नीरज सिसौदिया, जालंधर
अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद जालंधर के सियासी समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. खासतौर पर जालंधर नॉर्थ विधानसभा सीट के कथित दिग्गज भाजपा नेता और पूर्व विधायक केडी भंडारी के सियासी भविष्य पर तो जैसे विराम ही लगता नजर आ रहा है. पहले जालंधर की सियासत में राकेश राठौर के कद का बढ़ना, फिर भंडारी के करीबियों को दरकिनार कर रमन पब्बी और सुशील शर्मा को जिला अध्यक्ष पद की कमान मिलना, फिर भंडारी के कथित सरपरस्त अविनाश राय खन्ना को भाजपा में साइड लाइन करना और अकाली-भाजपा गठबंधन का टूटना, ये सब ऐसे वाकये हैं जिन्होंने भंडारी के सियासी भविष्य को मझधार में लाकर खड़ा कर दिया है. भंडारी की सियासी नैय्या अभी डूबती ही नजर आ रही थी कि उस नाव में एक और सुराख हो गया. जी हां, अपनों के बाद अब भंडारी के सियासी मित्र भी उन्हें झटका देने की तैयारी कर रहे हैं. सूत्र बताते हैं कि हैनरी के कथित विरोधी दो दिग्गज अब अकाली दल की ताकत बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें पहला नाम है दिग्गज नेता बालकिशन बाली का और दूसरे हैं दिनेश ढल्ल उर्फ काली.
बता दें कि विगत विधानसभा चुनाव में बावा हैनरी ने केडी भंडारी को धूल चटा दी थी और रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल कर विधायक बन गए थे. लेकिन इससे पहले दो बार लगातार भंडारी ही विधायक बने थे. उस दौर में भंडारी की जीत में अकाली दल के साथ ही बालकिशन बाली और काली की भी थी. बाली के विरुद्ध चुनाव लड़ने वाले भाजपा नेेता किशनलाल शर्मा ने तो खुलेआम भंडारी पर पार्षद के चुनाव में बाली की मदद करने और बाली पर विधानसभा चुनाव में भंडारी की मदद करने का आरोप लगाया था. बाली और काली भंडारी की मदद इसलिए करते थे क्योंकि वे हैनरी को किसी भी कीमत पर हराना चाहते थे. साथ ही भंडारी के रूप में उन्हें सत्ता का संरक्षण भी प्राप्त हो जाता था.
अब जबकि अपनी ही पार्टी में अविनाश राय खन्ना और केडी भंडारी का कद घटता जा रहा है तो भंडारी के साथी भी उनसे किनारा करते जा रहे हैं. अपनी पार्टी के छोटे नेता जो कभी भंडारी की जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते थे, अब वो भी अंदरखाते नया ठिकाना तलाशने में जुट गए हैं. अविनाश राय खन्ना के पार्टी में उपेक्षित होने और अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने के कारण भंडारी की आधी ताकत पहले ही कम हो चुकी है. अब बाली और काली जैसे दिग्गजों के किनारा करने के बाद भंडारी की सियासी नाव बीच मझधार में डोलती नजर आ रही है. यही वजह बताई जा रही है कि बाली और काली अब भंडारी की डूबती नाव में सवार होने की बजाय अकालियों की नाव के खेवनहार बनने जा रहे हैं. जल्द ही इसकी आधिकारिक घोषणा भी हो सकती है. हालांकि बीच में चर्चा हो रही थी कि बाली खुद विधानसभा चुनाव लड़ेंगे लेकिन बाली जानते हैं कि वह किंगमेकर तो हैं पर किंग बनने का वक्त अभी नहीं आया है इसलिए वह अकाली प्रत्याशी के लिए किंगमेकर की भूमिका ही निभाएंगे न कि खुद चुनाव लड़ेंगे. भाजपा को अगर इस सीट पर कब्जा जमाना है तो उसे इस बार किसी ऐसे चेहरे को मैदान में उतारना होगा जो एकदम नया हो और विवादों से उसका दूर दूर तक कोई नाता न रहा हो. सूत्र बताते हैं कि पार्टी नेताओं के साथ ही संघ के आला नेताओं ने भी इस पर मंथन शुरू कर दिया है. बहरहाल, वर्तमान में जो सियासी हालात बन रहे हैं अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भंडारी की सियासत अतीत के पन्नों में ही दफन हो जाएगी.
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