथ भारत के सांस्कृतिक पुनरुथान का दिन है आओ दीप जलाये मंगल गान गाये.
-बद्री गुरुजी
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