पंजाब

बावा हेनरी के बिगड़े बोल ले डूबेंगे कांग्रेस को

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नीरज सिसौदिया 

जरूरतें जब पर काट दें और रोटी पैरों की जंजीरें बन जाएं तो निगाहों को सिर्फ अपनों की बेबसी नजर आती है। कुछ इसी दौर से वह निगम कर्मचारी भी गुजर रहे थे जिन्हें बावा हैनरी के बिगड़े बोलों का शिकार होना पड़ा। सांकेतिक प्रदर्शन कर रहे नगर निगम कर्मचारियों को जिस तरह से विधायकों के दरबार से दुत्कार मिली वह लोकतंत्र के नाम पर कलंक बन गया है। उस पर बावा हेनरी के बिगड़े बोल निश्चित तौर पर अपनी रोटी की खातिर सांकेतिक प्रदर्शन कर रहे लोगों के दिलों पर एक गहरी चोट पहुंचा गए।
इस घटनाक्रम ने जनता के समक्ष एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या जनता इसीलिए जनप्रतिनिधियों को चुनकर विधायक और सांसद जैसे ओहदों पर बिठाती है कि जब वह अपनी फरियाद लेकर उनके पास जाए तो सिर्फ दुत्कार मिले। निश्चित तौर पर ऐसे लोकतंत्र का ख्वाब न तो महात्मा गांधी ने देखा होगा, न ही अंबेडकर ने और न ही पंडित जवाहरलाल ने जिनकी पार्टी से बावा हेनरी और अन्य तीनों विधायक ताल्लुक रखते हैं।
सफाई मजदूरों का नेतृत्व कर रहे चंदन ग्रेवाल कहते हैं कि विधायकों को कोई अधिकार नहीं कि वह अपनी जायज़ मांगों को लेकर सांकेतिक विरोध प्रदर्शन कर रहे दलित समाज के लोगों को इस कदर बेइज्जत करें। बता दें कि यह वही चंदन ग्रेवाल हैं जिन्होंने चंद माह पहले राजनीति से ऊपर उठकर नगर निगम में अपनी अवैध दुकान हटाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे नया बाजार के वरिष्ठ कांग्रेस नेता जसविंदर सिंह राजू का समर्थन किया था। चंदन ग्रेवाल की बदौलत ही नगर निगम के अधिकारियों ने राजू को अपनी दुकान से सामान हटाने का पर्याप्त समय दिया था। अगर उस रोज़ चंदन ग्रेवाल भी विधायकों की तरह राजनीति पर उतर आते तो कांग्रेस नेता राजू की दुकान का सामान और उनकी मकान का ऊपरी हिस्सा भी ध्वस्त हो सकता था। चंदन ग्रेवाल ने हमेशा सच का साथ दिया और पिम्स के मसले पर भी उन्होंने मजदूरों की लड़ाई लड़ी।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर बावा हेनरी का गुस्सा कितना जायज था। कर्मचारियों को बेइज्जत करने से पहले बावा हेनरी ने यह क्यों नहीं सोचा कि विरोध प्रदर्शन कर रहे नगर निगम के इन कर्मचारियों की रोटी का एकमात्र जरिया सिर्फ सैलरी ही है। सैलरी समय पर ना मिले तो बैंकों को लोन की किस्त अदा नहीं की जा सकेगी और अतिरिक्त बोझ उसी कर्मचारी पर पड़ेगा। हेनरी यह क्यों भूल गए कि अगर स्कूलों में बच्चों की फीस समय पर नहीं दी जाए तो लेट फीस इन कर्मचारियों को अपनी जेब से देनी पड़ेगी। हेनरी यह क्यों भूल गए कि अगर राशन का बकाया न दिया गया तो उनके घर में राशन कहां से आएगा? हेनरी यह क्यों भूल गए कि यह सारा बोझ उन्हीं नगर निगम कर्मचारियों पर पड़ेगा ना की सरकार पर। कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने से पहले पंजाब के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी का ख्वाब तो दिखाया लेकिन उसे आज तक पूरा नहीं कर सकी। जालंधर के विधायकों ने विकास का सपना तो दिखाया लेकिन उसे पूरा नहीं कर सके। कहीं यही बौखलाहट तो नहीं जो बावा हेनरी की जुबां से गुस्से के रूप में निकल पड़ी।
दरअसल, पंजाब में सत्ता परिवर्तन हुए लगभग 1 साल से भी अधिक का वक्त हो चुका है। सरकार जिन मुद्दों पर सत्ता में आई थी वह सारे मुद्दे अभी जस के तस हैं। बात अगर जालंधर की करें तो यहां सियासी लड़ाई ने विकास को पंख लगने ही नहीं दिए। शुरुआती कुछ माह तो सिर्फ इसलिए यूं ही गुजर गए क्योंकि नगर निगम पर अकाली-भाजपा गठबंधन का राज था और सुबह में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस विधायक इस तरह राजनीति पर उतर आए थे कि शहर को साफ सुथरा बनाने की मुहिम पर भी सियासत कर डाली। विधायक केडी भंडारी ने कूड़े के एक डंप की साफ-सफाई कर उसे पार्क में तब्दील क्या कर दिया विरोधी दल के नेता के होश फाख्ता हो गए और उसने नगर निगम के अधिकारियों को ही सफाई मशीनें उपलब्ध कराने से रोकने का आदेश तक दे डाला था। अब एक बार फिर सफाई कर्मचारियों पर ही भड़क गए। सूत्रों की मानें तो बरसाती सीजन में जब गाजीगुल्ला के लोग जलभराव से राहत के लिए एक विधायक के दरबार में पहुंचे थे तो विधायक ने यह कह कर उन्हें दुत्कार दिया था कि पहले इलाके में कांग्रेस का पार्षद लाओ तब आपके इलाके में सीवरेज समस्या का हल होगा। बहरहाल, बावा हेनरी के बिगड़े बोल जालंधर में कांग्रेस के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। बाबा हेनरी एक पढ़े-लिखे और सुलझे युवा राजनीतिज्ञ हैं। वह अक्सर बहुत ही शालीन नजर आए हैं। उनकी शालीनता ही थी जिसकी वजह से जनता ने केडी भंडारी के 10 साल के राज को नकार दिया और उन्हें भारी बहुमत से विजय दिलाई थी। अतः बावा हेनरी से आज भी जनता को उसी शालीनता और मृदुभाषिता की उम्मीद है। अतः बावा हेनरी को भी जनता की भावनाओं का ख्याल रखते हुए अपनी उसी छवि को बरकरार रखते हुए यह नहीं भूलना चाहिये कि जनता जिस तरह से राजनेताओं को सिर आंखों पर बिठाती है उसी तरह से नीचे गिराने में भी देर नहीं लगाती है। कांग्रेस का पंजाब में 10 साल का वनवास इसका सबसे बेहतर उदाहरण है।

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